
नई दिल्ली: भारत सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 (Waqf Amendment Act 2025) को 8 अप्रैल 2025 से लागू कर दिया है. इसकी आधिकारिक जानकारी भारत के राजपत्र (The Gazette of India) में प्रकाशित अधिसूचना के जरिये दी गई. अधिसूचना में कहा गया है, "वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की धारा 1 की उपधारा (2) के तहत प्राप्त शक्तियों का उपयोग करते हुए, केंद्र सरकार 8 अप्रैल 2025 को इस अधिनियम के प्रवर्तन की तिथि घोषित करती है."
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 अब आधिकारिक रूप से लागू हो चुका है. केंद्र सरकार ने जहां इसे पारदर्शिता और बेहतर प्रशासन के लिए जरूरी बताया है, वहीं धार्मिक संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने इसे संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा है.
आज से लागू हुआ वक्फ संशोधन कानून
#BREAKING Waqf Amendment Act 2025 to come into effect from today. Centre issues notification. pic.twitter.com/YdVg24mINj
— Live Law (@LiveLawIndia) April 8, 2025
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, केंद्र ने डाली कैविएट
वक्फ अधिनियम 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं. इन याचिकाओं में इस नए कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं में प्रमुख याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद कई राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता.
इन याचिकाओं पर सुनवाई की संभावित तिथि 15 अप्रैल 2025 बताई जा रही है, हालांकि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अभी इसका उल्लेख नहीं है.
7 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश संजिव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को आश्वासन दिया कि याचिकाओं को शीघ्र सूचीबद्ध किया जाएगा.
कैविएट एक प्रकार की अग्रिम याचिका होती है, जिसे कोई पक्ष अदालत में यह सुनिश्चित करने के लिए दायर करता है कि उसके पक्ष को सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए. केंद्र सरकार ने इसी उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की है.
कैसे पास हुआ यह कानून?
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 को दोनों सदनों में लंबी बहस और विपक्ष के विरोध के बावजूद पास किया गया. इसके बाद 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी मंज़ूरी दी, जिससे यह कानून बनने का रास्ता साफ हो गया.
क्या है विवाद की जड़?
इस कानून में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, नियंत्रण और हस्तांतरण से जुड़े कुछ प्रावधानों को लेकर विवाद है. विरोध करने वालों का कहना है कि नए संशोधन से धार्मिक अल्पसंख्यकों की संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है.
अब सबकी निगाहें 15 अप्रैल की संभावित सुनवाई पर टिकी हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह साफ होगा कि यह कानून लागू रहेगा या इसमें कुछ बदलाव संभव हैं.