लिव-इन रिलेशनशिप नैतिक या सामाजिक रूप से अस्वीकार्य, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Flickr)

चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि "लिव-इन-रिलेशनशिप नैतिक या सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है."न्यायमूर्ति एच एस मदान (Justice HS Madan) ने पंजाब के तरनतारन जिले के एक भागे हुए दंपति द्वारा अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए ये आदेश पारित किए. इस मामले में यह जोड़ा "लिव-इन" रिलेशनशिप में था. याचिकाकर्ता दंपति गुलजा कुमारी (Gulza Kumari) और गुरविंदर सिंह (Gurwinder Sing) ने यह कहते हुए याचिका दायर की थी कि वे वर्तमान में एक साथ रह रहे हैं और जल्द ही शादी करना चाहते हैं. उन्होंने याचिका में लिखा था कि उन्हें लड़की के माता-पिता से जान खा खतरा है. यह भी पढ़ें: बुलंदशहर: लिव-इन पार्टनर के साथ कांस्टेबल ने थाने में की शादी, पुलिस अधिकारी बनें बाराती

इस याचिका की आड़ में याचिकाकर्ता वर्तमान में अपने लिव-इन-रिलेशनशिप पर अप्रूल की मुहर की मांग कर रहे हैं, जो नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और याचिका में कोई सुरक्षा आदेश पारित नहीं किया जा सकता है. इसलिए याचिका खारिज कर दी जाती है, “न्यायमूर्ति मदान ने पिछले सप्ताह जारी अपने आदेश में लिखा था.

याचिकाकर्ता के वकील जे एस ठाकुर ने कहा कि लड़की की उम्र 19 साल और लड़के की उम्र 22 साल थी और दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे. आधार कार्ड जैसे कुछ दस्तावेज लड़की के परिवार के पास होने के कारण दंपति की शादी नहीं हो सकी. “जैसा कि सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप को सहमति दे दी है, हमने हाईकोर्ट से संपर्क किया था कि वे शादी होने तक उनके जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा का निर्देश दें. अब तक, वे लड़की के परिवार के गुस्से से बचने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप में थे, जो उनके रिश्ते के खिलाफ था, ”वकील ठाकुर ने हाईकोर्ट के ऑब्जेर्वेशन पर कमेंट किया बिना कहा. यह भी पढ़ें: लिव-इन पार्टनर के साथ सहमति से सेक्स पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

महत्वपूर्ण रूप से एचसी की एक अन्य पीठ ने हाल ही में कहा था कि अगर "लिव-इन रिलेशनशिप" में भागे हुए जोड़े की सुरक्षा के लिए निर्देश दिए जाते हैं, तो "समाज की सोशल रचना गड़बड़ा जाएगी. "याचिकाकर्ता नंबर 1 (लड़की) की उम्र मुश्किल से 18 साल है जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (लड़का) की उम्र 21 साल है. वे लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रहने का दावा करते हैं और अपने जीवन की सुरक्षा और लड़की के रिश्तेदारों से स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे. इस पीठ के विचार के अनुसार यदि इस तरह की सुरक्षा दी जाती है, तो समाज की पूरी सोशल रचना गड़बड़ा जाएगी,”एचसी बेंच ने जोड़े को कोई भी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया.

हालांकि, इस आदेश से वकीलों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं में आक्रोश फैल गया था, जो यह तर्क दे रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दे दी थी.