नई दिल्ली, 1 नवंबर: चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा आलू (Potato) उत्पादक है, लेकिन विगत कुछ महीने से देश में इसकी कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होने के कारण अब आयात करना पड़ रहा है. आलू की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए भूटान से आलू मंगाया जा रहा है. इसके लिए सरकार ने भूटान से 31 जनवरी 2021 तक बगैर लाइसेंस के आलू आयात करने की अनुमति दी है. मगर, बड़े उत्पादकों में शुमार होने के बावजूद आलू की आपूर्ति का टोटा पड़ जाने से इस समय देश में आलू के दाम आसमान पर चढ़ गए हैं. देश के कई शहरों में आलू का खुदरा भाव 50 रुपये प्रति किलो के उपर चला गया है.
आलू के दाम में हुई इस वृद्धि की मुख्य वजह आपूर्ति में कमी बताई जा रही है. देश में आलू के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि बीते फसल वर्ष 2019-20 की रबी सीजन में आलू उत्पादन उम्मीद से कम रहा. अधिकारी ने बताया कि आलू का उत्पादन कम होने की दो मुख्य वजहें रहीं. पहली, यह कि पिछले साल सितंबर और अक्टूबर में बारिश होने से बुवाई देर से हुई और फसल का रकबा भी उम्मीद से कम रहा. दूसरी वजह, यह थी कि फरवरी बारिश होने से प्रति हेक्टेयर पैदावार पर असर पड़ा जिसके चलते उत्तर प्रदेश में उत्पादन का जो अनुमान करीब 160 लाख टन किया जाता था उसके मुकाबले 140 लाख टन से भी कम रहा.
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कारोबारियों ने बताया कि इस साल रबी सीजन के आलू की हार्वेस्टिंग के दौरान बाजार में आलू का भाव अपेक्षाकृत तेज होने और दक्षिण भारत में आलू की मांग रहने के कारण उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज में आलू का भंडारण ज्यादा नहीं हो पाया जिसके चलते इस समय आलू की आपूर्ति की कमी बनी हुई है. एक अधिकारी ने हालांकि बताया, "उत्तर प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज में आलू का भंडारण इस साल 98.2 लाख टन हुआ, जिनमें से करीब 15 लाख टन अभी बचा हुआ है, इसलिए नवंबर तक आलू की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आएगी जबकि नवंबर के आखिर में नई फसल भी उतर जाएगी." देश में सबसे ज्यादा आलू उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल और बिहार क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर आता हैं, जहां रबी सीजन में ही आलू का उत्पादन होता है, मगर इन दोनों राज्यों में भी आलू के दाम में काफी वृद्धि हुई, जिसकी वहज आपूर्ति में कमी है.
आलू के दाम पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने 10 लाख टन आलू टेरिफ रेट कोटे के तहत 10 फीसदी आयात शुल्क पर आयात करने की अनुमति दी है. हालांकि, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत आने वाले और हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ. मनोज कुमार बताते हैं, "उत्तर भारत में इस साल मानसून के आखिरी दौर में ज्यादा बारिश नहीं होने से आलू की फसल जल्दी लगी है और आवक भी नवंबर में शुरू हो जाएगी, जिसके बाद कीमतें नीचे आ सकती है. उन्होंने कहा कि घरेलू फसल की आवक बढ़ने पर ज्यादा आयात करने की जरूरत नहीं होगी."
हॉर्टिकल्चर प्रोड्यूस एक्सपोटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित शाह ने भी बताया, "आलू का आयात होने की संभावना कम है. विदेशों से आलू का आयात करीब 350 डॉलर प्रति टन के भाव पड़ेगा, जिस पर 10 फीसदी आयात शुल्क जोड़ने के बाद करीब 28 रुपये प्रति किलो तक पड़ेगा, जबकि देश में इस समय आलू का थोक भाव 28 से 30 रुपये किलो है. ऐसे में आयात की संभावना कम है. दिल्ली की ओखला मंडी के कारारी विजय अहूजा ने भी बताया कि पंजाब से अगले महीने आलू की आवक शुरू होने वाली है और नई फसल बाजार में उतरने के बाद दाम में नरमी आ सकती है.