नई दिल्ली: अखंड भारत के सूत्रधार ''भारत रत्न'' लौह पुरुष (Iron man of India) सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) की आज (31 अक्टूबर) 144वीं जयंती है. देश हित से जुड़े कामों में अपना जीवन अर्पित कर चुके सरदार पटेल को आधुनिक भारत का शिल्पकार माना जाता है. उन्होंने अपनी राजनैतिक कौशलता से 560 से अधिक रियासतों का भारत में मिलन किया और अखंड भारत बनाया. भारतीय इतिहास में पटेल के अविस्मरणीय योगदान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का भी दायां व बायां हाथ माना जाता था.
सरदार पटेल का जन्मदिन पूरे देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुजरात के कैरा जिले के नादियाद गांव के किसान लदबाई और झावेरिबाई पटेल के घर पांच भाई-बहनों में सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ. कहा जाता है कि पटेल पर उनकी मां की मानसिकता की गहरी छाप थी. एक आम महिला की तरह सरदार पटेल की मां गांव के सभी बच्चों को इकठ्ठा करती और रामायण, महाभारत की कहानियां सुनाती. इसी दौरान युवा पटेल पर आध्यात्मिक छाप पड़ी. साथ ही उन्हें पिता ने किसानी जिंदगी से रूबरू करवाया. उन्हें किसानी से इतना मोह था कि एक बार अमरीकी पत्रकार द्वारा इनकी सांस्कृतिक गतिविधि के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने जवाब दिया- आप कुछ और पूछें, मेरी संस्कृति तो कृषि ही है.
स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारत के सामने सबसे बड़े चुनौती भारत के असल पुनर्निर्माण की थी. एक बार महात्मा गांधी ने साफ-साफ कहा था कि राज्यों और रजवाड़ों की हर समस्या को केवल सरदार पटेल सुलझा सकते है. 15 अगस्त 1947 तक आते-आते 565 रजवाड़ों को भारत में विलय का राष्ट्रवादी औचित्य समझा देना एक भगीरथी प्रयास था. सिर्फ जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद ही इससे छूटे थे. जिसमें से सितंबर 1948 तक जूनागढ़ और हैदराबाद भी भारत का अंग बन गए.
भारत को अंग्रेजी साम्राज्य से स्वतंत्रता मिलने के बाद बनी पहली अंतरिम सरकार में नेहरू ने प्रधानमंत्री और सरदार पटेल ने उप-प्रधानमंत्री के तौर देश की बागडोर को संभाला. हालांकि लगभग तीन साल बाद 15 दिसंबर 1950 को 75 वर्ष की आयु में पटेल का निधन हो गया. हालांकि इस तीन साल के कार्यकाल में सरदार पटेल ने कई बेहद महत्वपूर्ण काम किए. स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका के बाद पटेल ने उप-प्रधानमंत्री रहते हुए व्यावहारिक एवं सकारात्मक सोच तथा दृढ़ व्यक्तित्व दर्शाते हुए जनता का दिल जीता और ‘लौहपुरूष’ का खिताब अर्जित किया. इससे पहले बारदौली आंदोलन का सफल नेतृत्व करने पर उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाज़ा गया था.