North Sentinel Island: भारत के इस द्वीप पर रहती है दुनिया की सबसे खतरनाक जनजाति, यहां जाना मतलब मौत को गले लगाना
अंडमान-निकोबार स्थित उत्तरी सेंटिनल द्वीप, दुनिया के लिए के लिए किसी रहस्य से कम नहीं है. इस टापू पर रहने वाली आदिवासियों को दुनिया की सबसे खतरनाक जनजाति के तौर पर जाना जाता है.
इस रहस्यमयी टापू के बारे में कहा जाता है कि आज तक जिसने भी यहां कदम रखने की कोशिश की है, वो जिंदा वापस नहीं लौट पाया है. हाल ही में इसी टापू पर एडवेंचर ट्रिप के लिए आए एक अमेरिकी नागरिक जॉन एलन की हत्या का मामला सामने आया था. बताया जाता है कि वह कुछ मछुआरों के साथ दक्षिणी अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर गया था, जहां से लौटी तो सिर्फ उसकी लाश. जी हां, हत्या की इस वारदात के बाद यह टापू एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. चलिए विस्तार से जानते हैं भारत के इस द्वीप पर रहने वाली खतरनाक जनजाति के बारे में...
मौत का टापू है सेंटीनल आइलैंड
भारत के अंडमान-निकोबार स्थित नॉर्थ सेंटीनल आइलैंड इतना खतरनाक है कि इसे मौत का आइलैंड भी कहा जाता है. इस टापू पर रहनेवाली आदिवासी जनजाति को सेंटीनेलिस (sentinelese tribe) कहा जाता है, जो बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग है. कहते हैं कि इस आइलैंड पर जो भी गया है वो वापस जिंदा नहीं लौटा है, यही वजह है कि भारत सरकार ने भी इसे प्रतिबंधित कर रखा है. यह भी पढ़ें: अंडमान: अमेरिकी टूरिस्ट की सेंटिनल द्वीप पर हत्या, 7 लोग गिरफ्तार, यहां के लोग नहीं रखते हैं बाहरी दुनिया से संपर्क
यहां रहती है सबसे खूंखार जनजाति
मौत के इस टापू पर जो जनजाति रहती है उसे बेहद खतरनाक माना जाता है. जी हां, यहां रहने वाले आदिवासियों का देश और दुनिया से कोई संपर्क नहीं है. इन लोगों ने आधुनिक सभ्यता और समाज को पूरी तरह से नकार कर अपनी एक अलग ही दुनिया बना रखी है. इनके बीच गलती से भी अगर कोई बाहरी व्यक्ति पहुंच जाए तो ये लोग हिंसक हो जाते हैं.
इनके खौफ का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये लोग जब भी इस टापू के ऊपर आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर को देखते हैं तो उसका स्वागत तीरों, पत्थरों और आग के गोलों से करते हैं. खबरों की मानें तो साल 2006 में कुछ मछुआरे इस आइलैंड पर गलती से आ गए थे, जिन्हें इस गलती का खामियाजा अपनी जान गंवाकर चुकाना पड़ा था.
भारत सरकार भी नहीं देती है दखल
बताया जाता है कि मौत के इस आइलैंड पर यह जनजाति करीब 60 हजार सालों से रह रही है, फिर भी इसे लॉस्ट ट्राइब कहा जाता है. यह एक ऐसी खोई हुई जनजाति है जिसके बारे में किसी को कोई भी जानकारी नहीं है. यह खूंखार जनजाति दुनिया से इतनी जुदा है कि किसी को भी इस समुदाय के व्यवहार, रहन-सहन, बोलचाल और भाषा के बारे में नहीं पता है. यहां तक कि भारत सरकार भी यहां हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं करती है.
बताया जाता है कि साल 2004 में यहां भयंकर सुनामी आई थी, इस तूफान के तीन दिन बाद भारत सरकार के आदेश पर सेना के एक हेलिकॉप्टर ने इस खोई हुई जनजाति की खोज-खबर लेने के लिए आइलैंड के ऊपर उड़ान भरी थी, लेकिन इस समुदाय मे उन पर आग के गोलों, पत्थरों और तीरों की बौछार कर दी. यह भी पढ़ें: भूकंप के झटकों से फिर हिला अंडमान, रिक्टर स्केल पर तीव्रता 5.0
बताया जाता है कि साल 1967 से 1991 के दरमियां भारत सरकार ने यहां के लोगों को समाज में मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश की थी, लेकिन यहां के लोगों की हिंसक प्रवृत्ति और आक्रामकता के कारण सरकार इसमें विफल रही. आखिरकार साल 1991 के बाद सरकार ने इस इलाके को प्रतिबंधित घोषित कर दिया.
शिकार करके भरते हैं अपना पेट
यह आइलैंड और यहां पर रहने वाले लोग कैसे हैं इसके बारे में कोई भी अच्छी तरह से नहीं जानता है, लेकिन कहा जाता है कि ये समुदाय खेती करना नहीं जानता, इसलिए जानवरों का शिकार करके और जंगल के फल खाकर ये लोग अपना पेट भरते हैं. बताया जाता है कि यहां पर 10 अलग-अलग समुदाय के लोग रहते हैं, जिनमें ग्रेट अंडमानी, ओंगे, जाखा, सेंटीनेलिस जनजाति के लोग रहते हैं. इन सभी समुदायों में सेंटीनेलिस जनजाति को सबसे खतरनाक माना जाता है.