Runaway Couples Legal Rights: भागकर शादी करने वाले कपल ने अदालत में पहचान छुपाई तो नहीं मिलेगी सुरक्षा, हाईकोर्ट का अहम फैसला
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि भागकर शादी करने वाले जोड़ों की सुरक्षा याचिका तब तक स्वीकार नहीं की जाएगी जब तक वे अपनी पूरी व्यक्तिगत जानकारी अदालत को नहीं देते. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश विवाह की वैधता को प्रमाणित नहीं करेगा और कानूनी कार्यवाही को नहीं रोकेगा.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की रजिस्ट्री ने घोषणा की है कि भागकर शादी करने वाले जोड़ों द्वारा सुरक्षा/सुरक्षा की मांग वाली याचिकाएं तब तक सूचीबद्ध नहीं की जाएंगी जब तक कि वे अपनी पूरी व्यक्तिगत जानकारी, जिसमें पिछला पता और पारिवारिक विवरण शामिल हैं, अदालत को नहीं देते.
हाईकोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा 5 मार्च को जारी एक नोटिस में कहा गया, "यह अधिवक्ताओं/विवादकर्ताओं की जानकारी के लिए है कि CRWP-1243-2025 में पारित आदेशों के अनुसार, सुरक्षा मामलों (भागकर शादी करने वाले जोड़ों के मामले) में, जब तक सभी आवश्यक विवरण, जिनमें याचिकाकर्ताओं की आयु, पूरा पता, पिता का नाम और पिछला पता शामिल है, प्रदान नहीं किए जाते, तब तक रजिस्ट्री द्वारा याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए मंजूरी नहीं दी जाएगी."
यह नोटिस न्यायमूर्ति संजय वशिष्ठ द्वारा 6 फरवरी को पारित एक आदेश के बाद जारी किया गया.
एक ही पते का इस्तेमाल करने पर जताई आपत्ति
न्यायाधीश ने आदेश में यह इंगित किया कि कई बार याचिका में दोनों पक्षों के लिए एक सामान्य पता दिया जाता है, जो अदालत के लिए चिंता का विषय बन जाता है. उन्होंने कहा, "कई बार इस अदालत को समान प्रकृति की याचिकाओं का सामना करना पड़ता है, जहां याचिकाकर्ताओं के लिए एक ही सामान्य पता दिया जाता है और रजिस्ट्री द्वारा इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई जाती. इसलिए, यह निर्देश दिया जाता है कि जब तक सभी आवश्यक विवरण प्रदान नहीं किए जाते, तब तक रजिस्ट्री द्वारा याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए स्वीकृति नहीं दी जाएगी."
सुरक्षा की मांग करने वाले जोड़े का मामला
यह आदेश एक 19 वर्षीय महिला और 21 वर्षीय पुरुष की सुरक्षा याचिका पर विचार करते हुए दिया गया था, जिन्होंने 1 फरवरी को विवाह किया था.
अदालत को बताया गया कि उन्होंने अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध शादी की थी, जिसके कारण उन्हें धमकियां मिल रही थीं. इस पर 11 फरवरी को न्यायमूर्ति वशिष्ठ ने फाजिल्का के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे उनकी शिकायत की जांच करें और सत्यापन के बाद आवश्यक कदम उठाकर उनकी जान और स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करें.
आदेश का विवाह की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश उनकी शादी की वैधता को प्रमाणित नहीं करेगा और न ही प्रशासनिक अथवा कानूनी कार्यवाही को रोकेगा.
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित अधिकारियों द्वारा पहले यह सत्यापित किया जाए कि क्या उत्तराखंड राज्य में महिला के परिवार द्वारा पुरुष के खिलाफ कोई मामला दर्ज कराया गया है, क्योंकि महिला उत्तराखंड के देहरादून जिले की निवासी है.