सरकारी आईटी सेवायें निजी कंपनियों के हवाले
सरकारी कंपनी एनआईसी की ईमेल और क्लाउड सेवाओं के प्रबंधन को निजी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है.
सरकारी कंपनी एनआईसी की ईमेल और क्लाउड सेवाओं के प्रबंधन को निजी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है. सरकार का कहना है कि इससे सेवायें और बेहतर हो सकती हैं लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि सरकारी संचार की डाटा सुरक्षा का क्या होगा.भारत में कुछ सालों पहले एक समय था जब सरकारी संचार की डाटा सुरक्षा को लेकर इतनी चिंताएं थीं कि सरकारी कर्मचारियों को निजी ईमेल सेवायें इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं थी.
डाटा सुरक्षा के ही उद्देश्य से नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) का विस्तार किया गया था और उसे सरकारी कर्मचारियों को ईमेल और अन्य इंटरनेट सुविधाओं के प्रबंधन का काम दिया गया था.
'नई' डिजिटल नीति
लेकिन अब इस नीति में एक बड़ा बदलाव लाया जा रहा है. इंटरनेट सेवाओं, विशेष रूप से ईमेल और क्लाउड सेवाओं, को निजी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है. एनआईसी की क्लाउड सेवाओं को तो 350 करोड़ रुपये के एक ठेके के तहत पहले ही रिलायंस जियो को सात साल के लिए सौंप दिया गया था.
अब अभी तक एनआईसी द्वारा चलाई जाने वाली 33 लाख सरकारी कर्मचारियों की ईमेल सेवाओं को भी निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी चल रही है. सरकार ने इसके लिए मार्च में प्रस्ताव मंगवाए थे, जिसके जवाब में आई बोलियों में से छह कंपनियों की बोलियों को मंजूर कर लिया गया है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक यह छह कंपनियां हैं लार्सन एंड टूब्रो, इंफोसिस, सॉफ्टलाइन, जोहो, रेलटेल और रेडिफमेल. इनमें से किसी कंपनी को जल्द ही सात साल का ठेका मिल सकता है. टेस्टिंग के लिए दो पायलट परियोजनाओं का काम माइक्रोसॉफ्ट और जोहो को सौंप भी दिया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस अखबार से बातचीत में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस कदम की पुष्टि की और इसे एक "स्मार्ट और जरूरी कदम" बताया. उन्होंने कहा कि यह प्रैक्टिकल नहीं है कि एक ही संगठन सरकार की सारी डिजिटलीकरण की जरूरतों को पूरा करे.
डाटा सुरक्षा के सवाल
चंद्रशेखर ने यह भी कहा कि सरकार भरोसेमंद निजी क्षेत्र और जाने माने टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप कंपनियों को साथ लिए बिना अकेले काम नहीं कर सकती और यह "नए डिजिटल आर्किटेक्चर" का हिस्सा है.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि संवेदनशील सरकारी जानकारी की डाटा सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो पाएगी. हालांकि सरकार ने इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ नियम बनाये हैं.
सबसे पहले तो ईमेल सेवाओं का सर्वर भारत के अंदर ही होगा, कोई भी डाटा सेंटर देश के बाहर नहीं बनेगा और सरकार की इजाजत के बिना किसी भी तरह का डाटा किसी से भी साझा नहीं किया जाएगा.
इस नई नीति के तहत एनआईसी के भविष्य पर भी सवाल उठ रहे हैं. 1976 में स्थापित की गई एनआईसी दशकों से सरकार की पूरी डिजिटल व्यवस्था की रीढ़ रही है. करीब 33 लाख ईमेल खातों के अलावा यह करीब 8,000 सरकारी वेबसाइटें भी चलाती है.
एनआईसी की मेघराज नाम की क्लाउड सेवा 20,000 से भी ज्यादा वर्चुअल सर्वर चलाती है जिनके दम पर 1200 से भी ज्यादा सरकारी प्रोजेक्ट चलते हैं. संस्था के लिए लगभग 4,000 कर्मचारी काम करते हैं लेकिन बीते कुछ समय से संस्था मानव संसाधनों की कमी से जूझ रही है.
एक संसदीय समिति की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एनआईसी में करीब 1,400 नए पद बनाने के एक प्रस्ताव को 2014 से अभी तक मंजूरी नहीं मिली है.