7th Pay Commission: 7वें वेतन आयोग के तहत ग्रेच्युटी नियम में हुआ बड़ा बदलाव, लाखों कर्मचारियों को मिल रहा फायदा

ग्रेच्युटी को सरल शब्दों में समझाया जाए तो, इसका मतलब कर्मचारियों की सेवा के बदले कंपनी द्वारा साभार जताने हेतु दी गई धनराशी है. ग्रेच्युटी कैलकुलेट करने का एक निश्चित मानक है- हर साल के बदले आखिरी महीने की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता (DA) जोड़कर उसे पहले 15 से गुणा किया जाता है.

रुपया (Photo Credits: PTI)

7th CPC Latest News: देशभर के विभिन्न विभागों में कार्यरत अपने लाखों कर्मचारियों को राहत पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार कई बड़े फैसले ले चुकी है. इसी क्रम में लाखों सरकारी कर्मचारियों (Government Employees) के साथ-साथ नौकरीपेशा लोगों को तब बड़ी खुशखबरी मिली जब केंद्र ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप ग्रेच्युटी (Gratuity) के नियमों में अहम बदलाव किए.  7th Pay Commission: भारतीय रेल कर्मियों को दिए जाते है ये भत्ते, जिसे जान कर आप रह जाएंगे हैरान

मोदी सरकार द्वारा ग्रेच्युटी का भुगतान (संशोधन) अधिनियम, 2018 को लागू करने से खासकर प्राइवेट सेक्टर में काम कर रहे लोगों को बड़ा फायदा पहुंचा. ग्रेच्युटी का संशोधन अधिनियम, 1972 उद्योगों, कारखानों और प्रतिष्ठानों में काम करने वाली जनता की सामाजिक सुरक्षा के लिये एक महत्वपूर्ण कानून है. दरअसल ग्रेच्युटी का भुगतान अधिनियम, 1972 उन सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जिसमें 10 या इससे अधिक कर्मी होते हैं. इस कानून का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, चाहे यह सेवानिवृत्ति की वजह से हो या शारीरिक अपंगता या फिर शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग के काम करना बंद करने की वजह से हो.

सातवें वेतन आयोग के लागू होने से पहले इस कानून के तहत ग्रेच्युटी के भुगतान की अधिकतम सीमा 10 लाख रुपये थी. केंद्रीय कर्मचारियों के लिये केंद्रीय कर्मचारी सिविल सेवा (पेंशन) विनियम 1972 के तहत ग्रेच्युटी भुगतान के नियम भी इससे मिलते जुलते ही थी. सातवें वेतन आयोग के तहत सीसीएस (पेंशन) विनियम, 1972 के तहत अधिकतम भुगतान सीमा 10 लाख रुपये तय की गई थी. लेकिन सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद सरकारी कर्मचारियों के मामले में इसे बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया.

वहीं, प्राइवेट सेक्टर में कार्यरत कर्मियों के लिये भी महंगाई और वेतन में वृद्धि को देखते हुये सरकार ने तय किया कि जो कर्मी ग्रेच्यटी का भुगतान कानून, 1972 के दायरे में हैं उनके लिये भी अधिकतम भुगतान की सीमा को परिवर्तित किया जाना चाहिये. इसलिये सरकार ने ग्रेच्युटी का भुगतान कानून, 1972 में संशोधन कर 20 लाख रुपये की अधिकतम सीमा तय कर दी. साथ ही महिला कर्मियों के लिये ग्रेच्युटी के भुगतान के लिये निरंतर सेवा में रहने की परिभाषा को भी बदल दिया और अब इसे 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया.

ग्रेच्युटी को सरल शब्दों में समझाया जाए तो, इसका मतलब कर्मचारियों की सेवा के बदले कंपनी द्वारा साभार जताने हेतु दी गई धनराशी है. ग्रेच्युटी कैलकुलेट करने का एक निश्चित मानक है- हर साल के बदले आखिरी महीने की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ता (DA) जोड़कर उसे पहले 15 से गुणा किया जाता है. फिर उसी कंपनी में नौकरी के सालों की संख्या से और इसके बाद आने वाली रकम को 26 से भाग दिया जाता है. वर्तमान समय में पांच साल की नौकरी पर ही ग्रेच्युटी मिलती है.

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