जयपुर: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) में तैनात कर्मचारियों की निष्क्रियता के कारण एक मां द्वारा अपने जुड़वां बच्चों को खोने की घटना को 'मानवता की मौत' करार देते हुए, राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को संयुक्त रूप से महिला को 4 लाख रुपये मुआवज़े के रूप में भुगतान करने का आदेश दिया है. अदालत ने कहा. "स्वस्थ जीवन जीने के मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन करते हुए, याचिकाकर्ता को प्रतिवादियों द्वारा बाजार की सड़क के बीच में जुड़वां बच्चों को जन्म देने के लिए मजबूर किया गया, जो घोर लापरवाही और विफलता की स्थिति को उजागर करता है. प्रशासन अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने और याचिकाकर्ता को विभिन्न योजनाओं यानी जेएसवाई, जेएसएसवाई आदि का न्यूनतम लाभ प्रदान करने में विफल रहा. HC On Controlling True Love: सच्चे प्यार को कानून से नहीं दबाया जा सकता, नाबालिग प्रेमियों के विवाह पर बोला हाईकोर्ट.
मामला साल 2016 का है. महिला ईंट के भट्ठा में काम करती थी. घटना के समय महिला प्रसव पीड़ा में थी और सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए अपना 'ममता कार्ड' नहीं दिखाने के कारण उसे सीएचसी, खेड़ली में प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया. जिसके बाद महिला को बाजार की सड़क के बीच में जुड़वा बच्चों को जन्म देने के लिए मजबूर होना पड़ा. समय पर चिकित्सा सहायता उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण महिला के दोनों बच्चों की मृत्यु हो गई. 2016 में घटना के वक्त मां ईंट भट्ठे पर काम कर रही थी.
जस्टिस अनूप कुमार ढांड की एकल-न्यायाधीश पीठ ने राज्य और केंद्र सरकारों को कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के मामले में प्रभावी ढंग से सहयोग करने का भी निर्देश दिया है. अदालत ने इस आधार पर उत्तरदायित्व से बचने की कोशिश करने के लिए केंद्र सरकार की भी खिंचाई की कि 'स्वास्थ्य राज्य का विषय है.'
अदालत ने कहा, "स्वास्थ्य का अधिकार भारत सरकार द्वारा पिछले कई दशकों से अपनी विभिन्न लाभकारी योजनाओं के तहत शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है. इसलिए, अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत संघ के कंधों पर होनी चाहिए."