कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, CJI बोले ‘धारा 370 को लेकर बिना सोचे-समझे दायर की गई याचिका’
जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले को कानूनी चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाओं में खामियां है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाओं में सुधार के बाद ही आगे सुनवाई की जाएगी. इस मामलें की अगली सुनवाई अगले हफ्ते को होने वाली है.
नई दिल्ली: जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले को कानूनी चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सुनवाई टाल दी है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि याचिकाओं में खामियां है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाओं में सुधार के बाद ही आगे सुनवाई की जाएगी. इस मामलें की अगली सुनवाई अगले हफ्ते को होने वाली है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सहित जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस न्यायमूर्ति एस ए नजीर की विशेष पीठ ने याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि उन्हें याचिका पढने के बाद भी समझ नहीं रही है. क्योकि याचिकाओं में डिफेक्ट यानि खामियां है. इसलिए याचिका वापस लेकर फिर से नई याचिका सुधार कर दायर की जाए. इसक बाद मामलें पर आगे सुनवाई होगी. कोर्ट ने कहा कि इतने गंभीर मामले में भी लोग बिना सोचे समझे डिफेक्टिव याचिका दाखिल कर रहे हैं.
गोगोई ने एलएल शर्मा से पूछा कि यह याचिका क्या है? यह किस तरह की याचिका है? उन्होंने कहा कि मैंने आधे घंटे तक याचिका पढ़ी लेकिन समझ नहीं सका कि यह याचिका किस बारे में है? बताया जा रहा है कि शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता एम एल शर्मा को डिफेक्टिव याचिका के लिए फटकार भी लगाई है.
शर्मा ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के केंद्र के फैसले के एक दिन बाद छह अगस्त को याचिका दायर की थी. अधिवक्ता ने अपनी याचिका में दावा किया है कि अनुच्छेद 370 पर राष्ट्रपति का आदेश गैरकानूनी है क्योंकि यह जम्मू कश्मीर विधानसभा की सहमति के बिना जारी किया गया.
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आपको बता दें कि अनुच्छेद 370 पर कुल 7 याचिकाएं दायर की गई थीं. इससे पहले मंगलवार को देश की शीर्ष कोर्ट ने राज्य में प्रतिबंधों पर हस्तक्षेप करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि संवेदनशील स्थिति को सामान्य बनाने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए और सुनवाई दो हफ्तों के बाद तय की थी.