नई दिल्ली: देश में कोई बड़ी घटना होने पर सीबीआई जांच की मांग की जाती हैं. यह मांग इसलिए उठती है क्योंकि सबको पुलिस की कार्यवाई से ज्यादा भरोसा सीबीआई पर है, लेकिन हाल ही में शीर्ष अधिकारियों के बीच मचे विवाद से सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव सीबीआई की छवि पर पड़ा है. वहीं सीबीआई बनाम सीबीआई मामले पर विपक्ष मोदी सरकार पर लगातार हमलावर हो रहा है. दरअसल मोदी सरकार ने मामलें को शांत करने के लिए बुधवार को सीबीआई निदेशक वर्मा और विशेष निदेशक अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया. केंद्र सरकार ने संयुक्त निदेशक एम.नागेश्वर राव को सीबीआई निदेशक का कमान सौंपा.
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन के दो शीर्ष अधिकारियों के बीच विवाद मामले में केंद्र की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं. दरअसल कई नेता मोदी सरकार पर सीबीआई के कार्य में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रहे है. हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. लेकिन इस बीच सबके जहन में एक सवाल है कि क्या देश के प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार स्वतंत्र एजेंसी सीबीआई के निदेशक को छुट्टी पर भेज सकते है.
क्या है नियम-
दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम, 1946 की धारा 4बी के तहत सीबीआई निदेशक कार्यकाल दो साल का होता है. इससे पहले निदेशक को हटाया नहीं जा सकता है. अधिनियम के मुताबिक, ‘निदेशक, सेवा की शर्तों से संबंधित नियमों के विपरीत किसी भी चीज के बावजूद, उस पद से दो साल के लिए रहेगा, जिस तारीख से वह पद्भार ग्रहण करता है.’
इसके अलावा धारा 4बी(2) के तहत सीबीआई निदेशक का तबादला करना आसान नहीं है. अगर निदेशक का तबादला करना है तो उस कमेटी से सहमति लेनी होगी जिसने सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए नाम की सिफारिश की थी. इसम कमेटी में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता होते है.
केंद्र सरकार का तर्क-
सीबीआई में उभरे असाधारण और अभूतपूर्व हालात पर विचार करते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग ने डीपीएसई (सीबीआई) के कार्यकलाप पर अधीक्षण (सीवीसी कानून, 2003 की धारा 8) की अपनी शक्ति के तहत सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा और सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को कामकाज, अधिकार, दायित्व और पहले से पंजीकृत मामलों में निरीक्षणात्मक भूमिका से मुक्त करने का आदेश भ्रष्टाचार रोक कानून, 1988 के प्रावधानों के तहत जारी किया है, जो अगले आदेश तक लागू रहेगा.
भारत सरकार उपलब्ध दस्तावेजों की जांच और मूल्यांकन के बाद इस बात से संतुष्ट हो गई कि ऐसे असाधारण और अभूतपूर्व हालात पैदा हो गए हैं जिसमें सरकार को डीपीएसई कानून की धारा 4(2) के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे उसे सीबीआई निदेशक का कार्यकाल समयपूर्व खत्म करने का भी अधिकार मिलता है.
सरकार ने पूरे मामलें को बारीकी से परखने के बाद समानता, निष्पक्षता एवं नैसर्गिक न्याय के लिए यह कदम उठाया है. बयान में कहा गया कि सीबीआई में गुटबंदी का माहौल अपने चरम पर पहुंच गया है, जिससे इस प्रमुख संस्था की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचा.
सीबीआई का बयान-
सीबीआई में मचे घमासान के बीच जांच एजेंसी के प्रवक्ता ने कहा कि सीबीआई की छवि खराब नहीं होगी, क्योंकि सीबीआई देश के लिए है, व्यक्तियों के लिए नहीं. प्रवक्ता ने कहा,''सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत मामले की जांच शीघ्रता और निष्पक्षता से की जाएगी.'' उन्होंने कहा, ''राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत मामले की जांच कर रही टीम में विश्वसनीयता पर अधिकारीगण शामिल खरे उतरे.''
निदेशक आलोक वर्मा का पक्ष-
सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है कि एक स्वतंत्र और स्वायत्त सीबीआई की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि वर्तमान परिस्थितियों में सरकार ने जो कदम उठाए हैं वो वांछनीय है. आलोक वर्मा ने कहा है, "सीवीसी और केंद्र ने मुझे सीबीआई निदेशक की भूमिका से हटाने के लिए 'रातों रात निर्णय' लिया। यह फैसला मनमाना और गैरकानूनी है. इसे रद्द किया जाना चाहिए."