नई दिल्ली, 15 अगस्त : पुडुचेरी की पूर्व उपराज्यपाल किरण बेदी ने कोलकाता में ट्रेनी महिला डॉक्टर की हत्या मामले पर आईएएनएस से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों का कारण खराब परवरिश है. सिर्फ सजा देना ही काफी नहीं है, बल्कि आरोपी की मानसिक स्थिति का विश्लेषण करना भी बहुत जरूरी है. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि हर देश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की जरूरत है.
सवाल : निर्भया जैसी घटनाओं के बाद भी हम नहीं सुधरे, घटना पर पुलिस का रवैया कैसा होना चाहिए, ऐसा क्या हो कि ऐसी घटनाओं पर लगाम लगे?
जवाब : ऐसी घटनाओं पर लगाम न लगी है और न ही लग पाएगी, क्योंकि हमारे पास ऐसे लड़कों की पीढ़ी है जिनकी परवरिश ठीक नहीं हुई, जिनकी पढ़ाई ठीक नहीं हुई, जिनकी ग्रोथ ठीक नहीं हुई है, जिन्हें इंसानियत नहीं सिखाई गई है. उन्हें जिम्मेवार इंसान नहीं बनाया गया. यह पहली और आखिरी घटना नहीं है क्योंकि अब भी हमारी परवरिश सही नहीं है.
लड़कियों को कहना मानने वाली, जिम्मेदारी समझने, अहिंसक होने वाली बनाते हैं. वहीं, लड़कों के लिए वो जो नियम बनाएं वो सही है, मां बाप ऐसे लड़कों से डरते हैं. हमारे समाज ने इसे बनाया है और समाज में हर घर का नियम है कि उन्होंने अपने लड़के को कैसी परवरिश दी है. यह हमारी गंदी परवरिश की वजह है. क्योंकि कोई भी अच्छा इंसान ऐसा नहीं करता है. अच्छा इंसान आसमान से नहीं टपकता है. वह पैदा होता है और बनाया जाता है. उन्हें अच्छा पढ़ाया जाता है और समझदार बनाया जाता है.
कोई ऊपर से नहीं टपकता है और ये किसने बनाया? किसने परवरिश की? ये हमारे हर घर में होता है और जहां उन्होंने समझदार व्यक्ति दिए हम आज उसके अच्छे जिम्मेवार हैं. लेकिन, गैर जिम्मेवार बहुत सारे लोग हैं. न यह घटना पहली है और न ही आखिरी है क्योंकि अब भी समझ नहीं रहे हैं कि परवरिश कितनी बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है. यह हमारी पैरेंटिग की जिम्मेवारी नहीं समझ रहे हैं.
वे सोचते हैं कि पैदा करना हमारा हक है. माता-पिता बनना हमारा सामाजिक हक है, लेकिन परवरिश करना और अच्छे इंसान बनाना हमारा कर्तव्य है या नहीं वे इस बात को नहीं समझ रहे हैं. तो इसलिए लड़कियों के लिए यह खतरा बना रहेगा. बदलाव आना है तो लड़कियों में नहीं आना है, बल्कि बदलाव लड़कों में आना है. समस्या लड़कों की ओर से आ रही है कि कैसे लड़के ऐसी हरकतें करते हैं? हर लड़के के अभिभावक होते हैं, हर लड़के के मां और पिता दोनों होते हैं. इन दोनों ने अपनी क्या जिम्मेवारी निभाई?
जब भी ऐसी हरकत होती है तो मैं परवरिश की बात करती हूं, लेकिन दूसरी बात यह कि जब समाज में पहले ऐसी हरकत हुई, उसमें जिन गैर-जिम्मेदार लड़कों ने हरकत की, पुलिस उसकी मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं देती है और मीडिया में यह छपती नहीं है. मैं समझती हूं कि हर ऐसी घटना में लड़के का मानसिक विशलेषण होना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया? क्योंकि घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पूछताछ करना बहुत जरूरी है.
हम सिर्फ यह न देखें कि किसी ने जुर्म किया और उसे गिरफ्तार किया गया, बल्कि हम यह भी देखें कि उसने ऐसा क्यों किया? इस बात का विश्लेषण जरूरी है कि चूक कहां पर हुई है? नाकामी कहां से शुरू हुई है? जहां से उसके फ्लड गेट खुले, वह क्यों नहीं काबू में आया? क्या उसके घर में शराब का चलन था? क्या घर में मारपीट होती थी? क्या घर में माता-पिता की इज्जत नहीं थी? क्या बड़ों के लिए कोई सत्कार नहीं था? क्या उसका गैर-जिम्मेदार व्यवहार था? क्या उसके पास फालतू के पैसे थे? क्या उसके अंदर पहले से जुर्म के लक्षण थे? क्या वह स्कूल से ड्रॉप आउट था? अध्यापक ने क्या भूमिका निभाई? वह किस स्कूल से पढ़ा है? इस बात का पूरा विश्लेषण मीडिया और सोशल मीडिया पर उपलब्ध होना चाहिए क्योंकि मीडिया के लिए यह एक घटना है, जिसकी रिपोर्ट की और दूसरी घटना की ओर चले गए. लेकिन समाज को सबक कैसे मिलेंगे? जब तक हम पता नहीं करेंगे और बताएंगे नहीं कि यह हुआ क्यों? अगर घटना के कारण का कोई पैटर्न निकलकर आता है तो समाज को इसके बारे में पता होना चाहिए. यह जानना बहुत जरूरी है कि अपराधी का इतिहास क्या है? और घटना के पीछे का कारण क्या था?
सवाल : घटना स्थल पर रिनोवेशन कराया जा रहा है, तो इससे क्या फर्क पड़ेगा?
जवाब : यह तो गलत है. सवाल ही नहीं उठता की क्राइम सीन के साथ छेड़छाड़ हो. जब तक कि जांच पूरी नहीं होती है और पुलिस तथा सीबीआई उस जगह को रिलीज नहीं करती, तब तक वह इलाका सील होना चाहिए. फिर वहां से आपको सबूत कैसे मिलेंगे? ब्लाइंड केस में फॉरेंसिक विभाग से पता चलता है. सबूतों के आधार पर दोषी को क्राइम सीन से लिंक किया जाता है. खून, बाल या कपड़े का कोई टुकड़ा उसी से डीएनए को लिंक किया जाता है.
सवाल : निर्भया के गुनहगारों को फांसी दी गई. क्या आपको लगता है कि इस केस में भी वैसा ही होना चाहिए?
जवाब : क्यों नहीं? नया रेप केस का कानून यह है कि अगर गैंग रेप है तो 100 प्रतिशत कानून में फांसी की सजा लिखी हुई है.
सवाल : क्या फांसी की सजा होने से लोगों की मानसिकता बदलेगी? क्या लोग ऐसा काम करने से डरेंगे?
जवाब : अभी तक तो कोई खास असर नहीं हुआ है क्योंकि उनको पता है कि ट्रायल अगले सात साल तक चलेगा. अगर यह ट्रायल एक साल के अंदर खत्म हो जाए तो फर्क पड़ेगा. ज्यादा से ज्यादा दो साल में खत्म हो जाए तो. जब तक लोगों को याद होगा कि यह हुआ था. उनकी याद में ही मामले पर सजा हो तो उसका असर होता है, नहीं तो नहीं होता है.
सवाल : जब आप तिहाड़ में थीं, उस समय आपने बहुत सारे रिफॉर्म किए थे. क्या आज के समय में भी आपको लगता है कि कुछ रिफॉर्म करने की आवश्यकता है?
जवाब : हमेशा के लिए रिफॉर्म की जरूरत है. किसी को शिक्षित करना, किसी को सुधारना यह तो जिंदगी भर की यात्रा है. रिफॉर्म का तो रोज का काम है, क्योंकि आप सोचते हुए दिमाग से डील करते हैं, जो बिगड़ा हुआ है. इसलिए, बिगड़ते हुए दिमाग को रास्ते पर लाना रोज का काम है. वह बिगड़ा हुआ है इसलिए जेल में है. रिफॉर्म और खुद को ठीक रखना, पूरी जिंदगी की यात्रा है. यह लाइफ में एक बार होने वाली घटना नहीं है. जेल में तो रिफॉर्म करना 100 प्रतिशत जरूरी है, जिससे अपराधी बाहर निकलकर दोबारा जुर्म न करें. इसलिए उनको रिफॉमेट्रीस कहते हैं.
सवाल : तिहाड़ से सीएम केजरीवाल की लेटर पॉलिटिक्स पर आप क्या कहेंगी?
जवाब : मैंने न्यूज़ में पढ़ा है कि नियमों के अनुसार सुपरिटेंडेंट ने लेटर को पास नहीं किया है, क्योंकि कोई भी लेटर सुपरिटेंडेंट की इजाजत के बिना नहीं लिखा जा सकता है.
सवाल : वक्फ बिल पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब : अब यह बिल (संसद की) संयुक्त समिति में जाएगा क्योंकि इस पर सभी की राय जरूरी है. लेकिन, ऐसा कानून जरूर चाहिए. हर चीज की जिम्मेदारी समाज में होनी जरूरी है. क्योंकि यह समाज की प्रॉपर्टी है, किसी व्यक्ति की प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं है. जमीन समाज की है. हम जमीन लेकर पैदा नहीं होते हैं.
सवाल : बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं, उस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जवाब : जो उनके सलाहकार नियुक्त हुए हैं, उन्होंने स्पष्ट कहा है कि पूरे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दी जाएगी. उन्होंने एक मंदिर का भी निरीक्षण किया है. अब समय बताएगा कि जो वह कह रहे हैं कर पाएंगे (या नहीं). लेकिन हर देश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की जरूरत है, नहीं तो मानवता नहीं है. हर व्यक्ति को सुरक्षित रहने का अधिकार है. मैंने पहली बार देखा कि इस मामले को लेकर लंदन में सामूहिक विरोध-प्रदर्शन हुआ है. उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं की रक्षा के लिए मांग की है. यह अच्छा है कि समाज में ऐसी सतर्कता आ रही है