Holi 2022: बिहार के इस गांव में 200 साल से नहीं मनाई जा रही होली, जानें अजब-गजब मान्यता

फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन जहां प्रत्येक साल रंगों के त्योहार में आम से खास लोग रंग में सराबोर होकर खुशियां मनाते हैं, वहीं बिहार (Bihar) के मुंगेर (Munger) जिले में एक ऐसा भी गांव है जहां होली नहीं मनाई जाती. होली के दिन इस गांव के लोग न केवल खुद को रंगों से दूर रखते हैं, बल्कि घरों में पुआ पकवान भी नहीं बनाया जाता है.

होली (Photo Credits: Unsplash)

Holi 2022: फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन जहां प्रत्येक साल रंगों के त्योहार में आम से खास लोग रंग में सराबोर होकर खुशियां मनाते हैं, वहीं बिहार (Bihar) के मुंगेर (Munger) जिले में एक ऐसा भी गांव है जहां होली नहीं मनाई जाती. होली के दिन इस गांव के लोग न केवल खुद को रंगों से दूर रखते हैं, बल्कि घरों में पुआ पकवान भी नहीं बनाया जाता है. Holi 2022: अब रंगों से नहीं करेंगे परहेज, जान लें होली का वैज्ञानिक महत्व

मुंगेर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर असरगंज का सती स्थान गांव के ग्रामीणों के लिए होली कोई त्योहार नहीं है. होली के दिन भी यहां के लोगों की जिंदगी आम दिनों की तरह चलती है.

ग्रामीण कहते हैं कि यह कोई आज की बात नहीं है कि गांव में होली नहीं मनाई जाती. ग्रामीणों का दावा है कि इस गांव में 200 साल से होली नहीं मनाई जाती. इसके कारणों के संबंध में पूछे जसाने पर गांव के रहने वाले कहते हैं कि अब तो यहां की यह परंपरा बन गई है. लोगों का कहना है कि होली मानने पर गांव में विपदा आती है. इस कारण लोग होली नहीं मानते हैं.

ग्रामीण जलधर सिंह कहते हैं कि अनजाने भय के कारण लोग यहां होली नहीं मनाते हैं. उन्होंने एक सुनी सुनाई मान्यता का जिक्र करते हुए बताते हैं कि कहा जाता है कि 200 साल पहले गांव में एक वृद्ध दंपति रहते थे. फाल्गुन महीने में होलिका दहन के दिन पति का निधन होगा. इस घटना से आहत पत्नी ने पति के साथ सती होने की इच्छा जाहिर की, लेकिन गांव वालों ने पत्नी को घर में बंद कर दिया.

पति की अर्थी श्मशान ले जाने के दौरान उनका शव गांव से बाहर जाने के पहले ही बार-बार गिर जाता था. कहा जाता है कि ग्रामीण उनकी पत्नी को घर से बुलाते हैं और फिर उनके पहुंचने के बाद आगे शव यात्रा ले जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई.

कहा जाता है कि पति की चिता में अपने आप आग लग गई और उसी में पत्नी भी सती हो गई.

मान्यता है कि गांव में जहां आज सती मंदिर है, वहीं यह घटना घटी है. ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर मंदिर का निर्माण किया गया है. इस गांव का नाम भी उसी घटना के बाद सतीस्थान रखा गया है.

गांव के बुजुर्ग महेश सिंह ने बताया कि फाल्गुन महीने में मां सती हुई थी, इसलिए गांव में होली नहीं मनाई जाती है, न पकवान बनाए जाते हैं.

इधर, सजुआ पंचायत के मुखिया धर्मेन्द्र मांझी बताते हैं कि करीब 2000 की जनसंख्या वाले इस गांव में यहां के पूर्वजों से ही यह परंपरा चली आ रही है, जिसका आज भी निर्वहन किया जाता है. गांव के सभी लोग एक अनजाने भय से कभी भी होली मनाने की भी कोशिश नहीं करते.

उन्होंने बताया कि इस गांव के कई लोग दूसरे गांव और शहर में जाकर घर बनाकर बस गए हैं, लेकिन वहां भी वे होली नहीं मनाते हैं. कहा तो जाता है कि जिसने भी इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया है, उसके घर में कोई न कोई विपत्ति आ जाती है.

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