Basant Panchami 2020: जानें बसंत पंचमी का महाम्य, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में बसंत पंचमी को सर्वाधिक शुभ दिन माना जाता है. यही वजह है कि हर माता-पिता अपने बच्चे की शिक्षा की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन करते हैं. पुरोहितों का तो यहां तक कहना है कि बसंत पंचमी के दिन अगर माता सरस्वती का ध्यान करते हुए बच्चे की जीभ पर शहद से ‘अ’ अक्षर लिखा जाये तो बच्चा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ़ता है.

माघ माह के शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है (Photo Credits: YouTube)

Vasant Panchami 2020 Significance: हमारे देश में बसंत को ‘ऋतुओं की रानी’ भी कहा जाता है. जब सर्द हवाएं मादक होने लगें, खेतों में चारों ओर सरसों के पीले फूल लहलहाने लगें, गेहूं कि फसलें सुनहरी बालियों में रंग उठें, आम की डालियां बौरों से लदने लगे, वृक्षों पर नये पल्लव दिखने लगें, रंगबिरंगी तितलियां फूलों पर मंडराने लगें, और आकाश में रंग-बिरंगी पतंगें हवा में एक दूसरे की गलबहियां करती दिखें तो समझ लीजिये ‘बसंत’ का आगाज हो चुका है. लेकिन बसंत ऋतु की सिर्फ यही विशेषता नहीं है. बसंत पंचमी के इस खूबसूरत पर्व पर ज्ञान, विद्या एवं संगीत की देवी मां शारदा की परंपरागत पूजा-अर्चना का भी विधान है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष बसंत पंचमी 29 जनवरी को मनाया जायेगा.

माघ माह के शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि आज के ही दिन विद्या, ज्ञान एवं संगीत की देवी मां शारदा प्रकट हुई थीं. बसंत पंचमी को वागीश्वरी जयंती (Vageshwari Jayanti) के नाम से भी जाना जाता है. ऋग्वेद के 10/29 सूक्त में माँ शारदा के उद्भव एवं महिमा का विस्तृत उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म ग्रंथों में बसंत पंचमी के महात्म्य के साथ यह भी उल्लेखित है हिंदू धर्म के लोग इस दिन को बहुत शुभ मानते हैं. बिना मुहूर्त निकाले शुभ एवं नये कार्य आज के दिन प्रारंभ किया जा सकता है.

पौराणिक कथा:

ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने विष्णुजी की अनुमति से श्रृष्टि की रचना तो कर दी, लेकिन इससे विष्णुजी संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे. उन्हें लगा कि कहीं कुछ कमी है. उन्होंने ब्रह्मा जी को अपनी कमंडल का जल पृथ्वी पर छिड़कने के लिए कहा. जल के छिड़काव के साथ ही हाथों में वीणा लिए माता सरस्वती प्रकट हुईं. ब्रह्माजी के कहने पर माता सरस्वती ने अपनी वीणा की तार को झंकृत किया. वीणा के बजते ही सृष्टि में मानों प्राणों का संचार हो गया. नदियों से कल-कल की आवाजें आने लगीं, पक्षी चहचहाने लगे, वायु के झोंकों के साथ सब कुछ सजीव-सा हो गया.

सारे देवी-देवता ब्रह्मा द्वारा रचित प्रकृति के इस स्वरूप को देखकर भाव-विभोर हो उठे. कहते हैं इसी दरम्यान जब सरस्वती जी की नजरें भगवान श्रीकृष्ण के सांवले-सलोने रूप पर पड़ी, वे उन पर मोहित हो गयीं. उन्होंने श्रीकृष्ण से उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकारने का अनुरोध किया. लेकिन श्रीकृष्ण ने राधा के प्रति आस्था दिखाते हुए असमर्थता व्यक्त की और उन्हें वरदान दिया कि आज के बाद प्रत्येक माघ मास की शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन पूरी दुनिया ज्ञान एवं संगीत की देवी के रूप में तुम्हारी पूजा-अर्चना करेगा. इसके बाद से ही प्रत्येक बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है.

ज्ञान के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन है बसंत पंचमी:

सनातन धर्म में बसंत पंचमी को सर्वाधिक शुभ दिन माना जाता है. यही वजह है कि हर माता-पिता अपने बच्चे की शिक्षा की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन करते हैं. पुरोहितों का तो यहां तक कहना है कि बसंत पंचमी के दिन अगर माता सरस्वती का ध्यान करते हुए बच्चे की जीभ पर शहद से ‘अ’ अक्षर लिखा जाये तो बच्चा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ़ता है, और खूब नाम-दाम अर्जित करता है. बहुत-सी माएं अपने शिशु का अन्नप्रासन भी इसी दिन करती है. बसंत ऋतु पर प्रकृति की सुंदरता पर कोई भी मोहित हो सकता है. इसीलिए इसे प्रेम-ऋतु के रूप में भी जाना जाता है. इसलिए बसंत पंचमी का दिन शादी-व्याह के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. बहुत से लोग बसंत पंचमी के दिन गृह प्रवेश अथवा दूसरे नये कार्य भी करना शुभ मानते हैं.

बसंत पंचमी 29 जनवरी 2020 पूजा का शुभ मुहूर्त

बसंत पंचमी- 29 जनवरी 2020

पूजा का समय- प्रातः 10:45 से 12:34 बजे तक

पंचमी तिथि प्रारंभ 10:45 बजे से (29 जनवरी)

पंचमी तिथि समाप्तः दोपहर 13:19 बजे तक (30 जनवरी)

:प्रातःकाल स्नान-ध्यान से निवृत्त होने के बाद पीले रंग का वस्त्र पहनें. पूजा की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर माता सरस्वती की प्रतिमा बिठाएं. माता सरस्वती के मंत्र का जाप करते हुए उन्हें स्नान करायें. अब पीले फूलों से श्रृंगार कर उन्हें श्वेत वस्त्र धारण करा कर धूप-दीप प्रज्जवलित करें. उपलब्ध हों तो सफेद पुष्प चढ़ाएं, अथवा पीले रंग के पुष्प भी चढ़ाए जा सकते हैं. प्रसाद में गाय के दूध से बना खीर अथवा दूध की मिठाई चढ़ाएं. इस दिन अगर संभव हो तो गरीब बच्चों को पुस्तक-पुस्तिकाएं एवं कलम दान करें. बहुत से विद्यार्थी माता सरस्वती के पास अपनी पुस्तक-पुस्तिकाएं भी रखते हैं.

माता सरस्वती का मंत्र:

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता.

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

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