POCSO Act: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- बच्चे के साथ ओरल सेक्स गंभीर यौन अपराध नहीं, दोषी की सजा घटाई

एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैलसे ने सभी को चौंका दिया है. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चे के साथ ओरल सेक्स करना गंभीर यौन अपराध नहीं माना जा सकता है. इसके साथ ही कोर्ट ने दोषी की सजा भी कम कर दी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credits: Twitter)

लखनऊ: एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के फैलसे ने सभी को चौंका दिया है. दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बच्चे के साथ ओरल सेक्स (Oral Sex) करना गंभीर यौन अपराध नहीं माना जा सकता है. इसके साथ ही कोर्ट ने दोषी की सजा भी कम कर दी. किसी के डेटिंग साइट्स पर सक्रिय होने से उसके चरित्र का आंकलन नहीं किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

बच्चे के साथ ओरल सेक्स के एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस अपराध को 'गंभीर यौन हमला' नहीं माना है. कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय माना है. कोर्ट ने निर्णय के मुताबिक, यह कृत्य (बच्चे के साथ ओरल सेक्स) एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है. लिहाजा ऐसे मामले में पॉक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती है.

जानकारी के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओरल सेक्स केस में दोषी की 10 साल की सजा कम करते हुए 7 साल कर दी. साथ ही उस पर पांच हजार का जुर्माना लगाया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना 2016 में हुई थी. आरोप है कि दोषी एक दिन शिकायतकर्ता के घर गया और उसके 10 साल के बेटे को अपने साथ कहीं लेकर गया. फिर पैसों का लालच देकर शिकायतकर्ता के बेटे के साथ ओरल सेक्स किया. इस मामले में 2018 में झांसी की एक निचली कोर्ट ने पॉक्सो एक्ट समेत अन्य धाराओं के तहत दोष साबित होने के बाद 10 साल की सजा सुनाई थी.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सुविधाओं को राम भरोसे बताने हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया था की एक महीने में सूबे के प्रत्येक गांव में ICU सुविधाओं के साथ दो एम्बुलेंस उपलब्ध करावाये जाये. हालांकि इस निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी और कहा था कि कोर्ट ऐसे निर्देश न दें जो लागू न हो सकें.

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