Amalaki Ekadashi 2019: आमलकी एकादशी 17 मार्च को, जानिए इस दिन क्यों की जाती है आंवले के वृक्ष की पूजा

फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘आमलकी एकादशी’ कहा जाता है. इस पर्व पर आंवले के पेड़ की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. इस संदर्भ में मान्यता है कि इस दिन विधिवत व्रत एवं पूजा करने से शत्रुओं एवं अन्य विपदाओं पर विजय प्राप्ति होती है.

भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

Amalaki Ekadashi 2019: फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी (Ekadashi) को ‘आमलकी एकादशी’ (Amalaki Ekadashi) कहा जाता है. इस पर्व पर आंवले के पेड़ (Amla Tree) की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है. इस संदर्भ में मान्यता है कि इस दिन विधिवत व्रत एवं पूजा  (Vrat And Puja) करने से शत्रुओं एवं अन्य विपदाओं पर विजय प्राप्ति होती है. आधे-अधूरे कार्य सफलता पूर्वक संपन्न होते हैं एवं सभी पापों से मुक्ति मिलती है.

आमलकी यानी आंवले को हमारे धर्मग्रंथों में अमृत तुल्य पवित्र फल माना जाता है. पद्म पुराण में उल्लेखित है कि आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु के विशेष आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ है. इस वजह से यह वृक्ष देवताओं में अधिक प्रिय माना जाता है. कहीं-कहीं इसे गंगा-तुल्य भी कहा जाता है, इसलिए विशेष अवसरों पर आंवले एवं उसके वृक्ष की पूजा की जाती है.

आमलकी एकादशी व्रत का महत्व

पद्म पुराण के अनुसार, आमलकी एकादशी व्रत के पुण्य का प्रताप किसी तीर्थ पर जाने एवं यज्ञ करवाने जितना लाभकारी होता है. ऐसा भी कहा जाता है कि आमलकी एकादशी व्रत करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहने का आशय यह है कि आमलकी उपवास करने से मानव श्री विष्णु जी के परमधाम पहुंच जाता है. यह भी पढ़ें: Ekadashi Vrat In Year 2019: एकादशी के दिन व्रत करने पर बेहद प्रसन्न होते हैं भगवान विष्णु, देखें साल 2019 में पड़नेवाली तिथियों की पूरी लिस्ट

इस उपवास के महात्म्य का वर्णन ब्रह्माण्ड पुराण में मिलता है. जिसमें उल्लेखित है कि इस व्रत को करने से एक हजार गाय दान देने जितना पुण्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. आमलकी एकादशी का महत्व अक्षय नवमी जितना भी बताया गया है. अक्षय नवमी के दिन भी आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है.

आंवले के वृक्ष का आध्यात्मिक पक्ष

मान्यता है कि विष्णुजी की विशेष कृपा से सृष्टि के आरंभ में ही आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी. इसके पीछे एक कथा प्रचलित है. विष्णुजी की नाभि से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई थी. एक बार ब्रह्मा जी के मन में स्वयं के बारे में जानने की जिज्ञासा पैदा हुई, कि वह कौन हैं, उनका जन्म कैसे और कब हुआ. इन सारे सवालों का जवाब हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी ने परमब्रह्म की कठोर तपस्या शुरु की. ब्रह्मा जी की तपस्या से प्रसन्न होकर परब्रह्म विष्णु प्रकट हुए.

अपने सामने साक्षात विष्णुजी को देखकर ब्रह्मा जी की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले. ब्रह्मा जी की भक्ति भावना से भगवान विष्णु बहुत प्रभावित हुए. ब्रह्मा जी के आंसूओं से आंवले का वृक्ष उत्पन्न हुआ. इसके पश्चात विष्णु जी ने कहा, कि आपके आंसुओं से उत्पन्न आंवले का वृक्ष एवं आवंला मुझे बहुत प्रिय रहेगा और आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष की जो भी व्यक्ति पूजा करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे, और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी. यह भी पढ़ें: Vijaya Ekadashi 2019: भगवान राम ने किया था विजया एकादशी का व्रत, जानिए इसका महत्व और पूजा विधि

आमलकी का पूजा विधान

आमलकी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को एकादशी की पूर्व संध्या यानि दशमी से ही व्रत के नियमों का पालन शुरु कर देना चाहिए. इस दिन केवल एक समय वह भी सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. इसी रात से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए रात्रि को सोने से पूर्व विष्णु जी का ध्यान करके सोना चाहिए. अगले दिन प्रातःकाल सुर्योदय से पूर्व ही स्नान-ध्यान कर लेना चाहिए. अगर गंगा या कोई पवित्र नदी की सुविधा नहीं हो तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना बेहतर होगा. तत्पश्चात स्वच्छ कपड़ा पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा, पुष्प और जल लेकर संकल्प करना चाहिए.

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