Chaitra Navratri 2019: नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि
चैत्रीय नवरात्रि पर कलश स्थापना के साथ नौ दिन उपवास रखने वालों के लिए कहा जाता है कि व्रत करने के अलावा विधि-विधान से कन्या पूजन करने से ही संपूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है. यह कन्या पूजन अष्टमी और नवमी के दिन शुभ मुहूर्त पर करने का विधान है.
Chaitra Navratri 2019: चैत्रीय नवरात्रि (Chaitra Navratri) पर कलश स्थापना के साथ नौ दिन उपवास रखने वालों के लिए कहा जाता है कि व्रत (Vart) करने के अलावा विधि-विधान से कन्या पूजन (Kanya Pujan) करने से ही संपूर्ण पुण्य की प्राप्ति होती है. यह कन्या पूजन अष्टमी और नवमी के दिन शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat) पर करने का विधान है. इस अवसर पर हलवा-पूरी, चने आदि के प्रसाद से माता को भोग चढाते हैं इसके पश्चात नौ कन्याओं को सम्मान व प्रेम पूर्वक भोजन कराया जाता है. आइये जानें किस मुहूर्त में कितनी कन्याओं का पूजन करने का विधान है.
हमारे देश में प्राचीनकाल से कन्याओं को देवी का दर्जा प्राप्त है. सनातन धर्म में ‘शक्ति की देवी’ दुर्गा जी हैं तो धन की देवी लक्ष्मी जी हैं. शिक्षा का ज्ञान माता सरस्वती की कृपा से प्राप्त होता है. हमारे धार्मिक पुराणों में वर्णित है कि जिस घर में स्त्री का सम्मान है, वहीं ईश्वर विराजमान होते हैं. नवरात्रि के पहले तीन दिन महाकाली, फिर तीन दिन महालक्ष्मी और आखिरी तीन दिन महासरस्वती की साधना होती है.
क्या है कन्या-पूजन का मुहूर्त
अष्टमी- नवमी पूजा मुहूर्त- नवमी तिथि 13 अप्रैल की सुबह 8.19 से शुरु होकर 14 अप्रैल की सुबह 6.04 बजे तक. इसी मुहूर्त में भगवान राम का जन्म हुआ था, जिसे पुष्य नक्षत्र कहते हैं.
13 अप्रैल की सुबह प्रातः 08:16 बजे तक अष्टमी तिथि है. इसके पश्चात महानवमी लग जायेगी. जो 14 अप्रैल तक चलेगी. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: तंत्र साधना का केंद्र है कामाख्या देवी मंदिर, जहां प्रसाद में मिलते हैं रक्त से भीगे वस्त्र
क्यों करते हैं कन्या पूजन ?
नवरात्रि के पहले दिन श्रीगणेश जी की पूजा के पश्चात माता शैलपुत्री की पूजा शुरू होती है, अंतिम दिन यानी नवरात्रि को सिद्धिदात्री की पूजा के साथ नवरात्रि सम्पन्न होती है. अष्टमी और नवमी के दिन पूजी जा चुकी नौ देवी को कन्या रूप में मानकर नौ कुंआरी कन्याओं को घर बुलाकर स्वागत किया जाता है. मान्यता है कि इससे आदि शक्ति प्रसन्न होती हैं. कन्या पूजन के बाद ही उपवासी का व्रत पूरा होता है. कन्याओं को भोग खिलाकर उन्हें दक्षिणा अथवा कोई भेंट प्रदान करना जरूरी होता है. इसके पश्चात ही स्वयं और परिवार को प्रसाद वितरित किया जाता है. कहते हैं इसके पश्चात ही व्रत पूरा माना जाता है.
किन और कितनी कन्याओं का करें चयन ?
जो भक्त पहली बार कन्या पूजन करवा रहा होता है, वह अक्सर दुविधा में होता है कि वह कितनी और किस तरह की कन्याओं का चयन करे. स्कन्द पुराण के अनुसार, कन्या पूजन के लिए दो वर्ष से 10 वर्ष की कन्याओं का पूजन सार्थक माना जाता है. इस पूजन में उन्हीं कन्याओं का पूजन किया जाता है जिसका मासिक धर्म शुरु नहीं हुआ होता है. आप चाहें तो नौ कन्याओं से ज्यादा की भी पूजन कर सकते हैं. नौ कन्याओं के साथ एक बालक भी इस पूजन में शामिल होता है, जिसे भगवान हनुमान के रूप में देखा और पूजा जाता है. जो नौ कन्याओं की पूजा करने में असमर्थ होता है, वह एक कन्या की भी पूजा कर सकता है. लेकिन पूजा विधि विधान के साथ ही करना चाहिए. इस दिन इस बात का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए कि अपनी कुल देवी की भी पूजा करनी चाहिए.
ऐसा भी विधान है कि अगर आप सामर्थ्यवान हैं तो प्रत्येक नवरात्रि को एक कन्या को ससम्मान भोजन करवायें और अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन करवाएं. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: ज्वालामुखी देवी के चमत्कार को देख नतमस्तक हुआ था बादशाह अकबर, यहां गिरी थी माता सती की जीभ
वर्षानुसार कन्या पूजन का लाभ
स्कंद पुराण के अनुसार दो वर्ष की कन्या गरीबी दूर करती है, तीन वर्ष की कन्या धन प्रदान करती है, चार वर्ष की कन्या अधूरी इच्छाएं पूरी करती है, पांच वर्ष की कन्या रोगों से मुक्ति दिलाती है, छह वर्ष की कन्या विद्या, विजय और राजसी सुख प्रदान करती है, सात वर्ष की कन्या ऐश्वर्य दिलाती है, आठ वर्ष की कन्या शांभवी स्वरूप से वाद-विवाद में विजय दिलाती है. नौ वर्ष की कन्या दुर्गा के रूप में शत्रुओं से रक्षा करती है. जबकि दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के रूप में आपकी सभी इच्छाएं पूरी करती है.
कन्या-पूजन का विधान
जिन कन्याओं को पूजन के लिए बुलाना चाहते हैं, उन्हें एक दिन पूर्व ही आमंत्रण दे दें. जब सभी नौ कन्याएं आ जाएं तो अपने पुत्रों अथवा स्वयं सभी कन्याओं का पैर धोकर, माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाकर उन्हें आसन पर बैठाएं. कन्याओं को विशुद्ध घी से बना भोजन खिलाने के पश्चात फल के रूप में प्रसाद, सामर्थ्यानुसार दक्षिणा अथवा उनके उपयोग की वस्तुएं प्रदान करें. विदा करते समय एक बार फिर उनका चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.