'मस्जिदों के खिलाफ दायर मुकदमे धार्मिक सौहार्द बिगाड़ रहे हैं, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की सख्त जरूरत': जस्टिस नरीमन
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने धार्मिक स्थल अधिनियम 1991 को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि देश में मस्जिदों और दरगाहों के खिलाफ बढ़ते मुकदमों से सांप्रदायिक तनाव न बढ़े.
भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरएफ नरीमन ने गुरुवार (5 दिसंबर) को देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को रोकने के लिए धार्मिक स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के महत्व पर जोर दिया. उनका कहना था कि देशभर में मस्जिदों और दरगाहों के खिलाफ जो मुकदमे दायर किए जा रहे हैं, वे समाज में और अधिक धार्मिक विवाद और संघर्ष को बढ़ावा दे सकते हैं. इन मुकदमों को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है पूजा स्थल अधिनियम को पूरी तरह से लागू करना.
क्या है पूजा स्थल अधिनियम?
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 एक महत्वपूर्ण कानून है, जिसे भारत सरकार ने सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए लागू किया था. यह कानून किसी भी धार्मिक स्थल के स्थान को बदलने या उसमें किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न करने से रोकता है. विशेष रूप से, इस अधिनियम के तहत 15 अगस्त 1947 के बाद से किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. यानि, जो पूजा स्थल जिस स्थिति में था, वही रहेगा.
बाबरी मस्जिद-राम मंदिर मामला
जस्टिस नरीमन ने बाबरी मस्जिद-राम मंदिर विवाद का भी जिक्र किया और कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम को बरकरार रखा, जो संविधान की धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को सुनिश्चित करने वाला है. उन्होंने कहा कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बढ़ावा देता है, जो भारतीय संविधान की एक बुनियादी विशेषता है.
"हाइड्रा-हेड्स" की तरह बढ़ रहे मुकदमे
जस्टिस नरीमन ने देशभर में मस्जिदों और दरगाहों से संबंधित बढ़ते मुकदमों पर चिंता जताई. उन्होंने इन मुकदमों को "हाइड्रा-हेड्स" की तरह उभरते हुए बताया, जिसमें हर बार एक नया मुकदमा सामने आ जाता है. उनका कहना था कि यदि पूजा स्थल अधिनियम को सही तरीके से लागू किया जाए, तो इन मुकदमों को रोका जा सकता है. इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 5 पन्नों के फैसले को जिला और हाईकोर्ट के जजों के समक्ष पढ़ने की सलाह दी, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए कानून को स्थापित करता है.
न्याय का उपहास
जस्टिस नरीमन ने बाबरी मस्जिद मामले में फैसले को लेकर एक आलोचना भी की, जहां मंदिर निर्माण की अनुमति देने के फैसले को लेकर उन्होंने कहा कि यह एक "न्याय का उपहास" था, क्योंकि इसमें धर्मनिरपेक्षता को सही तरीके से मान्यता नहीं दी गई. उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले में एक अच्छी बात यह है कि उसने पूजा स्थल अधिनियम को बरकरार रखा, जो सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने में मददगार है.
क्या करना चाहिए?
जस्टिस नरीमन के अनुसार, यदि पूजा स्थल अधिनियम को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह "हाइड्रा-हेड्स" की तरह उभरते मुकदमों को रोकेगा और सांप्रदायिक तनाव को कम करेगा. इस मुद्दे पर उन्होंने कहा कि हर जिला और हाईकोर्ट के जजों को यह पांच पन्नों का फैसला पढ़ना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस कानून का पालन हो और किसी भी प्रकार का सांप्रदायिक विवाद न पैदा हो.