अरुणाचल प्रदेश में पनबिजली परियोजनाओं का विरोध क्यों
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

अरुणाचल प्रदेश में बनने वाली मेगा पनबिजली परियोजनाएं हमेशा विवाद के केंद्र में रही हैं. स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इसका विरोध करते रहे हैं."राज्य में पहले से ही दर्जनों बांध और बिजली परियोजनाएं हैं. स्थानीय आदिवासियों को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ा है. अब यह परियोजना कई गांवों के सैकड़ों परिवारों को उनके पुरखों की जमीन से बेघर कर देगी. सरकार हमें बांध के फायदे तो गिना रही है. लेकिन इससे स्थानीय लोगों को होने वाली दिक्कतों की ओर उसका कोई ध्यान नहीं है. हमें बांध नहीं, अपनी जमीन चाहिए,” पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तावित 11 हजार मेगावाट क्षमता वाली अपर सियांग मल्टीपरपज स्टोरेज प्रोजेक्ट के विरोध में आंदोलन करने वाले पारोंग गांव के मुखिया तारोक सीराम डीडब्ल्यू से यह बात कहते हैं.

अरुणाचल प्रदेश में बनने वाली मेगा पनबिजली परियोजनाएं हमेशा विवाद के केंद्र में रही हैं. स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इसका विरोध करते रहे हैं. अब ताजा विवाद प्रस्तावित नई परियोजनाओं को लेकर हो रहा है. रॉयटर्स न्यूज एजेंसी ने अपनी खास रिपोर्ट में बताया है कि करीब एक अरब डॉलर की लागत से ऐसे 12 प्रोजेक्ट पूरे किए जाने हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि 23 जुलाई को बजट पेश करते समय वित्त मंत्री इसकी औपचारिक घोषणा कर सकती हैं. सरकार ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर के दौरे के मौके पर बांध का विरोध करने वाले दो स्थानीय वकीलों को गिरफ्तार कर लिया था. वो दोनों इस परियोजना के विरोध में मंत्री को ज्ञापन देना चाहते थे.

नए हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट की क्या जरूरत

तिब्बत से निकलने वाली सियांग नदी को वहां यारलुंग सांगपो कहा जाता है. यह अरुणाचल प्रदेश में अपनी सहायक नदियों - लोहित व दिबांग - से मिलकर असम में प्रवेश करने पर ब्रह्मपुत्र बन जाती है. सियांग नदी के बेसिन में अब तक 29 पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है, जो अपने निर्माण के विभिन्न चरण में है. अब ताजा परियोजना के तहत बनने वाला 300 मीटर ऊंचा बांध पूरे महाद्वीप का सबसे ऊंचा बांध होगा. पर्यावरणविदों का कहना है कि भारत ने चीन की ओर से सांगपो नदी पर प्रस्तावित 60 हजार मेगावाट क्षमता वाले मेगा बांध के मुकाबले के लिए इस इलाके में 18,326 मेगावाट क्षमता वाली परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई है.

बांध का विरोध कर रहे स्थानीय वकील दुग्गे अपांग, जिनको ईबो मिली के साथ केंद्रीय मंत्री के दौरे के समय गिरफ्तार किया गया था, डीडब्ल्यू से कहते हैं, "सरकार को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि इस परियोजना के कारण कई गांवों के लोग विस्थापित हो जाएंगे. इसका प्रतिकूल असर उनके पुरखों की जमीन के अलावा इलाके के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र, वन्यजीवों के रहने की जगह, जैव विविधता, लोगों की आजीविका और उनकी सांस्कृतिक परंपराओं पर भी पड़ेगा.”

क्या है स्थानीय लोगों के आंदोलन की वजह

अपर सियांग जिला प्रशासन ने 22 जून को इस परियोजना का विरोध कर रहे इलाके के 12 गांवों के पंचायत सदस्यों और मुखिया की एक बैठक बुलाई थी. इसका मकसद लोगों को प्रस्तावित परियोजना से होने वाले फायदों के बारे में जानकारी देना था. दरअसल, लोगों के विरोध के कारण सरकार इलाके में इस परियोजना के लिए सर्वेक्षण का काम भी शुरू नहीं कर पा रही है.

पारोंग के मुखिया टारोक सीराम बताते हैं, "जिला उपायुक्त ने राष्ट्रहित में हमसे विरोध नहीं करने की अपील की. लेकिन हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? हमारे गांव में 43 घर पूरी तरह डूब जाएंगे. कुल 116 परिवारों में से बाकी विस्थापित हो जाएंगे.”

आंदोलन करने वालों की दलील है कि इस बांध के कारण इलाके में रहने वाली आदी जनजाति की पुश्तैनी जमीन पानी में डूब जाएगी. इसके कारण इस जनजाति के करीब एक लाख लोग भूमिहीनों की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे. इस समुदाय के किसानों के संगठन सियांग इंडीजीनस फार्मर्स फोरम के अध्यक्ष गेगांग जिजोंग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "इस परियोजना से स्थानीय आबादी को भारी नुकसान होगा. यही वजह है कि हम बीते 15 साल से इलाके में बनने वाली पनबिजली परियोजनाओं के खिलाफ आंदोलन करते आ रहे हैं. हमें यहां बांध की जरूरत नहीं है. लोग इलाके में परियोजना के सर्वेक्षण के खिलाफ हैं."

कानून क्या कहता है

पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि दरअसल बीते साल संसद में पारित एक नए वन कानून ने स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ा दी है. वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2023 के तहत केंद्र सरकार को अंतरराष्ट्रीय सीमा के सौ किलोमीटर के दायरे में वन क्षेत्र की किसी भी जमीन का सामरिक रूप से अहम परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल कर सकती है. इसके लिए वन विभाग की मंजूरी की कोई जरूरत नहीं होगी. अपर सियांग परियोजना को भी सामरिक रूप से महत्वपूर्ण परियोजना की श्रेणी में रखा गया है.

दूसरी ओर, जिला प्रशासन बांध के विरोध को खास तवज्जो देने के लिए तैयार नहीं है. अपर सियांग के उपायुक्त हेग लैलांग डीडब्ल्यू से कहते हैं, "कुछ लोग इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं. लेकिन कई लोग इसके समर्थन में भी हैं. राष्ट्रहित में और सामरिक लिहाज से यह परियोजना जरूरी है."

जमीनी सच्चाई क्या है

केंद्र सरकार के नीति आयोग ने वर्ष 2017 में सबसे पहले इस परियोजना के लिए बांध का प्रस्ताव दिया था. लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण अब तक इसके लिए सर्वेक्षण तक नहीं हो सका है. इस परियोजना के निर्माण का जिम्मा नेशनल हाइड्रो पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) को सौंपा गया है. एनएचपीसी के एक अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि स्थानीय लोगों के विरोध से पैदा होने वाली जमीनी स्थिति को देखते हुए इस परियोजना का निर्माण कार्य शुरू होने में अभी कम से पांच साल का समय लग सकता है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस साल की शुरुआत में अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार करते हुए मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने लोगों को आश्वासन दिया था कि कोई भी परियोजना लोगों की सहमति से ही लागू की जाएगी. लेकिन इसके बावजूद सरकार ने इस परियोजना पर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.

स्थानीय वकील अपांग कहते हैं, "ऐसी किसी भी मेगा परियोजना का समाज, स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ता है. लेकिन सरकार ने पनबिजली परियोजनाओं के लिए इन दोनों पहलुओं की अनदेखी की है. लोगों को विकास का लालच देकर भरमाया जा रहा है. लेकिन हम किसी भी कीमत पर इस परियोजना की अनुमति नहीं देंगे.”