Bal Gangadhar Tilak Jayanti 2020: लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 164वीं जयंती, जानिए इस महान स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ी रोचक बातें
महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, दार्शनिक, प्रखर चिंतक, शिक्षक और पत्रकर के तौर पर मशहूर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 164वीं जयंती मनाई जा रही है. 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा' का नारा बुलंद करने वाले बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था.
Bal Gangadhar Tilak Bith Anniversary: महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, दार्शनिक, प्रखर चिंतक, शिक्षक और पत्रकर के तौर पर मशहूर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 164वीं जयंती (Bal Gangadhar Tilak Jayanti) मनाई जा रही है. बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) का असली नाम केशव गंगाधर तिलक था, लेकिन उन्हें लोकमान्य तिलक (Lokmanya Tilak) के नाम से जाना जाता था. 'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा' का नारा बुलंद करने वाले बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था. उनके पिता गंगाधर रामचंद्र तिलक एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे. तिलक को देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वराज्य का पहला और सबसे कट्टर समर्थक माना जाता है. बाल गंगाधर तिलक की जयंती के इस खास अवसर पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्य.
लोकमान्य तिलक से जुड़े रोचक तथ्य
- बाल गंगाधर तिलक ने साल 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से आर्ट्स से गणित में फर्स्ट क्लास बैचलर डिग्री प्राप्त की थी. उन्होंने एलएलबी पाठ्यक्रम में शामिल होने के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स को बीच में ही छोड़ दिया और 1879 में उन्होंने एलएलबी की डिग्री प्राप्त की.
- साल 1884 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में तिलक ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर भारत के युवाओं को राष्ट्रवादी विचारों से रूबरू कराने के लिए डेक्कन एजुकेशन सोसायटी (Deccan Education Society) की स्थापना की थी.
- घरवाले और उनके प्रियजनों को यह आशा थी कि तिलक वकालत करने के बाद धन कमाएंगे और वंश के गौरव को बढ़ाएंगे, लेकिन तिलक ने शुरुआत से ही जनता की सेवा का व्रत धारण कर लिया था.
- बाल गंगाधर तिलक ने बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय सहित कई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस नेताओं के साथ घनिष्ठ गठबंधन किया और तीनों को 'लाल बाल पाल' कहा गया.
- साल 1890 में लोकमान्य तिलक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे और उन्होंने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग की.
- लोकमान्य तिलक के क्रांतिकारी कदमों से ब्रिटिश हुकूमत बौखला गई और उन पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर 6 साल के लिए 'देश निकाला' की सजा दी और बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया. यह भी पढ़ें: ‘जननायक’ बाल गंगाधर तिलकः जिसके नाम से कांपती थी ब्रिटिश हुकूमत!
- साल 1914 में जब उन्हें रिहा किया गया तो तिलक ने होम रूल लीग की शुरुआत की और स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर रहूंगा का नारा बुलंद किया.
- जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव और शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाने की शुरुआत की. इन त्योहारों के जरिए जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया गया.
- तिलक ने मराठी भाषा में 'मराठा दर्पण' और 'केसरी' नाम से दो दैनिक समाचर पत्रों की शुरुआत की, जो जनता के बीच काफी लोकप्रिय हुए. उन्होंने अपने समाचार पत्रों में अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीनभावना की आलोचना की.
गौरतलब है कि महात्मा गांधी ने उन्हें 'आधुनिक भारत का निर्माता' कहा और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें 'भारतीय क्रांति' के पिता के रूप में वर्णित किया. अपने क्रांतिकारी विचारों के लिए मशहूर तिलक को कई बार अपने लेखों के कारण जेल जाना पड़ा. भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और स्वराज्य की मांग करने वाले तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को मुबंई में हुआ था.