Asad Encounter: सुप्रीम कोर्ट ने अतीक के बेटे असद के पुलिस एनकाउंटर पर UP सरकार से मांगी रिपोर्ट, जानें मुठभेड़ पर SC की क्या है गाइडलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग मौकों पर पुलिस एनकाउंटर्स को गलत ठहराया है. साल 2011 में कोर्ट ने कहा था "पुलिस द्वारा फर्जी एनकाउंटर और कुछ नहीं बल्कि निर्दयी हत्या है. और जो इसे अंजाम दे रहे हैं उन्हें मौत की सजा होनी चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद के बेटे असद के पुलिस एनकाउंटर पर यूपी सरकार से रिपोर्ट मांगी है. 13 अप्रैल 2023 को एनकाउंटर में माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और उसके सहयोगी गुलाम मोहम्मद की मौत हो गई. दोनों उमेश पाल मर्डर केस में आरोपी थे. यूपी पुलिस इस एनकाउंटर को लेकर सवालों के घेरे में है.
द हिंदू की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले छह सालों में यूपी पुलिस ने 10,713 एनकाउंटर किए. यूपी पुलिस ने इसे ‘आत्मरक्षार्थ कार्रवाई’ बताया है. इसके मुताबिक, पिछले 6 सालों के दौरान 181 अपराधियों को मारा गया है. ये आंकड़े 20 मार्च 2017 से 12 अप्रैल 2023 तक के हैं.
'फर्जी एनकाउंटर करने वाले को मौत की सजा होनी चाहिए'
सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग मौकों पर पुलिस एनकाउंटर्स को गलत ठहराया है. साल 2011 में प्रकाश कदम बनाम राम प्रसाद विश्वनाथ गुप्ता केस में कोर्ट ने एक टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था "पुलिस द्वारा फर्जी एनकाउंटर और कुछ नहीं बल्कि निर्दयी हत्या है. और जो इसे अंजाम दे रहे हैं उन्हें मौत की सजा होनी चाहिए."
पुलिस एनकाउंटर में मौत को लेकर कई टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक गाइडलाइन जारी की थी.
- कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस एनकाउंटर में मौत होती है, तो FIR दर्ज की जानी चाहिए.
- एनकाउंटर के दौरान मौत की स्थिति में, कथित अपराधी/पीड़ित के परिजन को जल्द जानकारी दी जानी चाहिए.
- धारा 176 के तहत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए.
- घटना की सूचना परिस्थिति अनुसार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) या राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) को दी जानी चाहिए.
- जांच में पुलिस की लापरवाही पाए जाने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए या जांच पूरी होने तक उसे सस्पेंड किया जाए.
- मुठभेड़ के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को न तो बिना बारी के (आउट ऑफ टर्न) प्रमोशन दिया जाना चाहिए, न ही कोई वीरता पुरस्कार. पहले यह सुनिश्चित करें कि ये पुरस्कार तभी दिया जाए, जब संबंधित अधिकारियों की वीरता पर कोई संदेह न हो.
- धारा 176 के तहत मुठभेड़ में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए.