28 साल पहले कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने लिया था सवर्णो को आरक्षण देने का फैसला, SC ने किया रद्द
आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने बड़ा दांव खेला है. बीजेपी से नाराज चल रहे सवर्णों को लोकसभा चुनाव से पहले मनाने के लिए मोदी सरकार ने उनके हक में इतना बड़ा फैसला ले लिया है, जिसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी.
नई दिल्ली: आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने बड़ा दांव खेला है. बीजेपी से नाराज चल रहे सवर्णों को लोकसभा चुनाव से पहले मनाने के लिए मोदी सरकार ने उनके हक में इतना बड़ा फैसला ले लिया है, जिसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. केंद्रीय कैबिनेट ने सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया है. जिससे संबधित संविधान संशोधन विधेयक मंगलवार को संसद में पेश किया जाएगा. वहीं सरकार के इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है.
ऊंची जाति के वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए कई सालों पहले कांग्रेस सरकार भी हाथ-पांव मार चुकी है. इससे पहले करीब 28 साल पहले कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आर्थिक रूप से पिछड़े ऊंची जाति के आरक्षण का ऐलान किया था. हालांकि देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इसे बाद में जाकर रद्द कर दिया. जिससे कांग्रेस का सवर्णो को आरक्षण देने का सपना टूट गया.
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साल 1991 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया था. राव के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. जिसमें नरसिंह राव सरकार की हार हुई. साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया था.
रिपोर्ट्स की मानें तो सवर्णों को आरक्षण सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक आधार पर दिया जाएगा. आरक्षण का लाभ सिर्फ वहीं लें पाएंगे जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख रुपए से कम है और जिनके पास पांच एकड़ तक जमीन है.
ज्ञात हो कि देश में साल 1931 के बाद से कभी जातिगत जनगणना नहीं हुई. हालांकि 2007 में सांख्यिकी मंत्रालय के एक सर्वे में कहा गया था कि हिंदू आबादी में पिछड़ा वर्ग की संख्या 41% और सवर्णों की संख्या 31% है.