लोकसभा चुनाव 2019: बिहार के सुपौल में आसान नहीं रंजीत रंजन की राह, विपक्ष से दिलेश्वर कामत उम्मीदवार
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के दूसरे चरण के मतदान के बाद राजनीतिक दलों ने तीसरे चरण के चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.
सुपौल: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के दूसरे चरण के मतदान के बाद राजनीतिक दलों ने तीसरे चरण के चुनावी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. ऐसे में कोसी क्षेत्र की सुपौल सीट पर भी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सुपौल लोकसभा क्षेत्र के महत्व को इससे भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) यहां आकर लोगों से कांग्रेस (Congress) के पक्ष में वोट देने की अपील कर चुके हैं.
इस सीट पर एकबार फिर मौजूदा सांसद रंजीत रंजन (Ranjeet Ranjan) का मुकाबला दिलेश्वर कामत से है. पिछले लोकसभा चुनाव में जद (यू) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे दिलेश्वर को रंजीत रंजन ने कड़ी शिकस्त दी थी. उस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत रंजन को 3,32,927 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जद (यू) और राजद गठबंधन उम्मीदवार दिलेश्वर कामत को 2,73,255 मत से ही संतोष करना पड़ा था.
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इस बार दिलेश्वर कामत भाजपा, जद (यू) और लोजपा वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार हैं, इसलिए चुनावी चौसर का हिसाब-किताब लगाने वाले पिछले चुनाव में दूसरे और तीसरे नंबर के वोट उन्हें मिलने की संभावना जता रहे हैं. इसका सीधा लाभ कामत को मिल सकता है.
हालांकि जातीय समीकरण के कारण इन आंकड़ों में जोड़-तोड़ की पूरी गुंजाइश है. इलाके के मतदाताओं के रुख पर काफी समय से नजर रखने वाले पत्रकार कुमार अमर कहते हैं कि कामत को इस बार भाजपा के वोट बैंक का तो पूरा लाभ मिलेगा, लेकिन मुस्लिम और यादव यहां जद (यू) से बिदके हुए हैं. इन मतदाताओं का रुख हालांकि अभी तक स्पष्ट नहीं है.
पड़ोसी संसदीय क्षेत्र मधेपुरा में महागठबंधन प्रत्याशी शरद यादव के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे जन अधिकार पार्टी के नेता और रंजीत रंजन के पति राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव से राजद की नाराजगी का खामियाजा रंजन को भुगतना पड़ रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की चुनावी सभा में भी राजद नेता तेजस्वी यादव के शामिल नहीं होने को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है.
परिसीमन के बाद सहरसा, मधेपुरा और अररिया के कुछ इलाकों को मिलाकर बने संसदीय क्षेत्र सुपौल में अब तक हुए दो चुनावों में पहली बार 2009 में जद (यू) के विश्वमोहन कुमार से रंजीत रंजन को हार का सामना करना पड़ा था. सुपौल संसदीय क्षेत्र में कुल छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें चार पर जद (यू), जबकि एक-एक पर राजद और भाजपा का कब्जा है.
इस लोकसभा चुनाव में सुपौल से 20 उम्मीदवार चुनावी मैदान में खम ठोंक रहे हैं, परंतु सीधी लड़ाई रंजीत रंजन और दिलेश्वर कामत के बीच बताई जा रही है. एस़ एऩ महिला कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और त्रिवेणीगंज निवासी प्रोफेसर मिथिलेश सिंह कहते हैं, "सुपौल में चुनाव हमेशा से जातीय वोट बैंक के आधार पर लड़ा जाता रहा है. प्रदेश के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव का इलाके में दबदबा है और हर जाति में उनको चाहने वाले लोग हैं."
उनका कहना है कि जद (यू) उम्मीदवार होने और बिजेंद्र यादव के नाम पर यादव मतदाता कामत को वोट कर सकते हैं. इसका दूसरा कारण रंजीत रंजन से राजद की नाराजगी भी है. हालांकि रंजीत रंजन को कुछ सवर्णो का मत मिलने की संभावना है. सिंह कहते हैं, "महागठबंधन के सभी घटक दल अगर अपने-अपने वोट बैंकों को कांग्रेस की ओर शिफ्ट करने में सफल हो जाते हैं, तो रंजीत रंजन के लिए राह आसान हो सकती है." सिंह हालांकि यह भी कहते हैं कि इस क्षेत्र में संघर्ष कांटे का है और कौन वोट बैंक कब किस ओर शिफ्ट हो जाए, कहना मुश्किल है.
मतदाताओं की बात करें तो हर साल बाढ़ और पलायन की समस्या झेल रहे सुपौल के लोग ऐसे किसी मसीहा की तलाश में हैं, जो इस समस्या से उन्हें मुक्ति दिला सके. छातापुर निवासी मदन कुमार कहते हैं कि साल 2008 की कुसहा त्रासदी की क्षति से अभी भी यहां के लोग उबर नहीं पाए हैं, और आज भी यहां के पांच प्रखंड हर साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं.
बहरहाल, इस चुनाव में प्रत्याशियों की अधिक संख्या दोनों गठबंधनों की परेशानी बढ़ा सकती है. पिछले चुनाव में 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे और इस बार कुल प्रत्याशियों की संख्या 20 है. ऐसे में बड़े पैमाने पर वोट बंटवारे से इंकार नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि इस चुनाव में परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं.