Ashfaqulla Khan's Birth Anniversary:- आज देश मना रहा है अशफाक उल्ला खां की 120वीं जयंती, जानें कब और कैसे गांधी से टूटा इनका मोह और नरमपंथी से गरमपंथियों में हुए शामिल
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई में हिंसा और अहिंसा दोनों दलों की अहम भूमिका रही है. लेकिन अंग्रेजी सरकार ने जिस तरह से आंदोलनकारियों पर नृशंसतापूर्वक कार्रवाई की और हजारों निर्दोषों की जान ली, युवा क्रांतिकारियों का खून खौल उठा. वे समझ गये कि अंग्रेजों से विनम्रता से की गयी लड़ाई कभी कारगर नहीं होगी.
Ashfaqulla Khan's Birth Anniversary: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई में हिंसा और अहिंसा दोनों दलों की अहम भूमिका रही है. लेकिन अंग्रेजी सरकार ने जिस तरह से आंदोलनकारियों पर नृशंसतापूर्वक कार्रवाई की और हजारों निर्दोषों की जान ली, युवा क्रांतिकारियों का खून खौल उठा. वे समझ गये कि अंग्रेजों से विनम्रता से की गयी लड़ाई कभी कारगर नहीं होगी. इस तरह युवा क्रांतिकारियों ने अपनी अंदाज में समय-समय पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने शुरु करवाए. इन्हीं युवा क्रांतिकारियों में एक थे अशफाक उल्ला खां. जिन्होंने थोड़े ही समय में अंग्रेज अफसरों की नींदें उड़ा दी थी. काकोरी कांड में शामिल होने के कारण अशफाक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, और मात्र 27 साल की उम्र में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.
कौन थे अशफाक उल्ला खां
अशफाक उल्ला खाँ का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जिले में हुआ था. पिता शफीकुर रहमान और मां मजहरुन्निशां की छह संतानों में सबसे छोटे और सबके दुलारे थे. शफीकुर रहमान पुलिस विभाग में कार्यरत थे. 1920 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का बिगुल बजाया था, तब 20 वर्षीय अशफाक स्कूल में पढ़ते थे. गांधीजी के असहयोग आंदोलन का असर अशफाक पर इस कदर चढ़ा कि बिना अपने करियर की परवाह किये वे आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. अशफाक गांधीजी से बहुत ज्यादा प्रभावित थे. फरवरी 1922 में किसानों के एक ग्रुप ने संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर आग लगा दी. इस कांड में कई पुलिस वालों को जान से हाथ धोना पड़ा.
क्रांतिकारियों की इस कार्रवाई का विरोध करते हुए गांधीजी ने अपना अहसयोग आंदोलन वापस ले लिया और युवा क्रांतिकारियों से पल्ला झाड़ लिया. गांधीजी का कहना था कि निहत्थों पर आक्रमण करने वालों के साथ वे काम नहीं कर सकते. गांधी जी के इस तरह कदम पीछे खींच लेने से अशफाक को गांधीजी से बहुत निराशा हुई, क्योंकि यह निर्णय लेते समय गांधी जी भूल गये थे कि अमृतसर में निहत्थे बच्चों और महिलाओं पर अंग्रेज अफसरों ने गोलियों की वर्षा करवाई थी, जिसमें हजारों निर्दोषों की जानें गयी थीं. गांधीजी से अलग होने के बाद अशफाक उग्रवादी क्रांतिकारियों के संगठन में शामिल हो गये.
क्या था काकोरी कांड
गांधीजी से अलग होने के बाद युवा क्रांतिकारियों ने महसूस किया कि हथियार बंद अंग्रेजों से लड़ने के लिए सबसे पहले अपने अपने संगठन को विस्तार देना होगा और दूसरे हथियार का जवाब हथियार से देना होगा. अशफाक उल्ला खां ने शाहजहांपुर के ही राम प्रसाद बिस्मिल से हाथ मिला लिया, हालांकि दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर था, मगर दोनों की मंजिल एक थी 'आजादी'. 8 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने शाहजहांपुर में एक सिक्रेट बैठक आयोजित की. मुद्दा था संगठन को मजबूत बनाने के लिए हथियार जमा करना. पहले सबने तय किया कि ट्रेन से ले जाये जा रहे सरकारी हथियारों को लूट लिया जाये, मगर शीघ्र ही उन्होंने अपना निर्णय में परिवर्तन लाते हुए हथियार के बजाय सीधा सरकारी खजाना लूटने का फैसला किया.
इस तरह हथियारों की भी व्यवस्था हो जाती औऱ फंड की भी. अगले ही दिन यानी 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, शचीन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्दी लाल, मनमथनाथ गुप्ता समेत कई क्रांतिकारियों ने शाहजहांपुर से लखनऊ जा रहे सरकारी खजाने को काकोरी गांव के पास रोककर पूरा खजाना अपने कब्जे में कर वहां से गायब हो गये. बाद में इस घटना को 'काकोरी कांड' के रूप में याद किया जाने लगा.
जब पठानी मित्रों ने किया विश्वासघात
काकोरी कांड के 17 वे दिन यानी 26 सितंबर 1925 को अंग्रेजी सिपाहियों ने राम प्रसाद बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया. अशफाक उल्ला घटना को अंजाम देने के बाद फरार होकर बनारस (वाराणसी) पहुंच गये. बनारस में इंजिनियरिंग कंपनी में कार्य करते हुए अशफाक ने विदेश जाकर इंजीनियरिंग पढ़ने की योजना बनाई. अपने कुछ पठानी मित्रों के सहयोग से वे दिल्ली होते हुए जहाज से विदेश निकल जाना चाहते थे, लेकिन उनके पठानी मित्रों ने उनके साथ विश्वासघात करते हुए दिल्ली में ही उन्हें पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया.
अशफाक को फैजाबाद जेल में बन्द किया गया. उनके खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चला. उनका मुकदमा उनके भाई वकील रियासतुल्लाह लड़ रहे थे. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के प्रभाव के आगे कानून कमजोर पड़ गया. काकोरी ट्रेन डकैती के अपराध में राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन को मौत की सजा सुनाई गयी, जबकि शेष क्रांतिकारियों को उम्र कैद की सजा मुकर्रर की गयी. 19 दिसंबर 1927 की सुबह अशफाक उल्ला खाँ को फांसी पर चढ़ा दिया गया. इस तरह आजाद भारत के सपने दिखाने वाला यह युवा क्रांतिकारी जीवन के 27 बसंत गुजारकर चल बसा.