
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें महिलाओं के लिए करवा चौथ को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई थी. याचिका में यह सुझाव दिया गया था कि करवा चौथ का पालन सभी महिलाओं के लिए किया जाए, चाहे वह विवाहित हों, अविवाहित हों, विधवा हों, तलाकशुदा हों या लिव-इन रिलेशनशिप में हों. याचिका में यह भी दावा किया गया था कि महिलाएं, खासकर विधवाएं, इस अवसर पर भाग लेने से वंचित हैं, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है.
कोर्ट का फैसला
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की पीठ में मुख्य न्यायाधीश शीले नागू और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल शामिल थे. कोर्ट ने याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि यह मामला विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर ₹1,000 का जुर्माना भी लगाया, जिसे पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के गरीब मरीज कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया गया.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि करवा चौथ के संबंध में कानून बनाने का अधिकार संसद और राज्य विधानसभाओं का है, न कि न्यायालय का. इस प्रकार, कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग को स्वीकार नहीं किया और इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
Punjab and Haryana High Court slaps ₹1,000 costs on PIL to make Karwa Chauth compulsory
Read story here: https://t.co/UFFy8anSVF pic.twitter.com/TO6oUXkWTa
— Bar and Bench (@barandbench) January 25, 2025
याचिका में क्या था दावा?
याचिकाकर्ता नरेन्द्र कुमार मल्होत्रा ने अपनी याचिका में दावा किया कि करवा चौथ केवल विवाहित महिलाओं के लिए एक विशेष पर्व है, जिसमें वे अपने पतियों की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए उपवास रखती हैं. लेकिन याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि कुछ महिलाएं, जैसे विधवाएं, तलाकशुदा महिलाएं और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं, इस पर्व से वंचित हैं. याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि इस पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं होना चाहिए और सभी महिलाओं को यह अधिकार मिलना चाहिए कि वे करवा चौथ में भाग लें.
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि करवा चौथ को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मान्यता दी जाए और इसे "माँ गौरा उत्सव" या "माँ पार्वती उत्सव" के रूप में मनाया जाए, ताकि इसे हर महिला के लिए एक विशेष पर्व बना दिया जाए. याचिकाकर्ता ने यह भी आग्रह किया कि कोई भी महिला जो इस पर्व में भाग नहीं लेती, उसे दंडित किया जाए.
कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने का कारण
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह विषय विधानमंडल के तहत आता है और इसे किसी कोर्ट द्वारा नहीं बदला जा सकता. न्यायालय ने यह भी कहा कि अदालतों को सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह विधायिका का काम है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता का उद्देश्य व्यक्तिगत दृष्टिकोण को लागू करना है, जो न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दी, लेकिन ₹1,000 का जुर्माना लगाने का आदेश दिया, जिसे पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के गरीब मरीज कल्याण कोष में जमा किया जाएगा.
किसने किया याचिका का प्रतिनिधित्व?
नरेन्द्र कुमार मल्होत्रा ने खुद याचिका दायर की थी और उनकी तरफ से अधिवक्ता सतिश चौधरी ने न्यायालय में प्रतिनिधित्व किया. वहीं, केंद्र सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन और अधिवक्ता नेहा शर्मा ने याचिका का विरोध किया और इसे खारिज करने का अनुरोध किया.
अंतिम निर्णय
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका पर असंतोष व्यक्त किया और उसे वापस लेने की अनुमति दी. इसके बाद, न्यायालय ने ₹1,000 का जुर्माना लगाया, जिसे पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के गरीब मरीज कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया गया. याचिका के खारिज होने के बाद इस मामले का अंत हुआ.
इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि करवा चौथ या किसी अन्य सांस्कृतिक या धार्मिक पर्व को लेकर कोई भी कानूनी बदलाव केवल विधायिका के माध्यम से किया जा सकता है, न कि अदालतों द्वारा.