Women Reservation Bill: चुनावी फायदे के लिए BJP लाई महिला आरक्षण बिल, खड़गे ने बताया- क्या है सरकार की असली मंशा
Mallikarjun Kharge Photo Credits: IANS

नई दिल्ली, 20 सितंबर: लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा से पहले कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को सरकार की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि उन्हें लगता है कि सरकार चुनाव को देखते हुए इसका प्रचार कर रही है. यह भी पढ़ें: Women's Reservation Bill: महिला आरक्षण विधेयक को AAP ने बताया 'महिला बेवकूफ बनाओ' विधेयक, जानें क्यों

संसद के विशेष सत्र के तीसरे दिन महिला आरक्षण विधेयक से पहले अपने आवास पर मीडिया से बात करते हुए, खड़गे ने कहा, "2010 में, हमने राज्यसभा में विधेयक पारित किया। लेकिन यह लोकसभा से पारित नहीं हो सका. इसलिए यह कोई नया विधेयक नहीं है."

उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने उस विधेयक को आगे बढ़ाया होता तो यह आज तक जल्दी हो गया होता. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वे इसे चुनावों के मद्देनजर प्रचारित कर रहे हैं लेकिन वास्तव में जब तक परिसीमन या जनगणना नहीं होती... आप महसूस कर सकते हैं कि इसमें कितना समय लगने वाला है. वे पहले वाले को भी जारी रख सकते थे लेकिन उनके इरादे कुछ और हैं."

उन्होंने कहा, ''लेकिन हम इस बात पर जोर देंगे कि महिला आरक्षण लाना होगा और हम पूरा सहयोग करेंगे.'' खड़गे ने कहा, "लेकिन खामियों और कमियों को दूर किया जाना चाहिए." उनकी टिप्पणी संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 को लोकसभा में कार्य की अनुपूरक सूची में पेश किए जाने के एक दिन बाद आई.

महिला आरक्षण विधेयक में प्रस्तावित किया गया है कि आरक्षण 15 साल की अवधि तक जारी रहेगा और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के भीतर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक कोटा होगा. हालांकि, सूत्रों ने कहा कि इस कानून के 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू होने की संभावना नहीं है.

उन्होंने कहा कि इसे परिसीमन प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही लागू किया जाएगा, संभवत: 2029 में. परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने के बाद आरक्षण लागू होगा और 15 वर्षों तक जारी रहेगा। विधेयक के अनुसार, महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को प्रत्येक परिसीमन के बाद बदला जाएगा.

सरकार ने कहा कि महिलाएं पंचायतों और नगर निकायों में महत्वपूर्ण रूप से भाग लेती हैं, लेकिन विधानसभाओं, संसद में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है. इसमें कहा गया है कि महिलाएं अलग-अलग दृष्टिकोण लाती हैं और विधायी बहस और निर्णय लेने की गुणवत्ता को समृद्ध करती हैं.

कांग्रेस ने इस विधेयक को ''चुनावी जुमला'' करार दिया है और इसे देश की महिलाओं और लड़कियों के साथ धोखा भी बताया है.