नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को बताया कि लखीमपुर खीरी हिंसा मामला (Lakhimpur Kheri Case), जिसमें आठ लोगों की जान चली गई थी, एक गंभीर अपराध है और इस मामले के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) को जमानत मिलने के बाद कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है. यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत से यह भी कहा कि मिश्रा को लेकर कोई उड़ान जोखिम (फ्लाइट के जरिए देश छोड़कर भाग जाना) नहीं है. Lakhimpur Kheri Case: आशीष मिश्रा की जमानत होगी रद्द? अहम सुनवाई के बाद SC ने सुरक्षित रखा फैसला
हालांकि, शीर्ष अदालत ने मिश्रा को दी गई जमानत को रद्द करने के लिए एसआईटी की सिफारिशों पर उसके रुख को लेकर राज्य सरकार से स्पष्टता मांगी.
सुनवाई की शुरुआत में, प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से पूछा, "यह आपकी पसंद है, मैं जोर नहीं दे सकता.. आपने पत्र का जवाब नहीं दिया है. यह कोई ऐसी बात नहीं है, जहां आपको इतना इंतजार करना पड़े."
पीठ ने एसआईटी द्वारा अतिरिक्त मुख्य सचिव, (गृह), उत्तर प्रदेश और लखीमपुर हिंसा मामले की जांच की निगरानी करने वाले न्यायाधीश को लिखे दो पत्रों की ओर इशारा किया, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 10 फरवरी को मिश्रा को दी गई जमानत को रद्द करने की सिफारिश की गई थी.
जेठमलानी ने कहा, "हमने स्टेट को रिपोर्ट भेज दी है. राज्य सरकार ने सुरक्षा प्रदान की है (मामले में सभी 98 गवाहों को). प्रत्येक गवाह ने फोन पर संपर्क किया है." उन्होंने कहा कि किसी भी गवाह ने प्रदान की गई सुरक्षा को लेकर कोई आशंका व्यक्त नहीं की है.
पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली भी शामिल थे. बेंच ने जेठमलानी की ओर इशारा करते हुए कहा कि मामला यह है कि मिश्रा को दी गई जमानत सही है या नहीं? पीठ ने मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे मिश्रा को हाईकोर्ट से जमानत देते हुए पोस्टमार्टम रिपोर्ट जैसे सबूतों की विस्तृत जांच पर सवाल उठाया. पीठ ने कहा, "मेरिट्स में जाने का यह तरीका जमानत के सवाल के लिए अनावश्यक है."
जेठमलानी ने प्रस्तुत किया कि यह एक बहुत ही गंभीर अपराध था, हालांकि, राज्य सरकार की आपत्ति के बावजूद उच्च न्यायालय ने एक अलग दृष्टिकोण लिया. जेठमलानी ने कहा, "उनका (आशीष मिश्रा) भागने का जोखिम नहीं है, जमानत मिलने के बाद कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है." हालांकि, इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मामला गवाहों को दी गई सुरक्षा और एसएलपी (मिश्रा को जमानत के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा विशेष अनुमति याचिका) दाखिल नहीं करने का नहीं है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ने मामले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया और जांच की निगरानी के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन को नियुक्त किया. प्रधान न्यायाधीश ने आगे कहा, "राज्य को एसआईटी द्वारा दिए गए सुझाव पर कार्रवाई करनी चाहिए थी.. हम आपको एसएलपी दाखिल करने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं.. आपका क्या रुख है?"
जेठमलानी ने कहा कि वाहन ने पीड़ितों को कुचला या नहीं, यह ट्रायल का विषय है. जेठमलानी ने कहा, "98 गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराई गई है, 78 लखीमपुर खीरी जिले के हैं.. सभी गवाहों से पुलिस (टेलीफोन के माध्यम से) नियमित रूप से संपर्क करती है. अपराध गंभीर है."
मिश्रा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि एक बार जब शीर्ष अदालत उनके मुवक्किल की जमानत रद्द कर देती है, तो कोई भी अदालत उन्हें जमानत नहीं देगी. पीठ ने कुमार से पूछा, जमानत के लिए आवेदन करने को लेकर उनके मुवक्किल को आखिर क्या जल्दी है? कुमार ने कहा कि मिश्रा उस वाहन में नहीं थे, जिसने किसानों को कुचला. पीड़ित परिवारों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उच्च न्यायालय प्रासंगिक तथ्यों पर विचार करने में विफल रहा है और उच्च न्यायालय द्वारा इस आदेश को पूरी तरह से लागू नहीं किया गया. दवे ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पीड़ितों में से किसी की भी सुनवाई नहीं की. शीर्ष अदालत ने दलीलें सुनने के बाद मामले में आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया.
मिश्रा को इस मामले में पिछले साल नौ अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था. 3 अक्टूबर, 2021 को लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई झड़पों में चार किसानों सहित आठ लोगों की मौत हो गई थी. उन्हें 10 फरवरी को जमानत मिली थी.
लखीमपुर खीरी में मिश्रा की कार से कथित तौर पर कुचले गए किसानों के परिवार के सदस्यों ने उन्हें मिली जमानत को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. वह केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे हैं. पीड़ित परिवारों ने दावा किया है कि राज्य सरकार ने मिश्रा को जमानत दिए जाने के विरोध में अपील दायर नहीं की है.