दिवंगत सुषमा स्वराज: एक तेजस्वी और शक्तिशाली नेता, राजनीतिक कार्यकाल में बतौर नेता कई भूमिकाएं निभाईं
तेजस्वी, शक्तिशाली, अथक भावना से परिपूर्ण पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जिनका मंगलवार रात को निधन हो गया, वह एक ऐसी नेता थीं जिन्होंने अपने लंबे राजनीतिक कार्यकाल में बतौर नेता कई भूमिकाएं निभाईं. एक समर्पित बीजेपी नेता होने के नाते कदाचित उन्हें विवादास्पद संवैधानिक प्रावधान पर सरकार के फैसले से सुखद अनुभूति मिली होगी.
नई दिल्ली : तेजस्वी, शक्तिशाली, अथक भावना से परिपूर्ण पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज (Sushma Swara), जिनका मंगलवार रात को निधन हो गया, वह एक ऐसी नेता थीं जिन्होंने अपने लंबे राजनीतिक कार्यकाल में बतौर नेता कई भूमिकाएं निभाईं. उन्हें भले ही सबसे अधिक याद विदेश में मुसीबत में फंसे भारतीयों तक पहुंचने में सक्रिय होने के साथ विदेश मंत्री की भूमिका को नई उंचाई तक ले जाने के लिए किया जाएगा.
लेकिन अगर अतीत में देखा जाए तो सुषमा का कांग्रेस नेता के तौर पर राजनीति में कदम रखने वाली सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी में 'विदेशी बहू' बनाम 'भारतीय नारी' का चुनावी मुकाबले में खड़े होने भी उतना ही महत्वपूर्ण था.
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बेल्लारी तब कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट थी और भाजपा के लिए तत्कालीन नए कांग्रेस अध्यक्ष के खिलाफ लड़ना महत्वपूर्ण था, क्योंकि विदेशी मूल उस समय का दूसरा महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा था क्योंकि सोनिया का विदेशी मूल का होना उस समय एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा था.
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उनका संक्षिप्त कार्यकाल भी काफी महत्वपूर्ण था, क्योंकि उन्होंने राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं. इसके साथ ही यह भी काफी महत्वपूर्ण रहा कि 1977 में वह 25 साल की उम्र में हरियाणा कैबिनेट की मंत्री बनने वाली सबसे युवा नेता थीं.
भारतीय जनता पार्टी में उनका उदय एल. के. आडवाणी की करीबी होने की वजह से हुआ. वह आडवाणी के उन चार सहायकों में से एक थीं, जिन्हें डी4 के तौर पर जाना जाता था. दिल्ली के इन चार शक्तिशाली नेताओं - सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, अनंत कुमार और एम. वेंकैया नायडू का उस समय पार्टी में काफी दबदबा था.
यूपीए के कार्यकाल के दौरान भाजपा जब विपक्ष में थीं, तब लोकसभा में भाजपा का नेतृत्व सुषमा स्वराज ने किया था. मुखर वक्ता और विचारशील होने के कारण वह सुर्खियों में बनीं रहती थीं. इसके पीछे एक यह वजह भी रही कि उन्हें खुद पर विश्वास था और अकेले आगे बढ़ने से वह कभी नहीं डरी. शायद यही वजह थी कि उन्होंने मीडिया को अपने पास आने और सवाल पूछने से कभी नहीं रोका.
सुषमा स्वराज भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इनर सर्किल में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने विदेश मंत्री की अपनी भूमिका के लिए कई बार प्रधानमंत्री की प्रशंसा हासिल की और अपने पद का कार्यभार पूरी निष्ठा के साथ संभाला. दिल्ली की राजनीति से जुड़े भीतरी सूत्रों के अनुसार, उनसे इस साल लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था. हालांकि उनके इनकार के पीछे की वास्तविक वजह को शायद कभी सार्वजनिक न किया जाए.
निधन से कुछ घंटे पहले ही सुषमा स्वराज ने अनुच्छेद 370 पर निर्णय लेने के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को बधाई दी थी. हालांकि इसमें भी उनकी भूमिका रही. 1996 में लोकसभा में अपने भाषण के दौरान उन्होंने भाजपा की अनुच्छेद 370 को हटाने की योजना के बारे में बताया था, जो कि जो पार्टी के मूल एजेंडे में शामिल था. एक समर्पित भाजपा नेता होने के नाते कदाचित उन्हें विवादास्पद संवैधानिक प्रावधान पर सरकार के फैसले से सुखद अनुभूति मिली होगी.