मुंबई:- महाराष्ट्र में शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे अब मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के लिए आज तैयार हैं. उद्धव ठाकरे अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के उस सपने को पूरा करने जा रहे हैं. जिसमें उन्होंने कहा था कि शिवसेना का मुख्यमंत्री बने. उद्धव ठाकरे ने मुंबई के शिवाजी पार्क में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. वैसे तो ठाकरे परिवार का महाराष्ट्र पर हमेशा से दबदबा कायम रहा है. सत्ता की चाभी हो या न हो लेकिन उनका लोहा हर पार्टी आज भी मानाती है. लेकिन कभी मातोश्री से सत्ता का रिमोट कंट्रोल चलाने वाले बालासाहेब ठाकरे के परिवार से पहली बार कोई महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने जा रहा है. इसी के साथ अब पर्दे के पीछे से नहीं बल्कि कुर्सी पर बैठकर सत्ता की बागडोर संभालेंगे.
खबरों की माने तो उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में नेताओं समेत बड़ी संख्या में शिवसैनिक भी आएंगे. इसके लिए शिवाजी पार्क में करीब 70 हजार से अधिक कुर्सियां लगाई जा रही हैं, जिसमें VIP और VVIP मेहमानों में नेता, अभिनेता और क्रिकेटर्स शामिल हो सकते हैं. इनके लिए 100 से अधिक कुर्सियों का इंतजाम किया गया हैं. उद्धव ठाकरे आज यानि 28 नवंबर को शाम 6.40 बजे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. मेहमानों की लिस्ट खुद उद्धव और एनसीपी चीफ शरद पवार ने तैयार की है. यह भी पढ़े-उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह के लिए बेटे आदित्य ने सोनिया गांधी को दिया न्योता, बोले-मैं सबकी शुभकामनाएं लेने आया हूं
बता दें कि उद्धव ठाकरे के साथ महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख बालासाहेब थोरात, पूर्व मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन राउत, किसान कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले, विश्वजीत कदम, असलम शेख और वर्षा गायकवाड़ के राज्य मंत्रिमंडल में मंत्रियों के रूप में शपथ ले सकते हैं. इसके अलावा 3 दिसंबर को बहुमत साबित करने के बाद आगे मंत्रिमंडल का विस्तार होगा. वैसे 24 अक्टूबर को विधानसभा चुनावों के नतीजों की घोषणा के बाद महाराष्ट्र में बीते एक महीनों से खूब राजनीतिक ड्रामा चला है.
चप्पे-चप्पे पर तैनात है पुलिस
उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान शिवाजी पार्क के पास तकरीबन दो हजार पुलिस के जवानों को तैनात किया गया है. जिसमें सशस्त्र पुलिस इकाई, राज्य रिजर्व पुलिस बल, दंगा नियंत्रण पुलिस, रैपिड एक्शन टीम, बीडीडीएस की टीम शामिल है. इसके साथ ही ड्रोन से नजर रखी जा रही है और पुलिस के जवान सादे कपड़ो में जनता के बीच मौजूद हैं. इसके अलावा चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी की नजर है. जिसके लिए कंट्रोल रूम भी बनाया गया है. वहीं ट्रैफिक समस्या से बचने के लिए कई रूट को डायवर्ट किया गया है.
फोटोग्राफर से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर
आज जिस उद्धव ठाकरे को लोग एक राजनेता के रूप में जानते हैं, उनकी पहली पसंद फोटोग्राफी है, उन्हें फोटोग्राफी इनती पसंद है कि वे कभी राजनीति की तरफ नहीं आना चाहते थे. उद्धव ठाकरे ने वाइल्ड लाइफ और नेचर फोटोग्राफी करके अपने हुनर का लोहा भी मनाया. उन्होंने 40 साल की उम्र में राजनीति में कदम रखा. लेकिन किसी ने कल्पना नहीं किया होगा कि ठाकरे परिवार का यह बेटा एक सूबे का मुख्यमंत्री बनेगा. वैसे तो उद्धव ठाकरे ने अपने कार्यकौशल और बेहतरीन सुझ-बुझ का परिचय उसी समय दे दिया था जब उनके नेतृत्व में शिवसेना को 2002 में बृहन्मुंबई महानगर पालिका चुनावों में भारी जीत मिली थी.
फिर क्या साल 2003 में उन्हें पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. पार्टी में उद्धव का दबदबा बढ़ने लगा. इसी बीच उद्धव और उनके चचरे भाई राज ठाकरे के बीच 2006 में मतभेद हो गया. नाराज राज ठाकरे ने अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नामक पार्टी बना ली.
मोदी सरकार से बैर ने बना दिया विरोधियों का करीबी
वैसे तो बालासाहेब ठाकरे की पार्टी शिवसेना दो दशकों से एनडीए का हिस्सा रही है. लेकिन उद्धव के हाथ में कमान आने के बाद बीजेपी और सेना के रिश्तों में खटास का दौर शुरू होने लगा. साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने अलग होकर चुनाव लड़ा. फिर क्या इसके बाद बीजेपी की सरकार का हिस्सा होने के बावजूद शिवसेना अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से लगातार मोदी सरकार पर हमला करती रही. फिर उसमें सीमा पर तैनात सैनिकों की शहादत हो या राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा. महंगाई, नोटबंदी कई ऐसे मसलो पर केंद्र को घेरा. वहीं कुछ ऐसे केंद्र के फैसले थे जिनपर शिवसेना ने मोदी सरकार की जमकर तारीफ भी की. जिसमे सर्जिकल स्ट्राइक हो या अनुच्छेद 370 का हटना. लेकिन यह दोस्ती टूट गई.
कभी जो थे बैरी अब बन गए परम प्रिय
अब शिवसेना महा विकास अघाड़ी का हिस्सा बन गई. जिसमें उसके सहयोगी कांग्रेस, एनसीपी और अन्य दल हैं. एक ऐसा दौर भी था जब शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे कांग्रेस पर लगातार हमला करते थे. वहीं उद्धव ठाकरे भी कांग्रेस और एनसीपी पर निशाना साध के जनता से जीत के लिए वोट मांगा करते थे. लेकिन अब वो दौर गुजर गया. क्योंकि जो कल तक बैरी थे आज सत्ता में साथी हैं. अब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आगे यही सबसे बड़ी चुनौती होगी कि कैसे विचारों से अलग पार्टियों का साथ लेकर पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे.