Bhalachandra Sankashti Chaturthi 2022: कैसे पड़ा गणपति का नाम भालचंद्र? जानें भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी का महत्व, पूजा-विधि, मुहूर्त एवं चंद्रोदय काल?
Ganesh (Photo Credits: Pixabay)

चैत्र माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. सनातन धर्म के अनुसार हर चतुर्थी का दिन श्रीगणेश के नाम समर्पित है. शुक्लपक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी, और कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्ठी चतुर्थी कहते हैं. भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेशजी की पूजा एवं चंद्रमा का दर्शन करने का विधान है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से गौरी गणेश की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च (सोमवार) 2022 को मनाई जायेगी. आइये जानें इस चतुर्थी का महात्म्य, पूजा विधि, मुहूर्त एवं व्रत कथा क्या है.

व्रत एवं पूजा का विधान

भालचंद्र चतुर्थी के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ एवं लाल रंग का वस्त्र धारण कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामनाओं को व्यक्त करें. अब घर के मंदिर के सामने एक स्वच्छ चौकी रखकर उस पर लाल रंग का नया वस्त्र बिछायें. चौकी के सामने बैठते समय ध्यान रहे कि आपका मुंह पूर्व की तरफ हो. अब आसन पर गणेशजी एवं गौरीजी की प्रतिमा स्थापित करने के पश्चात धूप-दीप प्रज्जवलित करें. अब भगवान श्रीगणेश का निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा शुरु करें.

गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।

उमासुतं शोकविनाशकारकम् नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

सर्वप्रथम गणेश जी के मस्तक पर पीले चंदन का तिलक लगाएं एवं दूर्वा, तिल, गुड़, मोदक एवं फल अर्पित करें. अब ऊँ गं गणपतये नमः का जाप करें. अब माता गौरी को रोली का तिलक लगाएं, महिलाएं पीले रंग का सिंदूर लगायें, और निम्न मंत्र का जाप करें

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके.

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते.

मां गौरी को भी फल-फूल एवं मिष्ठान अर्पित करें और अंत में भगवान गणेश एवं माता गौरी की आरती उतारें.

इसके बाद सूर्यास्त से पूर्व गणेश-गौरी की पुनः पूजा करें. इसके बाद हाथ में पुष्प लेकर भालचंद्र संकष्टि चतुर्थी व्रत-कथा का पाठ करें या सुनें.

अब चंद्रोदय होने पर तांबे के लोटे में चीनी और चावल मिले जल से अर्घ्य देकर दीप प्रज्जवलित कर अपनी पूजा की पूर्णता का आशीर्वाद प्राप्त करें.

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी महत्व

गणेश पुराण के अनुसार, एक बार चंद्रमा ने गणपति का उपहास किया, जिससे गणेशजी ने उन्हें शाप देते हुए कहा कि तुम्हें देखनेवाले को कलंक लगेगा. देवताओं के अनुरोध पर गणेशजी ने अपने शाप को सीमित करते हुए कहा, कि केवल भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी को तुम अदर्शनीय रहोगे, जबकि कृष्णपक्ष चतुर्थी को मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी. तुम मेरे ललाट पर स्थित रहोगे. इस गणपति भालचंद्र बन गए. गणपति के मस्तक पर स्थित चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति का मस्तिष्क जितना शांत होगा, उतनी ही कुशलता से वह अपना काम कर सकेगा. भालचंद्र चतुर्थी के दिन गौरी-गणेश का व्रत एवं पूजा-अर्चना करनेवाले जातक को गौरी-गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है. नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की आराधना से सुख-सौभाग्य में वृद्धि तथा घर-परिवार पर आ रही विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है एवं रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं, और जीवन में यश, धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें : Shab-e-Barat 2022 Greetings: शब-ए-बारात पर ये ग्रीटिंग्स WhatsApp Stickers, HD Wallpapers और GIF Images के जरिये भेजकर दें मुबारकबाद

भालचंद्र संकष्टि चतुर्थी 2022 पूजा मुहूर्त

संकष्टि चतुर्थी पूजा का मुहूर्तः 12.04 PM से 12.53 PM तक

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च 2022 का शुभ मुहूर्त

भालचंद्र संकष्टि चतुर्थी प्रारंभः 08.20 AM (21 मार्च, सोमवार, 2022) से

भालचंद्र संकष्टि चतुर्थी समाप्तः 06.24 AM (22 मार्च, मंगलवार, 2022) से

चंद्रोदय कालः भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय रात 09.47 बजे होगा.