Chaturmas 2022: क्यों जाते हैं भगवान विष्णु चार माह के लिए योग-निद्रा में? जानें इस संदर्भ में दो आध्यात्मिक कथाएं!

चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष के 11वें दिन (एकादशी) शुरू होती है, जिसे देव शयनी एकादशी कहते हैं, और इसकी समाप्ति कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के 11वें दिन (एकादशी) होती है, इसे देव उठनी एकादशी कहते हैं.

भगवान विष्णु (Photo Credits: Facebook)

चातुर्मास आषाढ़ शुक्लपक्ष के 11वें दिन (एकादशी) शुरू होती है, जिसे देव शयनी एकादशी कहते हैं, और इसकी समाप्ति कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के 11वें दिन (एकादशी) होती है, इसे देव उठनी एकादशी कहते हैं. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार चातुर्मास में भगवान शिव के परिवार को छोड़कर भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवता योग-निद्रा में चले जाते हैं. इन चार मास के लिए सृष्टि का संचालन भगवान शिव स्वयं करते हैं. इसलिए हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है. ज्ञात हो कि हिंदू धर्म के अधिकांश बड़े पर्व इसी चातुर्मास में ही पड़ते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष देवशयनी एकादशी व्रत 10 जुलाई, रविवार को रखा जायेगा.

सृष्टि के मूल संचालक श्रीहरि एवं अन्य देवी-देवताओं के योग निद्रा में जाने के कारण श्रावण, भाद्रपद, आश्विन एवं कार्तिक मास इन चार माहों तक हर तरह के शुभ एवं मांगलिक कार्य प्रतिबंधित हो जाते हैं. कार्तिक मास शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन श्रीहरि एवं अन्य देवी-देवताओं के योग निद्रा से बाहर आने के बाद एक बार पुनः विवाह समेत सभी मांगलिक एवं शुभ कार्य किये जायेंगे. लेकिन बहुत से लोगों के मन में आज भी यह प्रश्न कौंधता है कि आखिर चार मास के लिए श्रीहरि योग निद्रा में क्यों जाते हैं. हमारे पौराणिक ग्रंथों में इस संदर्भ में दो कथाएं वर्णित हैं. यह भी पढ़ें : Amarnath Yatra 2022: खराब मौसम के चलते अमरनाथ यात्रा स्थगित, बाबा बर्फानी के गुफा मंदिर की ओर जाने की इजाजत नहीं

पहली कथा

बताया जाता है कि एक बार अतुलित बलशाली राक्षसराज शंखचूड़ से भगवान विष्णु का कई सालों तक युद्ध चला. अंततः आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन विष्णु जी शंखचूर्ण का संहार करने में सफल हुए. लेकिन इतने लंबा समय तक मायावी राक्षस से युद्ध करके भगवान विष्णु बहुत थक गये. तब माँ लक्ष्मी के साथ सारे देवी देवताओं ने उन्हें विश्राम करने की सलाह दी. विष्णु जी ने सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव को सुपुर्द कर विश्राम करने पाताल लोक चले गये. चार माह बाद जब उनकी निद्रा टूटी तो वह दिन कार्तिक मास की एकादशी का दिन था. इसके बाद से इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाने लगा.

दूसरी कथा

एक बार राजा बलि की बढ़ती शक्ति पर नियंत्रण रखने के लिए भगवान विष्णु वामन रूप धरकर बलि के पास पहुंचे. बलि ने कहा, हे ब्राह्मण देवता आपको जो चाहिए मांगें मैं दूंगा. वामन देव ने तीन पग जमीन मांगी. बलि ने कहा, आप तीन पग जमीन नाप कर ले लें. वामन देव ने पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश नापने के बाद, बलि से पूछा, तीसरा पग कहां रखूं. बलि वामन रूप भगवान विष्णु को अपने दिव्य शक्ति से पहचानते हुए अपना सिर आगे कर दिया. वामन देव बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर कोई एक वर मांगने को कहा. बलि ने कहा, प्रभु आप हमेशा के लिए हमारे पाताल में निवास करें. वचनबद्ध विष्णु जी मना नहीं कर सके. लक्ष्मी जी को सारी बात पता चली तो वह गरीब स्त्री बन बलि से मिलीं. लक्ष्मी जी की दीन-हीन अवस्था देख बलि ने उन्हें अपनी बहन बना लिया. लक्ष्मी जी ने बलि से कहा अगर आप अपनी बहन को खुश देखना चाहते हैं तो मेरे पति को मुझे दे दो. दानवीर बलि बहन को निराश किये बिना श्रीहरि को उन्हें सौंप दिया. विष्णुजी बलि की उदारता से पुनः बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने बलि से वादा किया कि आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे. यह परंपरा आज भी चली आ रही है.

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