बेंगलुरू, 21 जनवरी : कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने बच्चे की कस्टडी को लेकर अदालत के आदेश का सम्मान नहीं करने पर एक व्यक्ति पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी मां को देने का भी आदेश दिया. पति ने अदालत में आपसी समझौते का उल्लंघन किया था कि बच्चा एक महीने में 15-15 दिन मां और पिता की कस्टडी में रहेगा. पिता ने समझौते का उल्लंघन किया और उसके खिलाफ जारी वारंट को खारिज कर दिया. वह कोर्ट की कार्यवाही में भी शामिल नहीं हुआ.
मुख्य न्यायाधीश पीबी वराले और न्यायमूर्ति अशोक एस किनागी की अध्यक्षता वाली पीठ ने अदालत द्वारा प्रस्तुत अदालती याचिका की अवमानना की जांच के बाद हाल ही में आदेश दिया. बच्चे के पिता ने वकील होते हुए भी कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन किया था. बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लिया था. यह भी पढ़ें : Gujarat: वडोदरा की लापता महिला कांस्टेबल प्रेमी संग महाराष्ट्र में मिली, तबादला
चेन्नई के वकील नवीन की शादी मैसूर की नेत्रा से हुई थी. 27 अप्रैल, 2022 को पत्नी ने अदालत के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी और दावा किया था कि उसके नाबालिग बेटे को कैद में रखा गया है. अधिवक्ता नवीन 25 मई, 2022 को अदालत के समक्ष आए और प्रस्तुत किया कि उन्होंने बेटे को कैद में नहीं रखा है. वह बच्चे को हर महीने 15 दिन मां के पास छोड़ने को राजी हो गया. उन्होंने संयुक्त ज्ञापन देकर न्यायालय को आश्वासन दिया था कि वह न्यायालय के आदेश का उल्लंघन नहीं करेंगे.
इसके बाद कोर्ट ने केस बंद कर दिया था. हालांकि, नेत्रा ने फिर से अदालत में एक याचिका दायर की और शिकायत की कि उसके बेटे को उसकी कस्टडी में नहीं दिया गया है. कोर्ट ने पिता नवीन को 13 जुलाई को नोटिस जारी किया था. जब उन्होंने नोटिस का जवाब देने की जहमत नहीं उठाई तो कोर्ट ने तमिलनाडु के डीजीपी को 1 सितंबर को नोटिस रिजर्व रखने का निर्देश दिया था.
इसके बावजूद नवीन 10 सितंबर को कोर्ट की कार्यवाही से गैरहाजिर रहा. कोर्ट ने उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था. लेकिन, नवीन ने नोटिस का जवाब नहीं दिया. कोर्ट ने तब आदेश दिया था कि अगर वह कोर्ट में पेश नहीं हुए तो उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया जाएगा. इस बीच, अधिवक्ता नवीन ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि उन्हें बच्चे की कस्टडी के संबंध में संयुक्त ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था. शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें कर्नाटक उच्च न्यायालय में पेश होने को कहा था.
अंत में वह अदालत के सामने पेश हुआ और उसने दावा किया कि बच्चे के खराब स्वास्थ्य के कारण उसने उसे मां के पास नहीं भेजा. उन्होंने अदालत के आदेश का पालन नहीं करने के लिए माफी मांगी और अदालत को आश्वासन दिया कि वह बाल हिरासत के संबंध में प्रतिबद्धता का सम्मान करेंगे. अदालत ने उनके स्पष्टीकरण और माफी को स्वीकार नहीं किया. कोर्ट ने उन्हें अपने बेटे के साथ अदालत में पेश होने, बेटे को उसकी मां की हिरासत में सौंपने और 25,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया.
पिता ने 17 जनवरी को अदालत में पेश होकर बच्चे की कस्टडी मां को सौंप दी और जुर्माने की रकम अदा कर दी. जिसके बाद कोर्ट ने अदालत की अवमानना मामले को बंद कर दिया.