शिमला से लेकर सूरत तक शहरों में वोटिंग हुई कम, मतदान को लेकर शहरी उदासीनता बरकरार

निर्वाचन आयोग ने शनिवार को कहा कि गुजरात में पहले चरण के विधानसभा चुनावों में कई सीट पर मतदान प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन सूरत, राजकोट और जामनगर जैसे प्रमुख जिलों में मतदान को लेकर शहरी मतदाताओं की उदासीनता ने कुल आंकड़े (मतदान प्रतिशत) को घटा दिया.

Vote (Photo: ANI)

नयी दिल्ली, तीन दिसंबर: निर्वाचन आयोग ने शनिवार को कहा कि गुजरात में पहले चरण के विधानसभा चुनावों में कई सीट पर मतदान प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन सूरत, राजकोट और जामन गर जैसे प्रमुख जिलों में मतदान को लेकर शहरी मतदाताओं की उदासीनता ने कुल आंकड़े (मतदान प्रतिशत) को घटा दिया. Gujarat Assembly Elections 2022: पांच या इससे अधिक बार चुनाव जीतने वाले सात विधायक मैदान में.

इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में भी शहरी निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं में मतदान को लेकर कोई खास उत्साह देखने को नहीं मिला. हिमाचल प्रदेश में शिमला शहरी विधानसभा सीट पर सबसे कम 62.53 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया. यह आंकड़ा राज्य में हुए औसत मतदान 75.6 फीसदी से 13 प्रतिशत कम है.

निर्वाचन आयोग ने कहा कि गुजरात के शहरों में भी मतदान को लेकर लोगों में उदासीनता देखी गई, जिससे पहले चरण में मतदान प्रतिशत में कमी आई. आयोग ने बताया कि सूरत, राजकोट और जामनगर जैसे जिलों में गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के औसत मतदान 63.3 प्रतिशत से कम वोट पड़े.

मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने गुजरात के मतदाताओं से पांच दिसंबर को दूसरे चरण के मतदान के दौरान अपने मताधिकार का बढ़-चढ़कर इस्तेमाल करने की अपील की, ताकि पहले चरण में हुए कम मतदान की भरपाई की जा सके.

निर्वाचन आयोग के मुताबिक, कुमार ने कहा कि अब 2017 के विधानसभा चुनावों के मतदान प्रतिशत को पार करने की उम्मीदें मतदाताओं की बढ़ी हुई भागीदारी पर टिकी हैं. आयोग के अनुसार, कच्छ जिले की गांधीधाम सीट पर सबसे कम 47.8 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, जो पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 6.34 प्रतिशत कम है.

आयोग ने बताया कि सबसे कम मतदान वाले निर्वाचन क्षेत्रों में सूरत का करंज दूसरे स्थान पर रहा, जहां 2017 में हुए न्यूनतम 55.91 फीसदी मतदान से भी 5.37 प्रतिशत कम वोट पड़े. चुनाव आयोग के मुताबिक, गुजरात के प्रमुख शहरों और शहरी इलाकों में न सिर्फ 2017 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले मतदान प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गई है, बल्कि वहां राज्य के औसत मतदान 63.3 फीसदी से भी कम मतदान हुआ है.

2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान प्रतिशत 66.79 प्रतिशत रिकॉर्ड किया गया था. आयोग ने एक बयान में रेखांकित किया, “अगर इन विधानसभा क्षेत्रों में इस बार मतदान प्रतिशत 2017 के उनके मतदान प्रतिशत के बराबर रहता, तो भी राज्य में औसत मतदान का आंकड़ा 65 प्रतिशत के पार चला जाता.”

ग्रामीण और शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय अंतर दर्ज किया गया.

नर्मदा जिले के देदियापाड़ा ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र (82.71 प्रतिशत) और गांधीधाम शहरी सीट (47.86 प्रतिशत) के बीच मतदान प्रतिशत में 34.85 फीसदी का अंतर देखने को मिला.

इसके अलावा, महत्वपूर्ण शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में औसत मतदान प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम रहा है. आयोग ने कहा, “कई जिलों में ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में शहरी निर्वाचन क्षेत्रों की तुलना में बहुत अधिक मतदान हुआ है. उदाहरण के लिए, राजकोट में सभी शहरी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत में गिरावट दर्ज की गई है.”

कुमार शहरी मतदाताओं और युवाओं में मतदान को लेकर उदासीनता के मुद्दे को हल करने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं. कुमार राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से कम मतदान वाली सीट और मतदान केंद्रों की पहचान करने का आग्रह कर रहे हैं, ताकि मतदाताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने और शहरी उदासीनता के मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाया जा सके.

शहरी मतदाताओं की उदासीनता को खत्म करने के लिए आयोग ने सरकारी और निजी संस्थानों में मतदाता जागरूकता मंच स्थापित करने की पैरवी की है, ताकि मतदान की अहमियत पर प्रकाश डालने के साथ-साथ शहरी कामकाजी मतदाताओं को आगे आने के लिए प्रेरित किया जा सके.

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