भोपाल: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बुधवार को यहां कहा कि देश बदल रहा है. देश मजबूत कदमों से बढ़ रहा है. सामाजिक जागरण भी हो रहा है. एक समय में भारत विश्वगुरु था. तक्षशिला और नालंदा में दुनिया से पढ़ने के लिए लोग आते थे. अब फिर से अवसर आया है कि हम देश को वैश्विक शक्ति बना सकते हैं. नायडू ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए अपनी विदेश यात्रा का उल्लेख किया और कहा कि लैटिन अमेरिका के देश में लोग अपनी मूलभाषा भूल गए हैं, उसकी जगह स्पेनिश आ गई है.
नायडू उपराष्ट्रपति के रूप में विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष हैं.
उन्होंने कहा, "भारत में भी अंग्रेजों ने इसी प्रकार का प्रयास किया, किंतु महान शक्ति के कारण हमारी भाषाएं बच गईं. अभी खतरा बरकरार है. यदि हमने आने वाली पीढ़ी को मातृभाषा से नहीं जोड़ा तो दिक्कत होगी."
उन्होंने कहा, "देशभर में संचालित पाठ्यक्रम भारतीय भाषाओं में होने चाहिए. यह असंभव नहीं है. प्रयास करेंगे, तो संभव होगा. भाषा और भावनाएं साथ-साथ चलती हैं. मातृभाषा में ही अपनी भावनाएं अच्छे से अभिव्यक्त होती हैं. दूसरी भाषाएं सीखने में दिक्कत नहीं है, लेकिन मातृभाषा पहले सीखनी चाहिए. मातृभाषा 'आंख' है और दूसरी भाषा 'चश्मा' है. यदि आंख ही नहीं होगी तो चश्मे का कोई उपयोग नहीं है."
नायडू ने सलाह दी, "हमें घर में बच्चों से मातृभाषा में बात करनी चाहिए. शिक्षा में मातृभाषा को अनिवार्य किया जाना चाहिए. हमें गंभीरता से अपनी भाषाओं में शिक्षा देने की नीति बनानी चाहिए. प्रत्येक व्यक्ति को मां, मातृभूमि और मातृभाषा को कभी नहीं भूलना चाहिए."
उन्होंने कहा, "हमें सब प्रकार के भेदभाव समाप्त कर आगे बढ़ना चाहिए. जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को जल्द से जल्द समाप्त करना होगा. महिलाओं के साथ होने वाला अत्याचार दु:खद है. हमारे देश में महिलाओं का बहुत सम्मान रहा है. हम अपने देश को 'भारतमाता' कहते हैं, 'भारतपिता' नहीं."
विश्वविद्यालय की महापरिषद एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, "पत्रकारिता के क्षेत्र में विश्वविद्यालय ने श्रेष्ठ कार्य किया है. विश्वविद्यालय से निकले पत्रकारों ने नैतिकता के नए मानदंड स्थापित किए हैं. विश्वविद्यालय ने यह कार्यक्रम भारतीय वेश-भूषा और हिंदी में सम्पन्न कर अभिनंदनीय कार्य किया है."
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा, "भारत में पत्रकारों ने स्वतंत्रता का आंदोलन चलाया है. आजादी के बाद पत्रकारों ने भारत के नवनिर्माण में भूमिका निभाई. तीसरे दौर में आपातकाल आया, तब पत्रकारों ने अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई लड़ी. वर्तमान में मीडिया में व्यावसायिकता हावी हो रही है."
वरिष्ठ पत्रकार एमजी वैद्य, अमृतलाल वेगड़ और महेश श्रीवास्तव को विद्या वाचस्पति (डी़.लिट़) की मानद उपाधि दीक्षांत समारोह में प्रदान की गई. तृतीय दीक्षांत समारोह में 27 पीएचडी, 39 एमफिल और 202 स्नातकोत्तर उपाधियां प्रदान की गईं. कुलपति जगदीश उपासने ने उपाधि प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को दीक्षोपदेश दिलाया.