Uttarakhand: जोशीमठ की स्थिति से घबराए पिथौरागढ़ के निवासी, बिजली परियोजना का कर रहे विरोध

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में प्रस्तावित 165 मेगावाट पन बिजली परियोजना के बनने से जोशीमठ जैसे हालात पैदा होने की आशंका से डरे क्षेत्र के 14 गांवों के निवासी इसके निर्माण के विरोध में खड़े हो गए हैं.

Joshimath (Photo : ANI)

पिथौरागढ़, 22 फरवरी: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में प्रस्तावित 165 मेगावाट पन बिजली परियोजना के बनने से जोशीमठ जैसे हालात पैदा होने की आशंका से डरे क्षेत्र के 14 गांवों के निवासी इसके निर्माण के विरोध में खड़े हो गए हैं. ग्रामीणों ने सोमवार शाम को नारेबाजी करते हुए एक लंबा जूलूस निकाला तथा बोकांग-बेलिंग पनबिजली परियोजना को तत्काल रद्द किए जाने की मांग को लेकर उपजिलाधि​कारी को एक ज्ञापन सौंपा. Uttarakhand: कर्णप्रयाग में फटी दीवारें देख डीएम भी हुए हैरान, कभी भी गिर सकते हैं 28 मकान.

यह ‘रन-ऑफ द रिवर’ परियोजना दारमा घाटी में धौलीगंगा नदी पर प्रस्तावित है. ​टीएचडीसी इंडिया द्वारा बनायी जाने वाली इस परियोजना का फिलहाल सर्वेंक्षण चल रहा है. विरोध प्रदर्शन आयोजित करने वाले संगठन दारमा संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूरन सिंह ग्वाल ने कहा, ‘‘अगर इस परियोजना का निर्माण होता है तो कम से कम पांच गांव-तिडांग, ढकार, गू, फिलम और बोन को अन्यत्र विस्थापित करना होगा क्योंकि उनमें भी जोशीमठ की तरह दरारें पड जाएंगी.’’

उन्होंने कहा, ‘‘ परियोजना की बडी सुरंगें बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले विस्फोटकों से गांवों की नींव क्षतिग्रस्त हो जाएगी.’’ ग्वल ने कहा कि इससे इन गांवों के निवासियों द्वारा सदियों से संरक्षित की जा रही जनजाति की संस्कृति भी नष्ट हो जाएगी.

हिमालयी क्षेत्रों में बडी परियोजनाओं का विरोध करते हुए ग्वाल ने कहा कि इनसे क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को अपूरणीय नुकसान पहुंचता है. उन्होंने कहा कि भूधंसाव ग्रस्त जोशीमठ इसका एक ज्वलंत उदाहरण है.

स्थानीय निवासी और ग्राम प्रधान संगठन की प्रदेश अध्यक्ष अंजू रोंकली ने कहा, ‘‘एक तरफ तो सरकार लोगों से सीमांत क्षेत्रों में बसने को कहती है और दूसरी तरफ भूस्खलन को बढ़ावा देने वाली परियोजनाएं लाकर इसके विपरीत हालात पैदा करती है.’’

दारमा घाटी संघर्ष समिति, व्यास और चौदास के ग्राम प्रधान संगठन के अलावा विरोध मार्च में सभी जिला पंचायत और ब्लॉक विकास समिति के सदस्यों तथा धारचूला व्यापार संघ ने भी​ हिस्सा लिया.

दारमा घाटी के एक ग्रामीण रूप सिंह तितियाल ने कहा कि दारमा घाटी अपने हिमनदों और उनसे निकलने वाली धौलीगंगा जैसी नदियों के लिए प्रसिद्ध हैं. परियोजना के लिए सुरंग और बांध बनाए जाने के लिए विस्फोटकों के इस्तेमाल से क्षेत्र का पारिस्थितिकीय तंत्र प्रभावित होगा जिससे हिमनद पिघलेंगे.

भूधंसाव ग्रस्त जोशीमठ नगर में आंदोलनरत ‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ लंबे समय से आरोप लगाती आ रही है कि नगर के हालात के लिए राष्ट्रीय जल विद्युत निगम (एनटीपीसी) की 420 मेगावाट तपोवन-विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना जिम्मेदार है.

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