अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस: भारत में परिवार एक परंपरा है
परिवार, एक अदृश्य स्पर्श जिसकी कल्पना मात्र से ही सुकून मिलता है, जहां रिश्तों की घनी छाया में सबकुछ सीखने को मिलता है. परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई माना जाता है, लेकिन ये कहना गलत नहीं कि परिवार समाज की सबसे मजबूत इकाई है, जो एक सभ्य समाज के निर्माण में मुख्य योगदान देती है.
परिवार, एक अदृश्य स्पर्श जिसकी कल्पना मात्र से ही सुकून मिलता है, जहां रिश्तों की घनी छाया में सबकुछ सीखने को मिलता है. परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई माना जाता है, लेकिन ये कहना गलत नहीं कि परिवार समाज की सबसे मजबूत इकाई है, जो एक सभ्य समाज के निर्माण में मुख्य योगदान देती है. परिवार के महत्व का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आज पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन है. ऐसे में लाखों लोग अपने परिवार से दूर कहीं न कहीं फंसे हुए हैं. सभी जल्द से जल्द अपने परिवार के बीच पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि पूरी दुनिया में कोई कितना ही आधुनिक क्यों न हो जाए, कितना भी व्यस्त हो जाए, लेकिन परिवार के साथ जो खुशी और सुकून है उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता और विश्व के लोगों कों परिवार की इसी अहमियत को समझाने के लिए हर साल 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है.
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने के कारण:
कहते हैं एक सभ्य समाज की रचना में परिवार की मुख्य भूमिका रहती है. इसलिए संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली ने 1993 में एक प्रस्ताव पास कर 15 मई को परिवार दिवस मनाने की घोषणा की. दरअसल बच्चे परिवार में ही रिश्ते, अच्छे, बुरे की समझ सीख पाते हैं. इसलिए अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को परिवार के महत्व और इसके मूल्य के बारे में समझना है. साथ ही, उन मुद्दों को उजागर करना जो दुनिया भर में परिवारों को प्रभावित करते हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया में कई देशों ने अपने यहां परिवार दिवस मनाते आ रह हैं या लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए वर्षों से प्रयासरत हैं, जो परिवार के मुद्दों पर ध्यान देने पर आधारित हैं.
भारत में परिवार:
परिवारों को दो प्रकार में बांट सकते हैं, एकल परिवार और संयुक्त परिवार. प्राचीन काल से ही भारत में संयुक्त परिवार की परम्परा को अपनाया गया. हमारे देश में परिवार को मर्यादा और आदर्श की परंपरा सो जोड़ा गया. जहां एक छत के नीचे अनगिनत रिश्ते मिलते हैं. जिनसे लाख मतभेद होने पर भी रिश्ते को स्नेह से सींच कर जीवंत बनाते हैं. भारत में जितना परिवार का महत्व है उतना शायद ही किसी अन्य देश में है. हांलाकि मेट्रो शहरों में बड़ी-बड़ी चमचमाती बिल्डिंगों में ज्यादातर एकल परिवार ही नजर आते हैं. लेकिन गांवों में आज भी पांच-पांच पीढ़ियां एक साथ रहती हुई नजर आ सकती हैं. जहां रिश्तों की बगिया हरदम गुलजार रहती है. संयुक्त परिवार की इसी व्यवस्था की वजह से आज भारत की नींव ग्रामीण ही हैं.
देश में कितने परिवार:
वर्ष 2001 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में कुल 191,963,935 हैं यानी करीब 19 करोड़. हालांकि वर्तमान में यह संख्या बढ़कर करीब 24 करोड़ हो गई है, लेकिन अधिकारिक डाटा जनगणना के बाद ही रिलीज़ किया जाएगा. 2001 में 19 करोड़ में से 13.7 करोड़ परिवार ग्रामीण भारत में रहते हैं, जबकि 5.3 करोड़ परिवार शहरों में निवास करते हैं. अगर परिवार में सदस्यों की संख्या के आधार पर बात करें तो 2001 में एक सदस्य वाले परिवारों की संख्या 6,821,456 थी. उनमें से 4,809,179 गांव में और 2,012,277 शहरों में निवास करते हैं.
वहीं 2001 में 2 सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 2001 के सेंसस में 15,716,184 थी. वहीं 3 सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 21,274,978 थी. 4 सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 36,523,918 थी. वहीं 35,878,776 परिवार ऐसे हैं, जिनमें 5 सदस्य हैं. 6 से 8 सदस्यों वाले परिवारों की संख्या 53,966,544 है. वहीं देश में 21,782,079 परिवार ऐसे हैं, जिनमें 9 या उससे अधिक सदस्य हैं.