Hijab Controversy: कर्नाटक एजी ने हाईकोर्ट में कहा- हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं

एडवोकेट जनरल ने कहा कि क्या हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, इस सवाल को सुलझाया जाना चाहिए और फिर अन्य मुद्दों से निपटा जा सकता है. उन्होंने दोहराया कि याचिकाकर्ता उन्हें सिर पर स्कार्फ पहनने की अनुमति देने के अनुरोध के साथ अदालत में नहीं आ रहे हैं, बल्कि वह मांग कर रहे हैं कि उन्हें इसे एक धार्मिक प्रथा के रूप में पहनने की अनुमति दी जाए.

कर्नाटक उच्च न्यायालय (Photo Credits: ANI)

बेंगलुरू: हिजाब पहनना इस्लाम (Islam) में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 (Article 25) के तहत नहीं आ सकता है. कनार्टक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में हिजाब विवाद (Hijab Controversy) पर सुनवाई के दौरान सोमवार को महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी (Prabhuling Navadgi) ने अपनी दलील पेश करते हुए यह बात कही. महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) कहा कि याचिकाकर्ता छात्राओं ने न केवल हेडस्कार्फ पहनने की अनुमति के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है, बल्कि वे अपने धार्मिक अधिकार के तहत कक्षाओं में भाग लेने के लिए हिजाब पहनना चाहती हैं. Hijab Controversy: कर्नाटक में हिजाब पहनकर कॉलेज पहुंचने पर 58 छात्राएं निलंबित, 15 के खिलाफ मामला दर्ज

यह तर्क देते हुए कि याचिकाकर्ता अनुच्छेद 25 के तहत हिजाब पहनने के अधिकार के लिए दबाव नहीं बना सकते हैं, उन्होंने कहा कि प्रावधान इसे मौलिक अधिकार के रूप में नहीं बताता है.

उन्होंने कहा, "धर्म को परिभाषित करना असंभव है. अनुच्छेद 25 धर्म के अभ्यास की रक्षा नहीं करता है, लेकिन जो आवश्यक धार्मिक अभ्यास है, इसलिए उन्होंने इसे आवश्यक धार्मिक प्रथाओं तक सीमित कर दिया. सबरीमाला मामले में भी, उन्होंने 'आवश्यक' शब्द का इस्तेमाल किया."

उन्होंने कहा कि मूल धार्मिक प्रथाएं, वे चीजें जिनके बिना कोई धर्म धर्म नहीं है, को धार्मिक प्रथा माना जाएगा, जिन्हें धर्म के अधिकार के तहत माना जा सकता है.

उन्होंने कहा कि जिस प्रथा को रोका जाता है और धर्म के चरित्र में मौलिक परिवर्तन का कारण बनने की आशंका होती है, वह आवश्यक अभ्यास है, उन्होंने कहा कि आवश्यक अभ्यास से धर्म गायब हो जाता है यदि अभ्यास की अनुमति नहीं है.

नवादगी ने कहा कि भोजन और पोशाक को आवश्यक हिस्सा नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने संविधान निर्माता दिवंगत डॉ बी आर अंबेडकर के उस कथन का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि धर्म को संस्थाओं में प्रवेश नहीं करने दिया जा सकता और इस बात पर ध्यान देना होगा कि इसे कैसे होशपूर्वक बाहर रखा जाना चाहिए, जो कि धार्मिक प्रतीकों के वर्तमान संदर्भ में हो सकता है.

उन्होंने दूसरों पर धर्म थोपने का भी हवाला दिया और कहा कि जब संसद ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाने पर चर्चा की, तो यह तर्क दिया गया कि क्या धार्मिक अधिकार होना आवश्यक है? संसद ने सभी हिंदुओं के लिए मंदिरों को खोलते समय कहा कि सभी धर्मों में सामाजिक सुधार लाया जाना चाहिए.

एडवोकेट जनरल ने कहा कि क्या हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, इस सवाल को सुलझाया जाना चाहिए और फिर अन्य मुद्दों से निपटा जा सकता है. उन्होंने दोहराया कि याचिकाकर्ता उन्हें सिर पर स्कार्फ पहनने की अनुमति देने के अनुरोध के साथ अदालत में नहीं आ रहे हैं, बल्कि वह मांग कर रहे हैं कि उन्हें इसे एक धार्मिक प्रथा के रूप में पहनने की अनुमति दी जाए.

इस पर पीठ ने नवादगी से सवाल किया कि हिजाब पहनने पर सरकार का क्या रुख है और अगर सरकारी आदेश में हिजाब पर कुछ भी निर्दिष्ट नहीं है तो भी उसका क्या रुख है- क्या हिजाब की अनुमति दी जा सकती है या नहीं?

पीठ ने सवाल पूछा, "अगर संस्थान हिजाब के साथ छात्रों को अनुमति दे रहे हैं, तो क्या सरकार को कोई समस्या होगी?"

पीठ ने यह भी पूछा कि याचिकाकर्ता वर्दी के समान रंग का हेडस्कार्फ पहनना चाह रहे हैं, क्या उन्हें वर्दी का हिस्सा माना जा सकता है? अगर वे दुपट्टा पहने हुए हैं, तो क्या वे इसे अपने गले में पहन सकते हैं?

जैसा कि उन्होंने कहा कि कॉलेज विकास समितियों को पूर्ण स्वतंत्रता दी जा रही है और सिद्धांत के रूप में, छात्रों को धर्मनिरपेक्ष रखने का प्रस्ताव है और वे धार्मिक प्रतीकों को प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं, पीठ ने पूछा कि क्या गले में कपड़ा पहनना धार्मिक है? इस पर उन्होंने कहा कि यह संस्थानों के विवेक पर छोड़ दिया गया है और इसे लेकर उनके सामने अनुशासन के मामलों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा.

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