जज्बे को सलाम! भारत की पहली महिला ट्रेन चालक सुरेखा यादव, जानिए संघर्षों से भरी उनकी सच्ची दास्तान
कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है. महाराष्ट्र के सतारा जिले की सुरेखा ने भी दुनिया जीती. ऐसी दुनिया जिसमें पटरियों पर रेल दौड़ाने का जिम्मा सिर्फ पुरुषों का था.
कहते हैं हौसले और मेहनत के बल पर दुनिया जीती जा सकती है. महाराष्ट्र (Maharashtra) के सतारा जिले की सुरेखा ने भी दुनिया जीती. ऐसी दुनिया जिसमें पटरियों पर रेल दौड़ाने का जिम्मा सिर्फ पुरुषों का था. ऐसी दुनिया जहां पर ट्रेन चलाने का एकाधिकार पुरुषों का था. उस दुनिया में पहली लोको पायलट बनी सुरेखा. ट्रेन में ड्राइवर की सीट पर बैठी सुरेखा को देखकर कई लोग अचंभित रह जाते. लेकिन सुरेखा की मुस्कान और आत्मविश्वास ने हजारों महिलाओं के भीतर उम्मीद की किरण पैदा की है. आइये, आज भारत की पहली महिला ट्रेन चालक सुरेखा यादव के जज्बे से भरी दास्तां आपको सुनाते हैं.
महाराष्ट्र के सतारा में हुआ जन्म, इंजीनियरिंग में किया डिप्लोमा
सुरेखा यादव (Surekha Yadav) का जन्म वर्ष 1965 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ. उनके पिता का नाम रामचंद्र भोंसले और माता का नाम सोनाबाई है. पांच भाई-बहनों में वे सबसे बड़ी हैं. उन्होंने जिले में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की. जब आगे पढ़ाई का समय आया तब भी सुरेखा के चुनाव ने सबको अचंभे में डाल दिया. अस्सी के दशक में, इंजीनियरिंग की पढ़ाई अधिकांश लड़के ही करते थे. लेकिन सुरेखा ने तय किया कि वे भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करेंगी. उन्होंने यह विषय चुनकर अन्य लड़कियों के लिए मिसाल कायम की. डिप्लोमा पूरी करने के बाद सुरेखा नौकरी के लिए प्रयास करने लगी.
ऐसे तय हुई लोको पायलट की राह
पढ़ाई पूरी करने के बाद एक दिन सुरेखा ने लोको पायलट भर्ती की अधिसूचना देखी. उन्होंने आवेदन कर दिया. जब परीक्षा देने के लिए वे प्रवेश परीक्षा कक्ष में पहुंची तो आश्चर्य में पड़ गईं. न केवल सुरेखा बल्कि परीक्षा नियंत्रक और बाकी अभ्यर्थी भी. सुरेखा के आश्चर्य का कारण था कि वे उस परीक्षा कक्ष में, एक मात्र महिला अभ्यर्थी के रूप में उपस्थित थीं. अन्य व्यक्ति चकित क्यों हो रहे थे, इसका अंदाजा आपको लग ही गया होगा. सुरेखा बताती हैं कि, उन्हें नहीं पता था कि अब तक कोई भी महिला इस कार्य के लिए चयनित नहीं हुईं हैं. सुरेखा यादव नहीं जानती थीं, कि वे इतिहास रचने वाली हैं. परीक्षा के विभिन्न चरण सुरेखा ने पास कर लिए और चयनित हो गईं. यह भी पढ़ें : एनजीटी ने पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन पर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से रिपोर्ट मांगी
इस तरह भारत को मिली पहली महिला ट्रेन चालक
परीक्षा में चयनित सुरेखा ने छह महीने की ट्रेनिंग पूरी की. इसके बाद उन्हें 1989 में असिस्टेंट ड्राइवर के पद पर नियुक्त कर दिया गया. इस तरह सुरेखा यादव, ट्रेन चलाने वाली भारत की पहली महिला बन गई. उन्होंने 29 साल रेलवे में काम किया. लोकल गाड़ी से लेकर एक्सप्रेस ट्रेन और मालगाड़ी तक सब चलाया. वर्ष 1998 में वह माल गाड़ी की ड्राइवर बन गईं और 2011 में एक्सप्रेस ट्रेन की ड्राइवर नियुक्त हुईं. उन्होंने भारतीय रेलवे में सेवा के दौरान अपने हर दायित्व को बखूबी निभाया. वे भारतीय रेलवे के प्रशिक्षण केंद्र में बतौर प्रशिक्षक की भूमिका भी निभाती हैं.
वर्ष 2011 में मिला एशिया की पहली महिला ड्राइवर का खिताब
वर्ष 2011 का महिला दिवस, सुरेखा यादव को जीवन का सबसे बड़ा उपहार दे गया. इस दिन उन्हें एशिया की पहली महिला ड्राइवर होने का खिताब हासिल हुआ. सुरेखा ने पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर ड्राइविंग की थी. इसे सबसे खतरनाक रास्ता माना जाता है. इस पटरी पर रेलगाड़ी चलाने के बाद ही सुरेखा को यह सम्मान मिला. भले ही सुरेखा को इस उपाधि से सम्मानित किया गया हो, लेकिन यह सिर्फ उनका सम्मान भर नहीं था, यह हजारों महिलाओं को देहरी लांघकर अपने सपने पूरे करने का न्यौता था. यह आह्वान था महिलाओं को, कि वे हर वो काम करने की हिम्मत जुटाएं जो वो करना चाहती हैं. उनके कदम कभी न रुकें यह सोचकर कि, अमुक कार्यक्षेत्र सिर्फ पुरुषों के लिए है. सुरेखा यादव की जीवन यात्रा से यही प्रेरणा मिल रही है.