Jharkhand: ट्रेन की चपेट में आकर तीन हाथियों की मौत, गुस्साये साथियों के 'विरोध प्रदर्शन' से 12 घंटे ठप रही रेल लाइन

हाथियों के जीवन और व्यवहार पर शोध करने वाले डॉ तनवीर अहमद कहते हैं कि झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हाथी-मानव संघर्ष की घटनाओं से जानमाल की क्षति का सिलसिला थम नहीं रहा है. रेलवे लाइन बिछाते हुए या सड़कों के निर्माण की योजनाओं में हाथियों का कॉरिडोर और दूसरे वन्यजीवों का विचरण प्रभावित नहीं हो, इस बात का कभी ख्याल नहीं रखा जाता.

हाथियों की मौत (Photo Credits: IANS)

रांची: झारखंड (Jharkhand) के चक्रधरपुर रेल मंडल (Railway Division) अंतर्गत बांसपानी-जुरुली रेलवे स्टेशन (Banspani-Juruli Railway Station) के बीच मालगाड़ी (Goods Train) की चपेट में आकर जख्मी हुए तीन हाथियों (Elephants) ने एक-एक कर दम तोड़ दिया. इनकी मौत से गमजदा डेढ़ दर्जन हाथी लगभग 12 घंटे तक ट्रैक पर जमे रहे. गुरुवार की रात उनकी चिंघाड़ों से रेलवे लाइन के आस-पास का इलाका दहलता रहा. गुस्साये हाथियों के प्रदर्शन की वजह से इस रेल लाइन पर ट्रेनों का परिचालन घंटों बाधित रहा. केयरटेकर पर शख्स ने किया हमला तो उसे बचाने के लिए दौड़ा चला आया हाथी, Viral Video देख बन जाएगा दिन

बताया गया कि गुरुवार रात लगभग आठ बजे लगभग 20 हाथियों का झुंड बांसपानी-जुरूली के बीच बेहेरा हटिर्ंग के पास रेललाइन पार कर रहा था, तभी तेज गति से आ रही एक गुड्स ट्रेन ने इन्हें टक्कर मार दी. ट्रेन की रफ्तार तेज होने की वजह से ड्राइवर तत्काल ब्रेक नहीं लगा पाया. घटना रेल लाईन के 404 नंबर पिलर के पास हुई. ट्रेन की टक्कडर में तीन हाथी बुरी तरह घायल हो गये. इनमें से एक मादा हाथी शावक ने थोड़ी देर बाद ही दम तोड़ दिया, जबकि एक हाथी शावक और एक मादा हाथी की मृत्यु शुक्रवार सुबह हुई.

घटनास्थल चक्रधरपुर रेल मंडल मुख्यालय से लगभग 130 किमी दूर है. हादसे की जानकारी मिलते ही चक्रधरपुर रेल मंडल मुख्यालय में चार बार इमरजेंसी हूटर बजाये गये. देर रात वन विभाग के अधिकारी एवं रेलवे की रिलीफ एंड रेस्क्यू टीम 140 टन के क्रेन के साथ मौके पर रवाना हुई. वन अधिकारी अनिरूद्ध पंडा ने कहा कि हाथियों का झुंड अपने घायल साथियों को घेरकर घंटों चिंघाड़ता रहा. ट्रैक पर जमे रहने की वजह से घायल हाथियों का समय पर इलाज नहीं हो पाया. बार-बार सायरन बजाने के बाद हाथियों को ट्रैक से हटाया जा सका. इसके बाद घायल हाथियों का इलाज तो किया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

जिरुली- बांसपानी सेक्शन में रेलवे द्वारा बड़े पैमाने पर लौह अयस्क की ढुलाई की जाती है. इस रेलखंड पर यात्री ट्रेनों का परिचालन नहीं के बराबर होता है.

बता दें कि चक्रधरपुर रेल मंडल में ट्रेनों की टक्कर से हाथियों की मौत की घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं. झारखंड और उड़ीसा में कई रेल लाइनें हाथियों के कॉरिडोर से होकर गुजरती हैं. इस इलाके में बिजली तार की चपेट में आने से भी कई बार हाथियों की मौत हुई है.

हाथियों के जीवन और व्यवहार पर शोध करने वाले डॉ तनवीर अहमद कहते हैं कि झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हाथी-मानव संघर्ष की घटनाओं से जानमाल की क्षति का सिलसिला थम नहीं रहा है. रेलवे लाइन बिछाते हुए या सड़कों के निर्माण की योजनाओं में हाथियों का कॉरिडोर और दूसरे वन्यजीवों का विचरण प्रभावित नहीं हो, इस बात का कभी ख्याल नहीं रखा जाता. विकास की होड़ में जब तक पारिस्थितिकी का ध्यान नहीं रखा जायेगा, ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी.

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