
Bhopal Gender Change Case: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां 25 साल की एक ट्रांस महिला (पहले युवक) ने बताया कि उसने अपने जिगरी दोस्त से शादी करने के भरोसे पर छह लाख रुपए खर्च करके लिंग परिवर्तन सर्जरी करवा ली, लेकिन कुछ महीने बाद वही प्रेमी मुकर गया. मामला अब बलात्कार, मानसिक शोषण और धोखाधड़ी की धाराओं में दर्ज हो चुका है और पुलिस जांच चल रही है. पीड़िता के अनुसार, उसकी आरोपी युवक से मुलाकात दस साल पहले नर्मदापुरम (होशंगाबाद) में हुई थी. दोस्ती धीरे‑धीरे प्रेम में बदली और दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बने.
पीड़िता का दावा है कि प्रेमी ने तंत्र‑मंत्र और वशीकरण का सहारा लेकर उस पर शादी के लिए दबाव बनाया, साथ ही कहा कि शादी से पहले जेंडर बदलना जरूरी है.
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इंदौर में हुई जटिल सर्जरी
भरोसा करके पीड़िता ने इंदौर के एक निजी अस्पताल में ऑपरेशन कराया. सर्जरी और उसके बाद की दवाइयों पर करीब ₹6 लाख खर्च हुए. लेकिन सर्जरी के कुछ महीने भीतर ही प्रेमी का व्यवहार बदलने लगा. उसने बात‑चीत कम कर दी और फिर शादी से साफ इनकार कर दिया. मानसिक आघात से गुजर रही पीड़िता ने भोपाल के गांधीनगर थाना जाकर शिकायत दर्ज कराई.
थाना प्रभारी ने बताया कि केस “ज़ीरो एफ़आईआर” के रूप में दर्ज कर, आगे की कार्रवाई के लिए नर्मदापुरम पुलिस को सौंप दिया गया है, क्योंकि आरोपी वहीं का निवासी है.
कानूनी पेंच और सामाजिक सच्चाई
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को 2019 के ट्रांसजेंडर (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम सुरक्षित करता है, लेकिन जमीनी स्तर पर धोखाधड़ी और शोषण के मामले सामने आते रहते हैं. इस केस ने एक बार फिर दिखाया कि LGBTQIA+ समुदाय के लोग अक्सर भावनात्मक और आर्थिक शोषण की दोहरी मार झेलते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शादी का झांसा देकर सहमति ली गई हो, तो IPC की धारा 376 (बलात्कार) सहित कई कड़ी धाराएँ लग सकती हैं. मनोचिकित्सक बताते हैं कि जेंडर डिस्फोरिया से जूझ रहे व्यक्ति के लिए विश्वासघात गहरे अवसाद व आत्मघाती प्रवृत्तियों तक ले जा सकता है.
समाज और सरकार की ज़िम्मेदारी
इस घटना ने साबित किया है कि केवल कानून बनाना काफी नहीं है. जरूरत संवेदनशील पुलिसिंग, तेज न्याय प्रक्रिया और जागरूक समाज की भी है.
हर पीड़िता यही सवाल कर रहा है, “जब रिश्ता बनाते समय मैं लड़की बन सकती हूं, तो अब मेरा हक और वजूद क्यों नहीं मानते?” अदालत और समाज दोनों को इस सवाल का जवाब देना होगा.