AIIMS Seats Not for Sale: एम्स की सीटें बिकाऊ नहीं हैं, एडमिशन के लिए 30 लाख की रिश्वत देने वाले माता-पिता को हाई कोर्ट ने सुनाई खरी खरी

दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार, 29 नवंबर को एक माता-पिता की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के लिए AIIMS सीट सुरक्षित करने के लिए दी गई 30 लाख रुपये की रिश्वत की वसूली की मांग की थी.

Delhi-High-Court Photo Credits: ANI

AIIMS Seats Not for Sale: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार, 29 नवंबर को एक माता-पिता की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपनी बेटी के लिए AIIMS सीट सुरक्षित करने के लिए दी गई 30 लाख रुपये की रिश्वत की वसूली की मांग की थी. महिला ने कथित तौर पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में अपनी बेटी का प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए एक कथित बिचौलिए को 30 लाख रुपये की रिश्वत दी थी. महिला की याचिका पर जवाब देते हुए, जस्टिस जसमीत सिंह की हाई कोर्ट बेंच ने कहा कि अदालतें कतार से आगे निकलने के लिए बेईमान तरीकों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के बचाव में नहीं आ सकती हैं. HC on Divorce Law: अगर पति-पत्नी के छोटे-छोटे झगड़ों को क्रूरता के रूप में देखा जाएगा तो कई शादियां टूट जाएंगी.

कोर्ट ने कहा, प्रमुख सरकारी संस्थान में MBBS पाठ्यक्रम की सीटें बिक्री के लिए नहीं हैं "अदालत किसी गैरकानूनी वस्तु की सहायता नहीं कर सकती जो कानून द्वारा निषिद्ध है... अगर लोग पैसे देकर एम्स में प्रवेश पा सकते हैं तो देश का क्या होगा? यह आप जैसे लोगों के कारण ही घोटालेबाज पनपते हैं. आप कतार में कूद गए और सोचा कि आपका बच्चा दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है."

कोर्ट ने कहा कि एम्स जैसे मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए छात्र घंटों-घंटों पढ़ाई कर रहे हैं. प्रमुख सरकारी संस्थान में एमबीबीएस पाठ्यक्रम की सीटें बिक्री के लिए नहीं हैं. महिला ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पैसे की वसूली के लिए उसके मुकदमे को खारिज करने के आदेश के खिलाफ अदालत का रुख किया.

महिला ने आरोप लगाया कि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को 30 लाख रुपये का भुगतान किया, जिसने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और कई शीर्ष नौकरशाहों को जानने का दावा किया था और कहा था कि वह एम्स में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में उनकी बेटी के लिए प्रवेश सुरक्षित कर सकता है.

कोर्ट ने कहा मामले के तथ्य एक निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं. अदालत ने माना कि निचली अदालत के आदेश में कोई अवैधता नहीं है. कोर्ट ने कहा, "वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता एक अवैधता को कायम रखने का दोषी है. अपीलकर्ता भोला हो सकता है, लेकिन यह अदालत ऐसे व्यक्ति की सहायता के लिए नहीं आ सकती है, जिसने अवैधता में भाग लिया है."

Share Now

\