Chhath Puja 2025: महापर्व छठ का दूसरा दिन आज, 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत, जानें खरना की पूजा विधि और महत्व
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लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू हो चुका है. हर तरफ भक्ति और श्रद्धा का माहौल है. इस बड़े पर्व का आज दूसरा दिन है, जिसे 'खरना' कहा जाता है. खरना पूजा के बाद ही अगले दो दिनों तक सूर्य भगवान को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है. आइए, आपको खरना का महत्व और इसकी पूजा विधि आसान भाषा में बताते हैं.

खरना का क्या महत्व है.

छठ पूजा में खरना का दिन बहुत खास माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे का सबसे कठिन 'निर्जला व्रत' (बिना पानी पिए) शुरू होता है. इस दिन को शारीरिक और मानसिक पवित्रता पाने का प्रतीक माना गया है. जो लोग व्रत (व्रती) रखते हैं, वे इस दिन अपने मन, विचार और कामों को शुद्ध करने की कोशिश करते हैं, ताकि वे आने वाले कठोर व्रत के लिए पूरी तरह तैयार हो सकें. खरना पर जो प्रसाद बनता है, उसे परिवार और दूसरे लोगों के साथ भी बांटा जाता है.

खरना का खास प्रसाद

खरना पर गुड़ की खीर बनाने की परंपरा है. यह प्रसाद चावल, दूध और गुड़ से तैयार किया जाता है. इसके साथ ही गेहूं के आटे की रोटी या पूड़ी भी बनाई जाती है. सबसे पहले, यह प्रसाद सूर्य देव और छठी मैया को चढ़ाया (अर्पित किया) जाता है. इसके बाद व्रती इस प्रसाद को खाते हैं. इसी प्रसाद को खाने के बाद 36 घंटे का कठिन उपवास शुरू हो जाता है.

खरना की पूजा विधि क्या है.

  1. खरना के दिन सुबह-सुबह सूरज उगने से पहले स्नान (नहाकर) करके मन की शुद्धि का संकल्प लिया जाता है.
  2. इसके बाद सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान करते हुए दिनभर निर्जला व्रत रखा जाता है.
  3. शाम को पूजा से पहले, पूजा करने की जगह की अच्छी तरह सफाई की जाती है.
  4. सूरज ढलने (सूर्यास्त) के बाद प्रसाद तैयार किया जाता है. इसमें आमतौर पर गुड़ की खीर या दूध-चावल की खीर, आटे की रोटी या पूड़ी और केला शामिल होता है.
  5. जब प्रसाद तैयार हो जाता है, तब सूर्य देव और छठी माता की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है.
  6. इसके बाद मंत्र पढ़ते हुए पहले सूर्य देव और फिर छठी मैया को प्रसाद का भोग लगाया जाता है.