Year Ender 2019: अयोध्या से लेकर राफेल तक इस साल के सुप्रीम कोर्ट के कुछ अहम फैसले
साल 2019 भारतीय न्यायपालिका के दृष्टिकोण से काफी अहम वर्ष कहा जाएगा, क्योंकि इस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने सालों से लंबित एवं कुछ चौंकानेवाले ऐतिहासिक फैसले सुनाएं, साथ ही जनहित नजरिये से भी कुछ व्यवस्थाएं भी मुहैया करवाईं, जो न्यायापालिका के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया, जो आनेवाले दिनों में भारत के भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं.
पिछले कुछ वर्षों के मुकाबले साल 2019 भारतीय न्यायपालिका के दृष्टिकोण से काफी अहम वर्ष कहा जाएगा, क्योंकि इस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने सालों से लंबित एवं कुछ चौंकानेवाले ऐतिहासिक फैसले सुनाएं, साथ ही जनहित नजरिये से भी कुछ व्यवस्थाएं भी मुहैया करवाईं, जो न्यायापालिका के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया, जो आनेवाले दिनों में भारत के भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं. हैरानी की बात यह है कि ये सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसले साल के उतरते माहों में लिए.
आइये जानें आखिर सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों ने कौन-कौन से फैसले लिए, जिसके लिए यह वर्ष विशेष रूप से याद रखा जायेगा...
अयोध्या मामला:
अयोध्या में रामलला मंदिर का मामला सालों से चला आ रहा था. अधिकांश लोगों को यह विश्वास था कि इस पर फैसला आना संभव नहीं है, लेकिन मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एसए नज़ीर एवं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ वाली अदालत ने अंततः अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को रामलला को सौंपते हुए मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन जमीन देने का आदेश दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाने को भी कहा, तथा इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी शामिल करने का आदेश दिया. वर्षों पुराने इस मामले की सुनवाई 40 दिनों में पूरी की गयी.
यह भी पढ़े: नववर्ष पर अर्थव्यवस्था को सुद्दढ़ बनाएंगी केंद्र सरकार की ये महत्वपूर्ण योजनाएं
फडणवीस सरकार को बहुमत साबित के साथ लाइव टेलीकास्ट का आदेश:
पिछले दिनों महाराष्ट्र में हुए चुनाव और उसकी नाटकीय तरीके से रातों-रात हुए शपथ-ग्रहण वाले देवेंद्र फडणवीस सरकार के खिलाफ जब विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने उन्हें न सिर्फ विधानसभा में पूर्ण बहुमत साबित करने का आदेश सुनाया बल्कि इसका लाइव टेलिकास्ट भी कराने का आदेश दिया था. इसके साथ ही जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने राज्यपाल को अस्थाई अध्यक्ष नियुक्त करने का भी आदेश दिया.
बम विस्फोट कर सबको एक साथ मार दो:
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण एवं उस पर नियंत्रण रखने के प्रयासों पर दिल्ली सरकार के तमाम दावों पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को गैस चैंबर में रहने के लिए क्यों विवश किया जा रहा है? अच्छा होगा कि बम विस्फोट कर उन्हें एक साथ मार दो. दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की घातक स्थिति और सरकारों की नाकामी पर बिफरे सुप्रीम कोर्ट की इतनी तल्ख टिप्पणी किसी भी राज्य के लिए की गयी पहली टिप्पणी है. जस्टिस अरुण मिश्र एवं जस्टिज दीपक गुप्ता की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी.
मैमोरी कार्ड या पेन ड्राइव बना अहम दस्तावेज:
साल 2017 में कोच्चि में चलती कार में केरल की एक अभिनेत्री का यौन उत्पीड़न किया गया था. इस घटना का वीडियो एक फोन के मेमोरी कार्ड में रिकॉर्ड किया गया था. इस मामले में आरोप दिलीप नामक शख्स को गिरफ्तार किया गया था. केरल हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न के आरोपी दिलीप की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें दिलीप ने मेमोरी कार्ड की मांग की थी. कोर्ट ने कहा था कि मेमोरी कार्ड को दस्तावेज के रूप में पेश नहीं किया जा सकता, लेकिन केरल हाईकोर्ट के फैसले पर कुछ दिनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जस्टिज एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने कहा कि यदि आपराधिक मामले में अभियोग मेमोरी कार्ड या पेन ड्राइव की सामग्रियों पर निर्भर है तो इसे अहम दस्तावेज माना जाना चाहिए.
समझौते के आधार पर दुष्कर्म का मामला:
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के एक और फैसले को दरकिनार करते हुए दुष्कर्म के आरोपी को पीड़ित महिला के साथ हुए समझौते के बाद उस पर दुष्कर्म की कार्रवाही खत्म करने का आदेश दिया. इससे पूर्व केरल हाईकोर्ट ने इस केस को बंद करने से इंकार करते हुए कहा था कि सहमति से शारीरिक संबंध बनने के बावजूद यह मामला 376 के तहत बनता है, लिहाजा इसे निरस्त नहीं कर सकते. इस फैसले के खिलाफ आरोपी साजु पीआर ने सुप्रीमकोर्ट में अपील किया. सुप्रीमकोर्ट के माननीय न्यायाधीश जस्टिस एएम खानविल्कर की पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के शपथपत्र और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही खत्म करनी चाहिए.
राफेल पर भाजपा सरकार को मिली क्लीन चिट:
गत लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के खिलाफ राफेल विमान सौदा सर्वाधिक चर्चा का मुद्दा था. इसे लेकर दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम ने इस सौदे के पूरी तरह से सही होने की न केवल मुहर लगाई, बल्कि यह भी कहा कि इस मामले में दोबारा किसी तरह की सुनवाई की जरूरत नहीं है.
चीफ जस्टिज का ऑफिस भी आरटीआई के दायरे में:
इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भी अद्भुत माना गया, जब सुप्रीम कोर्ट ने माना कि चीफ जस्टिस का ऑफिस (सीजेआई) भी आरटीआई के दायरे में रखा जाए, और स्पष्ट किया कि जनता के प्रति उसकी जवाबदेही को नकारा नहीं जा सकता. यद्यपि कोर्ट ने यह भी कहा कि आरटीआई के माध्यम से कुछ भी जानकारी नहीं दी जा सकेगी. आरटीआई दायर करते समय न्यायपालिका की स्वतंत्रता का ध्यान भी रखना होगा. इसी मामले में 10 जनवरी 2010 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का कार्यालय आरटीआई कानून के दायरे में आता है. फैसले में कहा गया था कि न्यायिक स्वतंत्रता न्यायाधीश का विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उस पर एक जिम्मेदारी है. कोर्ट ने यह फैसला 3-2 से सुनाया.
अयोग्य लेकिन लड़ सकते हैं चुनाव:
गत वर्ष कर्नाटक में चले सियासी उठापटक के बीच विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने कांग्रेस और जेडीएस के 17 विधायकों को अयोग्य करार दिया था. इस लंबे ड्रामे के बाद कर्नाटक में एचडी कुमार स्वामी की सरकार गिर गयी थी. बाद में जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही फैसला तो बताया मगर साथ ही यह भी कहा कि वे चुनाव लड़ सकते हैं. कोर्ट का मानना था कि इस्तीफे से स्पीकर का अधिकार खत्म नहीं होता है.
चौकीदार चौर है मामला:
गत लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी का नरेंद्र मोदी पर चौकीदार चोर है का कथित जुमला भी काफी सुर्खियों में था. इस संदर्भ में जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की माफी की अर्जी को स्वीकारते हुए उन्हें चेतावनी देकर कर छोड़ दिया था. इस मामले में सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने राहुल गांधी को चेताते हुए कहा था कि आप आगे से सावधान रहिए.
आपने माफी मांगी है इसलिए आपको हम छोड़ रहे हैं. उनका कहना था कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के प्रति सोच समझकर बयान देना चाहिए.