झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम 2019: हेमंत सोरेन को लोगों ने क्यों किया पसंद और रघुवर दास क्यों नकारा
झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों के लिए मतगणना फिलहाल जारी है. हालांकि अब तक सामने आए नतीजों से यह स्पष्ट है कि झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन राज्य में अगली सरकार बनाने जा रही है.
Jharkhand Assembly Election Results 2019: झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजों के लिए मतगणना फिलहाल जारी है. हालांकि अब तक सामने आए नतीजों से यह स्पष्ट है कि झारखंड में हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के नेतृत्व वाली जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी (JMM-Congress-RJD) गठबंधन राज्य में अगली सरकार बनाने जा रही है. वहीं, रघुवर दास (Raghubar Das) के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) को हाथ से सत्ता गंवानी पड़ रही है. झारखंड में अपने नेतृत्व में महागठबंधन के स्पष्ट बहुमत सुनिश्चित करने के बाद हेमंत सोरेन ने सोमवार को रांची (Ranchi) में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि राज्य की जनता ने विधानसभा चुनाव में स्पष्ट जनादेश दिया है जो मील का पत्थर साबित होगा.
बहरहाल, चर्चा करते हैं उन वजहों की जिसके कारण झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व वाली सरकार को जनता ने नकार दिया और हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले महागठबंधन (Mahagathbandhan) को सत्ता की चाबी सौंपी. यह भी पढ़ें- झारखंड चुनाव परिणाम 2019 का बिहार में अगले साल होने वाले दंगल पर होगा असर, नीतीश-पासवान के तेवर होंगे तल्ख.
हेमंत सोरेन की फेस वैल्यू: झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) गठबंधन ने विधानसभा चुनाव के पूर्व ही हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया था. हेमंत सोरेन झामुमो के संस्थापक और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के बेटे हैं. साल 2013 में वह झारखंड के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने और दिसंबर 2014 तक इस पद पर रहे.
महागठबंधन ने तालमेल और सूझ-बूझ के साथ लड़ा चुनाव: झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए महागठबंधन ने सूझ-बूझ से काम लिया. इसके साथ ही जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी ने आपसी तालमेल बनाए रखा. झारखंड में जेएमएम ने 43, कांग्रेस ने 31 और आरजेडी ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा. महागठबंधन के उम्मीदवारों के लिए तीनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने चुनाव प्रचार और जनसभाएं की.
रघुवर दास की कार्यशैली बीजेपी को पड़ी भारी: झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्यशैली से हुए कथित असंतोष और सरकार चलाने में लालू प्रसाद की नकल करने की बात से जाहिर तौर पर राज्य में बीजेपी की हार हुई. रघुवर दास ने राज्य स्तर के नेताओं को किनारे कर दिया. उन्होंने पार्टी के आदिवासी चेहरे अर्जुन मुंडा को भी किनारे कर दिया. सरकारी सूत्रों ने कहा कि रघुवर दास की कार्यशैली ने कई सरकारी अधिकारियों को हतोत्साहित किया. वह सरकारी कर्मचारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और मीडिया कर्मियों पर भी गुस्सा कर अपना आपा खो बढ़ते थे. ऐसे ही कुछ उनके जनसंवाद कार्यक्रमों में देखने को मिलता था.
गैर आदिवासी चेहरा: रघुवर दास ने अपने नाम कई रिकॉर्ड बनाए. उनमें से एक वह झारखंड के पहले ऐसे गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बने हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. एक सामाजिक कार्यकर्ता के मुताबिक, रघुवर सरकार जिस विकास की बात करती थी वह शहरों तक ही सीमित थी, गांव विकास से महरूम था. रघुवर सरकार के दो कानूनों छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना अधिनियम में संशोधन करने का कदम राज्य के आदिवासी लोगों को अच्छा नहीं लगा. जब विभिन्न संगठनों ने रांची में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया, तो रघुवर दास ने आंदोलन को खत्म करने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी.