Chandrashekhar Azad Jayanti 2023: क्यों मोहभंग हुआ आजाद का गांधी से? जानें आजाद के जीवन के कुछ रोचक फैक्ट!

चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन क्रांतिकारियों में शुमार हैं, जिन्होंने आजाद-भारत के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. आजाद गांधी के स्वातंत्र्य आंदोलनों से प्रभावित होकर आजादी की जंग में कूदे थे, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ छेड़े ‘असहयोग आंदोलन’ को वापस लेने के निर्णय से गांधी के प्रति उनका मोहभंग हो गया

चन्द्रशेखर आज़ाद जयंती

Chandrashekhar Azad Jayanti 2023: चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन क्रांतिकारियों में शुमार हैं, जिन्होंने आजाद-भारत के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. आजाद गांधी के स्वातंत्र्य आंदोलनों से प्रभावित होकर आजादी की जंग में कूदे थे, लेकिन ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ छेड़े असहयोग आंदोलन को वापस लेने के निर्णय से गांधी के प्रति उनका मोहभंग हो गया. वह जानते थे कि गांधी के अहिंसक विचारों से भारत कभी आजाद नहीं होगा. आजाद और उनके क्रांतिकारी साथियों भगत सिंह, अशफाक उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल आदि के नाम से अंग्रेज घबराते थे, क्योंकि घटना को अंजाम देकर आजाद गायब हो जाते थे. आजाद ने भी सौगंध खाई थी कि इस जंग में अंग्रेज उन्हें जीते जी गिरफ्तार नहीं कर सकेंगे. आइये जानते हैं आजाद के जीवन के कुछ दिलचस्प किस्से. यह भी पढ़ें: मंगल पांडे की जयंती पर उनके ये महान विचार Wallpapers और HD Images के जरिए शेयर कर क्रांतिकारी सिपाही को करें याद

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को झाबुआ (मध्यप्रदेश) स्थित भाबरा गांव में पिता सीताराम तिवारी और माँ जगरानी के घर हुआ था. चंद्रशेखर बचपन से पढ़ाई-लिखाई में अव्वल थे. हष्ट पुष्ट होने के नाते वह नियमित अखाड़ा जाते थेलेकिन उनका मन गांव में नहीं लग रहा था. गांव में आने वाले हीरे-जवाहरात के एक व्यापारी के साथ चंद्रशेखर बंबई (मुंबई) चले गये. वहां उन्होंने बंदरगाह पर स्थित एक ठेकेदार के पास रहते हुए जहाज की पेंटिंग का काम शुरू किया. लेकिन बहुत जल्दी इस एक सरीखे काम से भी वह उकता गये. सोचा पेट पालने लायक काम तो झाबुआ में भी मिल जाएगा. वे वापस अपने गांव आ गए, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उनके मन में जहर घुलना शुरू हो चुका था. 

संस्कृत पढ़ते-पढ़ते क्रांतिकारी बन गये!

  आजाद के पिता चाहते थे कि वह संस्कृत के प्रकांड विद्वान बनें. पिता की ख्वाहिश पूरी करने के लिए आजाद ने बनारस (वाराणसी) के काशी विद्यापीठ में एडमिशन लिया. हालांकि माँ जगरानी उन्हें अपने से दूर नहीं भेजना चाहती थीं. बनारस में संस्कृत में अध्ययन करते हुए उनका ध्यान महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की ओर आकृष्ट हुआ. 1919 में जलियांवाला बाग में निर्दोष जनता पर ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता ने समूचे हिंदुस्तान को आंदोलित कर दिया था.

पहली सरकारी नौकरी से इस्तीफा!

   चंद्रशेखर आजाद के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. उनके शिक्षक ने ब्रिटिश अधिकारी से प्रार्थना करके उनके लिए तहसिल कार्यालय में एक नौकरी की व्यवस्था की थी, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों की कुछ बातें उन्हें पसंद नहीं आई, और उन्होंने नौकरी से तत्काल इस्तीफा दे दिया.

अंग्रेज क्यों थरथराते थे आजाद से?

 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन रोक दिया. इससे आज़ाद समेत युवा आंदोलनकर्ता व्यथित हो गए, तब मनमथ नाथ गुप्ता ने आजाद को राम प्रसाद बिस्मिल से मिलवाया. बिस्मिल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक थे. आजाद इस संगठन में शामिल हो गए. क्रांति के लिए आवश्यक धन जुटाने की जिम्मेदारी आजाद को सौंपी गई. आजाद ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ 1925 में काकोरी ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया. इसके बाद भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए आजाद ने 1928 में लाहौर में जे. पी. सॉन्डर्स को गोली मारने की योजना बनाई. 18 दिसंबर 1928 को लाहौर में जे.पी. सॉन्डर्स की हत्या कर दिया. आजाद के एक के बाद एक कारनामों से ब्रिटिश पुलिस उनके नाम से ही थरथराने लगी थी.

मां को लकड़ियां बेचकर पेट पालना पड़ा!

  कहा जाता है कि चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई थी. बड़े भाई की मृत्यु पहले हो चुकी थी. पति और बच्चों को खोने के बाद आजाद की मां बेहद गरीबी में जीवन बिता रही थीं, लेकिन उन्होंने किसी के सामने अपने बेटे की शहादत की कीमत नहीं मांगी. वह जंगल से लकड़ियां काटकर लाती और उसे बेचकर जीवन निर्वाह करती थी. अकसर उन्हें भुने हुए ज्वार और बाजरे का घोल बनाकर पीना पड़ता था. मार्च 1951 में उनका निधन हो गया.

मरने के बाद भी दहशतजदा थी पुलिस आजाद से!

  27 फरवरी 1931 को आजाद इलाहाबाद (प्रयागराज) अल्फ्रेड पार्क में अपने साथी सुखदेव के साथ बातचीत में मशगूल थे. यह खबर इलाहाबाद पुलिस प्रमुख नॉट बावर को मिली. कहा जाता है कि आजाद के दो करीबी साथियों ने मुखबिरी की थी. इससे पहले कि आजाद को इसकी भनक मिलती, उन्हें चारों ओर से राइफलों से लैस पुलिस ने घेर लिया. आजाद पास के एक पेड़ की आड़ से तीन गोलियां सिपाहियों पर चलाई. पुलिस ने जवाब में फायर किया. दोनों तरफ से फायर होने लगा. अंत में आजाद की पिस्तौल में एक गोली बची, उन्होंने उसे अपनी कनपटी रखकर फायर कर लिया, वे वहीं गिर पड़े. आजाद का खौफ पुलिस वालों पर इस कदर था कि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आजाद मर भी सकता है. इसलिए पास जाने से पहले उन्होंने आजाद के मृत शरीर पर गोलियों की बौछार की. बाद में पुलिस ने आजाद के मृत शरीर को रसूलाबाद घाट पर दाह संस्कार करवाया.

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