उत्तराखंड के बागेश्वर में खड़िया के खनन की वजह से होने वाले नुकसान पर मीडिया रिपोर्टें लंबे समय से हो रही थीं. अब हाई कोर्ट ने खनन पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आए हैं.हाई कोर्ट ने 'सज्जन लाल टम्टा बनाम उत्तराखंड और अन्य' के नाम से जाने जाने वाले इस मुकदमे में अपना फैसला उसी के नियुक्त किए गए कोर्ट कमिश्नरों की रिपोर्ट के आधार पर सुनाया. कमिश्नरों ने अपनी रिपोर्ट 6 जनवरी को हाई कोर्ट में पेश की, जो कि अब सार्वजनिक रूप से भी उपलब्ध है.
डीडब्ल्यू ने कोर्ट ऑर्डर की कॉपी देखी है. उसके अनुसार, अदालती कार्रवाई के दौरान उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की पीठ ने रिपोर्ट में बयान किए गए हालात को "ना सिर्फ चिंताजनक बल्कि चौंकाने वाले" बताया.
क्या है मामला
हाई कोर्ट ने नवंबर 2024 में इस मामले पर एक मीडिया रिपोर्ट का खुद ही संज्ञान लेते हुए एक जनहित याचिका दर्ज करवाई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि बागेश्वर जिले की कांडा तहसील के कुछ गांवों में खड़िया के अनियंत्रित खनन की वजह से खेत और मकान जमीन में धंस गए हैं.
साथ ही खेतों में दरारें भी आ गई हैं और पानी के प्राकृतिक स्रोत भी सूख गए हैं जिसकी वजह से धनी लोग तो गांव छोड़ कर चले गए हैं लेकिन गरीब निरंतर किसी आपदा के डर में जी रहे हैं.
उत्तराखंड के कई कस्बों में दरक रही जमीन
अदालत ने मामले का सच जानने के लिए दिसंबर में हाई कोर्ट के दो वकीलों मयंक रंजन जोशी और शारंग धुलिया को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया और उन्हें आदेश दिया कि वो इन गांवों का दौरा करें और इस मामले पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट दें.
127 पन्नों की अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कोर्ट कमिश्नरों ने कहा कि उन्हें ठेकेदारों द्वारा नियमों का घोर उल्लंघन, पर्यावरण को भारी नुकसान और सरकारी अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार साफ नजर आया.
जोशीमठ जैसे हालात
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि खनन की वजह से इस इलाके में कई स्थानों पर जमीन धंस रही है जिससे आपस के मकानों और अन्य ढांचों पर खतरा मंडरा रहा है. इसके अलावा जहां भी ऐसा हो रहा है वहां खदानें पहाड़ों के नीचे की तरफ हैं, जबकि गांव ऊपर की तरफ. इससे गांवों को सीधा खतरा है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि खनन गतिविधियां वैज्ञानिक तरीके से नहीं की जा रही हैं, जिसकी वजह से यहां अस्थिरता का खतरा पैदा हो गया है. पत्थरों, लकड़ियों और स्लेट से बने यहां के पारंपरिक मकानों की नींव दरक रही है और कई मकानों की दीवारों में दरारें आ गई हैं. कंक्रीट से बने आधुनिक मकानों का भी यही हाल है.
यही हाल यहां से करीब 190 किलोमीटर दूर जोशीमठ का भी है जहां जमीन धंसने की समस्या को अब जाकर सरकार ने माना है और पुनर्निर्माण के आदेश दिए हैं. इसके अलावा पानी के स्रोत प्रदूषित और बाधित हुए हैं, जिसकी वजह से पानी की गुणवत्ता प्रभावित हुई है और पीने के पानी का संकट भी हो गया है.
खदानों की वजह से वन भूमि और वन पंचायत भूमि में मिट्टी का कटाव हो गया है और भूस्खलन हो रहे हैं. साथ ही लगातार हो रहे खनन की वजह से पीएम2.5 और पीएम10 जैसे महीन प्रदूषण हवा में फैल रहे हैं और वायु प्रदूषण हो रहा है और सांस की बीमारियां फैल रही हैं.
प्रशासन की मिलीभगत
कोर्ट कमिश्नरों ने कहा है कि प्रशासन ने खनन के लिए भारी मशीनों के इस्तेमाल को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं दिए हैं लेकिन इसके लिए पर्यावरणीय मंजूरी दी जा रही है. इसकी वजह से अवैध खनन करने वाले भारी मशीनों का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं.
स्टेट एनवायर्नमेंटल इम्पैक्ट असेसमेंट एजेंसी का काम है यह सुनिश्चित करना कि खनन से पर्यावरण को कोई नुकसान ना हो रहा हो. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि एजेंसी अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जा कर काम कर रही है क्योंकि वह परियोजनाओं को क्लीयरेंस दे देती है और उसके बाद पर्यावरण को पहुंचाए जा रहे नुकसान को बस एक मूकदर्शक की तरह देखती रहती है.
साथ ही एजेंसी ने जिन परियोजनाओं को मंजूरी दी है उनमें से सबकी जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाली भी नहीं है. कमिश्नरों ने एजेंसी पर जानकारी छुपाने और सार्वजनिक जांच से बचने का आरोप लगाया है.
एक गांव के निवासियों ने कमिश्नरों को यह भी बताया कि उनके वहां पहुंचने से पहले जिले के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) गांव पहुंच गए थे और गांव वालों को धमका कर चुप रहने के लिए कहा था. गांव वालों ने रोते रोते बताया कि मशीनें चौबीसों घंटे चलती हैं जिसकी वजह से घर हिल जाते हैं और रात को बच्चे सो तक नहीं पाते.
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन में उनकी शिकायतों की भी कोई सुनवाई नहीं होती. कमिश्नरों को यह भी पता चला कि यहां के राजस्व विभाग के अधिकारियों का तबादला भी बहुत कम होता है. कुछ तो 10-15 सालों से यहीं हैं.
डीएम ने किया फंड का गलत इस्तेमाल
सिर्फ एसडीएम ही नहीं, रिपोर्ट में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) की भूमिका की भी बात की गई है और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना के तहत बने जिला खनिज संस्थान के फंड में से 33.82 लाख रुपयों का इस्तेमाल संस्थान के अध्यक्ष यानी डीएम के कार्यालय के नवीनीकरण के लिए किया गया.
क्यों घरों में नहीं सोते उत्तराखंड के इस गांव के लोग
इसी तरह फंड में से 18.06 लाख रुपयों का इस्तेमाल एसडीएम के कार्यालय के नवीनीकरण के लिए किया गया. कमिश्नरों ने इन दोनों आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए कहा गया है.
कमिश्नरों ने अदालत को यह भी बताया कि बागेश्वर से लौटने के बाद उन्हें अपनी रिपोर्ट को कमजोर करने के लिए रिश्वत की पेशकश भी की. पेशकश करने वाले का नाम रिपोर्ट में नहीं है. रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए अदालत ने पूरे बागेश्वर जिले में तुरंत खनन रोकने का आदेश दिया है.
मामले में अगली सुनवाई नौ जनवरी को है और अदालत ने उस दिन डीएम, औद्योगिक विकास सचिव और जियोलॉजी और खनन निदेशक समेत कई अधिकारियों को अदालत में मौजूद रहने का आदेश दिया है.