भोपाल, 29 अक्टूबर: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वह बताएं कि उसे राम से आपत्ति है या मंदिर से. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के प्रवास पर आए भाजपा सांसद त्रिवेदी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कांग्रेस का एक पुराना रोग जो अक्सर टीस मारता रहता है, इन दिनों फिर उभर आया है.
कांग्रेस राम मंदिर के विषय को लेकर चुनाव आयोग चली गई है. मैं कांग्रेस के लोगों से यह पूछना चाहता हूं कि उन्हें ’राम’ शब्द से आपत्ति है या ’मंदिर’ से. अगर राम से आपत्ति है, तो यह शब्द महात्मा गांधी की समाधि पर लिखा है. रघुपति राघव राजाराम उनका प्रिय भजन था और रामराज्य उनका आदर्श था. क्या यह सब सांप्रदायिक है? अगर मंदिर शब्द से आपत्ति है, तो चुनाव के मौसम में कांग्रेस के नेता ही सबसे ज्यादा मंदिर जा रहे हैं और फोटो खिंचवा रहे हैं. अगर कांग्रेस को राम और मंदिर शब्दों पर आपत्ति नहीं है, तो राममंदिर शब्द पर आपत्ति क्यों है? Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए कांग्रेस सरकार के पांच सबसे बेहतरीन काम पूरे भारत में दोहराएंगे : राहुल गांधी
भाजपा नेता ने कहा कि वास्तव में राममंदिर का निर्माण पूरा होते देख कांग्रेस के सीने की आग भड़क उठी है, क्योंकि वह कभी नहीं चाहती थी कि राममंदिर का निर्माण हो.
त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस राममंदिर का निर्माण कभी नहीं चाहती थी और वह यह भी नहीं चाहती थी कि यह विवाद सुलझे. 22-23 दिसंबर 1949 की रात जब अयोध्या में श्री रामलला का प्राकट्य हुआ, तो उत्तरप्रदेश के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री इस मामले को रफादफा करने के लिए फैजाबाद गए, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट ने उन्हें रोक दिया. बाद में जब यह विवाद अदालत पहुंचा, तो 1961 तक मुस्लिम वर्ग इसमें पक्षकार ही नहीं बना.
उन्होंने कहा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के के.के. मोहम्मद ने अपनी किताब में लिखा है कि उस समय मुस्लिम समाज में एक विचार था कि हमें इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन टाइटल सूट की मियाद बीतने के 11 दिन पहले दिसंबर 1961 में वे अचानक पक्षकार बन गए. त्रिवेदी ने दावा किया कि निश्चित तौर पर कांग्रेस ने ही मुस्लिम पक्ष को इसके लिए उकसाया था.
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि यही नहीं, 1976 में इंदिरा गांधी के जमाने में जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे की खुदाई चल रही थी, तो नीचे आठ खंबे निकल आए. तब वामपंथी इतिहासकारों के दबाव में सरकार ने खुदाई रुकवा दी और कोर्ट से यह स्टे ले लिया गया कि खुदाई कभी नहीं की जाएगी, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर खुदाई हुई, तो कुछ निकल आएगा.
त्रिवेदी ने कहा कि 21 वीं सदी में रडार मैपिंग की टेक्नोलॉजी आ गई. कोर्ट ने खुदाई के लिए मना किया था, रडार मैपिंग जैसी तकनीक के प्रयोग पर रोक नहीं थी. इसलिए जब अटल जी की सरकार ने रडार मैपिंग कराकर उसकी रिपोर्ट प्रस्तुत की, तो कोर्ट ने खुदाई की परमिशन दे दी. खुदाई में 2003 में सबकुछ निकल आया. उसके बाद कांग्रेस के ही नेता वकील का चोला ओढ़ कर तथाकथित बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से कोर्ट में खड़े होते थे.
त्रिवेदी ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने 7 दिसंबर 1992 को कहा था कि हम बाबरी मस्जिद दोबारा तामीर करेंगे. उन्होंने 15 जनवरी 1993 को फिर एक इंटरव्यू में इस बात को दोहराया. उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा में यही बात कही थी. ये लोग सिर्फ जन भावना का ही अपमान नहीं कर रहे थे, सांप्रदायिक वातावरण बिगाड़ रहे थे और इस्लाम का भी अपमान कर रहे थे, क्योंकि ये लोग इस्लाम की मान्यता के अनुसार काफिर थे और एक काफिर को मस्जिद की तामीर करने का हक नहीं है.
भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर बैठे ये लोग संविधान का भी अपमान कर रहे थे. उन्होंने कहा कि 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों को बर्खास्त कर दिया था. इसके पीछे कांग्रेस का क्या तर्क था? उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस की कैबिनेट ने यह फैसला लिया, तब कमलनाथ कैबिनेट मंत्री हुआ करते थे. कांग्रेस के लोग कहते थे 2019 से पहले इसका जजमेंट मत आने दीजिए, वरना भाजपा को राजनीतिक लाभ मिल जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कभी विवादित रहे स्थल को स्पष्ट तौर पर राम जन्मभूमि कहे जाने के बावजूद कांग्रेस के लोग ’बाबरी मस्जिद’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं. इसका मतलब है कि कांग्रेस पार्टी इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ-हानि के तराजू पर तौलती रही है जबकि हमारे लिए यह आस्था का विषय था और है.