देहरादून: श्रद्धालुओं के लिए माघ और कुभं मेले के दौरान उत्तराखंड (Uttarakhand) में गंगा की सहायक नदियों में औद्योगिक प्रदूषण के बावजूद पवित्र डुबकी लगाना पर्याप्त रूप से सुरक्षित है. विशेषज्ञों ने यह बात कही है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने हाल ही में उत्तरखांड पर्यावरण सुरक्षा एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttarakhand Environment Protection & Pollution Control Board) को कुमाऊं क्षेत्र में गंगा की सहायक नदियों में रंगीन अपशिष्टों को छोड़ने पर नियंत्रण का निर्देश दिया था.
कुमाऊं शराब की भट्टियों, कागज और चीनी मिलों का केंद्र है. जल प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक अपशिष्ट है और मिलें काफी लंबे अरसे से गंगा की सहायक नदियों ढेला, बेहला और कोसी में अपशिष्ट बहा रही हैं. पर्यावरण संरक्षण के नियमों के अंतर्गत अपशिष्ट निर्वहन की अनुमत सीमा 50 हैजन तक है.
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पिछले महीने कुंभ और माघ मेले की शुरुआत के बाद सीपीसीबी ने सख्ती से पहाड़ी राज्य को इन सहायक नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट छोड़ने से रोका था. यूईपीपीसीबी में पर्यावरण वैज्ञानिक अंकुर कंसल ने यहां कहा, "हमने इन उद्योगों को तुरंत नदियों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग करने के लिए कहा है, जिसका उन्होंने पूरी तरह से पालन किया हैं."
हालांकि कुमाऊं में एक भी सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र नहीं है और इन नदियों में प्रवाह प्रदूषण 15 से 20 हैजन तक बना हुआ है, जो अनुमत स्तर से बहुत कम है. कंसल ने कहा, "इस समय, उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश सीमा के सभी निगरानी केंद्रों पर रंगीन जल प्रदूषण औसतन 15 से 20 हैजन है."