Ashura 2020: मुहर्रम के 10वें दिन को कहा जाता है यौम-ए-आशुरा, जानिए इस दिन का महत्व और इसका इतिहास
अशुरा 2019 (Photo Credits: Getty Images)

Youm-e-Ashura 2020/ 10th Muharram:  मुहर्रम (Muharram) इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calendar) का पहला महीना होता है और मुलमानों के लिए इस महीने को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. खासकर शिया मुसलमान (Shia Mulslim) इस महीने को गम के महीने के तौर पर मनाते हैं. इस्लाम में मुहर्रम के महीने को बहुत पाक माना जाता है, लेकिन इस महीने का 10वां दिन सबसे अहम होता है, जिसे यौम-ए-आशुरा (Youm-e-Ashura) कहते हैं. अरबी में आशुरा (Ashura) का मतलब होता है दसवां दिन. शिया मुसलमान मुहर्रम महीने के पहले दिन से दसवें दिन तक पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत पर शोक व्यक्त करते हैं.

हालांकि मुहर्रम के महीने को शिया और सुन्नी दोनों समुदाय के लोग मनाते हैं, लेकिन इसे मनाने के तरीके और इसकी मान्यताएं एक-दूसरे से काफी अलग हैं. दरअसल, मुहर्रम का चांद नजर आते ही सभी शिया मुसलमानों के घरों और इमामबाड़ों में मजलिसों का दौर शुरू हो जाता है. पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम मनाया जाता है और जुलूस निकाले जाते हैं.

क्या है इसका महत्व और इतिहास?

शिया मुसलमानों के लिए आशुरा इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाने का दिन है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आशुरा के दिन ही हजरत इमाम हुसैन, उनके बेटे, घरवालों और साथियों को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया गया था. कर्बला एक छोटा सा कस्बा है जो इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में स्थित है. हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन और उनके परिवार का उस समय के खलीफा यजीद बिन मुआविया के आदमियों ने कत्ल कर दिया था.

कहा जाता है कि कर्बला में हुए इस धर्म युद्ध में एक तरफ इमाम हुसैन के साथ 72 लोग थे तो वहीं दूसरी तरफ यजीद की 40,000 सैनिको की फौज थी. हजरत इमाम हुसैन की फौज में कई मासूम थे, जिन्होंने यह जंग लड़ी और उनकी फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे, जबकि दूसरी तरफ यजीद की विशाल सेना की कमान उमर इब्ने सअद के हाथों में थी.  यह भी पढ़ें: Islamic New Year 2019: इस्लामिक न्यू ईयर की कब से हो रही है शुरुआत, जानें मुस्लिम समुदाय के लिए कितना खास है मुहर्रम का महीना

प्रचलित मान्यता के अनुसार, इराक में यजीद नाम का एक क्रूर शासक था और उसने अपने पिता व उमैया वंश के संस्थापक मुआबिया की मौत के बाद खुद को इस्लामी जगत का खलीफा घोषित कर दिया था. यजीद ने हजरत मुहम्मद के नाती हजरत हुसैन को अपने कबीले में शामिल होने का न्योता दिया, जिसे हजरत हुसैन ने ठुकरा दिया. कहा जाता है कि इसी बात को लेकर यजीद ने हुसैन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. इराक में हुए इस धर्म युद्ध में हजरत हुसैन अपने परिवार और दोस्तों के साथ शहीद हो गए.

गौरतलब है कि यौम-ए-आशुरा 10 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन शिया समुदाय के लोग काले कपड़े पहनकर इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हुए मातम मनाते हैं. इसके साथ ही सड़कों पर जुलूस निकाले जाते हैं. मुहर्रम के महीने को मातम का महीना कहा जाता है, इसलिए इस महीने शिया मुसलमान सभी तरह के जश्न से दूर रहते हैं. इस दौरान ज्यादातर लोग काले रंग के ही कपड़े पहनते हैं.