Hindu Marriage Is Sanskar: हिंदू कानून के तहत विवाह संस्कार है, कॉन्ट्रेक्ट नहीं- छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
जस्टिस गौतम भादुड़ी और एन.के. चंद्रवंशी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की मांग वाली याचिका को खारिज करने के खिलाफ पति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में अपीलकर्ता पहले से शादीशुदा था और उसका अपनी पहली पत्नी से तलाक हो गया था...
जस्टिस गौतम भादुड़ी और एन.के. चंद्रवंशी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की मांग वाली याचिका को खारिज करने के खिलाफ पति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी. इस मामले में अपीलकर्ता पहले से शादीशुदा था और उसका अपनी पहली पत्नी से तलाक हो गया था. भविष्य की संभावनाओं को सुरक्षित करने और बेटे को मां का प्यार देने के लिए, पति ने पी. पद्मावती के साथ दूसरी शादी की. दूसरी शादी से पहले, उसने पुरुष नसबंदी कराई क्योंकि वह भविष्य में और कोई संतान नहीं चाहता था. दूसरी पत्नी ने भी पहली पत्नी से हुए बेटे को अपना इकलौता पुत्र स्वीकार कर लिया. यह भी पढ़ें: HC On Love Marriage: अपनी मर्जी से शादी करना आम बात, रामायण-महाभारत में है इसका जिक्र, कपल को है इसका अधिकार: हाई कोर्ट
शादी के दो साल बाद पत्नी ने बच्चा पैदा करने की इच्छा जताई. पति के विरोध करने पर पत्नी ने बेटे को प्रताड़ित किया और पति पर खुद का बच्चा पैदा करने का दबाव बनाया. इसी उद्देश्य को आगे बढ़ते हुए आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) के माध्यम से पत्नी बाहरी डोनर के अंडों और शुक्राणुओं से गर्भवती हुई. पति का आरोप है कि वह अपना स्पर्म डोनेट करना चाहता था, लेकिन पति के स्पर्म लेने के बजाय पत्नी अज्ञात डोनर के स्पर्म से गर्भवती हो गई.
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उसके गर्भवती होने के बाद उसके गर्भ से अतिरिक्त भ्रूण को निकालने के लिए उसका उपचार किया गया और अंततः जुड़वां बेटियों का जन्म हुआ. इसके बाद घर का माहौल पूरी तरह से शत्रुतापूर्ण हो गया और पत्नी दोस्तों के सामने पति पर व्यंग्य करती थी कि वह बच्चे को जन्म देने में सक्षम नहीं है.
पति ने कहा कि पत्नी द्वारा पति के साथ किए गए दुर्व्यवहार और मानसिक क्रूरता के कारण, और क्योंकि वह एक बाहरी डोनर के शुक्राणु से गर्भवती हुई, वह तलाक का हकदार है.
खंडपीठ ने कहा कि “………..विवाह की संस्था के महत्व और अनिवार्य चरित्र पर किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है और हिंदू कानून में विवाह एक संस्कार है. कॉन्ट्रेक्ट नहीं है. इसलिए, प्रकल्पित कॉन्ट्रेक्ट जैसा कि अपीलकर्ता/पति द्वारा कहा गया है कि दूसरी शादी इस शर्त पर की गई थी कि दूसरी शादी से उन्हें कोई बच्चा नहीं होगा, एक वैध पवित्र वचन के रूप में एक बाधा नहीं हो सकता है. हिंदू कानून के तहत, विवाह एक कॉन्ट्रेक्ट नहीं है. इसलिए, कथित तौर पर पति द्वारा पेश किए गए वादे कि पत्नी को दूसरी शादी से बच्चा नहीं करना उनके मातृत्व को रोकना है.
हाई कोर्ट ने कहा कि जिरह में पति ने माना कि शादी के बाद पत्नी ने नौकरी छोड़ दी और पति पर निर्भर थी. तो सामान्य अनुमान यह होगा कि पति ने पत्नी के मेडिकल बिल का भुगतान किया है. आगे पार्टियों के आचरण से पता चला कि पत्नी के गर्भवती होने और यह पता चलने के बाद कि उसके पेट में तीन भ्रूण हैं, उसमें से एक को हटा दिया गया, जिसके लिए वे विशेषज्ञों के पास दिल्ली गए. पति भी साथ में गया. इससे यह भी पता चलता है कि आईवीऍफ़ के लिए पति और पत्नी दोनों की सहमती थी.
पीठ ने कहा कि पति का यह कहना कि वह शुक्राणु दान करने में सक्षम होने के बावजूद, पत्नी एक बाहरी दाता से गर्भवती हुई, आईवीएफ उपचार के दौरान पति द्वारा दी गई सहमति से अधिक हो जाती है, जिसमें पति और पत्नी दोनों सहमत थे कि गर्भधारण अनाम दाता के शुक्राणु द्वारा किया गया. इसलिए सबूतों के विश्लेषण से पता चलता है कि शादी के कुछ समय बाद, दोनों एक बच्चा पैदा करने के लिए सहमत हुए, जिसके लिए उन्होंने आईवीएफ का सहारा लिया और उक्त ट्रीटमेंट के दौरान, पति ने भी सहयोग किया लेकिन, जुड़वा लड़कियों के जन्म के बाद दोनों में विवाद शुरू हुआ.
उच्च न्यायालय ने पाया कि पति ने आगे कहा कि पहली पत्नी से उसके बेटे मुकुल के साथ क्रूरता की. लेकिन पत्नी ने इसका जोरदार खंडन किया. किसी सबूत के अभाव में, क्रूरता साबित नहीं होती है. अतः समस्त साक्ष्यों के आकलन के पश्चात् यह सिद्ध नहीं हुआ कि पति के साथ कोई क्रूरता हुई है, इसलिए कोर्ट ने पति द्वारा दायर की गई तलाक की अर्जी को रद्द कर दी.